यदि तुम भारत को जानना चाहते हो तो तुमको विवेकानंद को पढ़ना पड़ेगा-गुरुदेव रविन्द्र नाथ ठाकुर द्वारा रोम्य रोलां को कही इन पंक्तियों को दोहराते हुए प्रताप गौरव केंद्र के निदेशक श्री ओमप्रकाश जी ने कहा कि स्वामी जी के व्यक्तित्व और विचारों में भारतीय सांस्कृतिक परंपरा के श्रेष्ठ तत्व निहित थे।स्वामी जी का संपूर्ण जीवन माँ भारती और भारतवासियों की सेवा हेतु समर्पित था। वे आधुनिक भारत के एक आदर्श प्रतिनिधि होने के अतिरिक्त वैदिक धर्म एवं संस्कृति के समस्त स्वरूपों के उज्ज्वल प्रतीक थे।
समुत्कर्ष समिति द्वारा आयोजित ‘स्वामी विवेकानन्द-हिन्दू संस्कृति के वैश्विक उद्घोषक’ विषयक समुत्कर्ष संस्कार माला के प्रथम सत्र में बोलते हुए उन्होंने कहा कि आज से एक सौ पच्चीस वर्ष पहले पराधीन और पददलित भारत के एकाकी और अकिंचन योद्धा संन्यासी स्वामी विवेकानन्द ने हजारों मील दूर विदेश में नितांत अपरिचितों के बीच जाकर अपनी ओजमयी वाणी से हिन्दू संस्कृति और भारतीय धर्म साधना के चिरंतन सत्यों का जय-घोष किया। स्वामी विवेकानन्द सामायिक भारत के उन कुशल शिल्पियों में से हैं, जिन्होने आधारभूत भारतीय जीवन मूल्यों की आधुनिक अंतर्राष्ट्रीय परिप्रेक्ष्य में विवेक संगत वैज्ञानिक व्याख्या की।
स्वामी जी का दृढ़ विश्वास था कि देश की भौतिक उन्नति एवं सामान्य जन की समृद्धि उतना ही आवश्यक है जितना व्यक्ति और समाज की आध्यात्मिक उन्नति। उनका सम्पूर्ण दर्शन गरीबी के अभिशाप में डूबी भारतीय जनता के कल्याण की कामना है। वे प्रायः कहा करते थे- ‘‘रोटी का प्रश्न हल किये बिना भूखे मनुष्य धार्मिक नहीं बनाये जा सकते। इसलिए रोटी का प्रश्न हल करने का नया मार्ग बताना सबसे मुख्य और सबसे पहला कर्तव्य है।’’
स्वामी विवेकानन्द की सीख का उल्लेख करते हुए श्री ओमप्रकाश जी ने कहा कि मानव सेवा ही ईश्वर सेवा है। उससे मुँह मोड़ना धर्म नहीं है। अगर तुम्हें भगवान की सेवा करनी है तो मानव की सेवा करो। वह भगवान ही रोगी मनुष्य, दरिद्र मनुष्य और सब प्रकार के मनुष्यों के रूप में तुम्हारे सामने खड़ा है। इसलिए स्वामीजी ने कहा- ‘‘तुम्हें सिखाया गया है कि अतिथि देवो भवः, मातृ देवो भवः, पितृ देवो भवः, पर अब मैं तुमसे कहता हूँ दरिद्र देवो भवः।’’
स्वामी विवेकानन्द स्त्री-पुरुष समानता के समर्थक थे। उनका मानना था कि देश की उन्नति के लिए महिलाओं की शिक्षा अत्यन्त आवश्यक है। महिलाओं की शिक्षा के लिए उन्होंने तपस्वी, ब्रह्मचारिणी तथा त्यागी महिलाओं को प्रशिक्षण देना आवश्यक माना। ताकि ऐसी महिलायें दूसरी महिलाओं को सम्यक शिक्षा प्रदान कर सकें। इसी कड़ी में भगिनी निवेदिता भारत में तो, ओली बुल, क्रिस्टाइन, मेरी हेल, आदि विदेशों में उनकी ध्वज वाहक बनी।
समुत्कर्ष समिति द्वारा संस्कृति संरक्षण और समाज प्रबोधन के क्रम में प्रताप गौरव केन्द्र पर द्वितीय समुत्कर्ष संस्कार माला ‘स्वामी विवेकानन्द-हिन्दू संस्कृति के वैश्विक उद्घोषक’ का आयोजन किया गया। संस्कार माला कि अध्यक्षता समुत्कर्ष समिति के अध्यक्ष संजय कोठारी ने की। इस अवसर पर विशिष्ट अतिथि अनुष्का अकादमी के निदेशक राजीव सुराणा थे तथा समुत्कर्ष पत्रिका के सम्पादक वैद्य रामेश्वर प्रसाद तथा उपसंपादक गोविन्द शर्मा तथा सचिव विनोद चपलोत भी मंच पर उपस्थित थे। मंचस्थ अतिथियों के स्वागत एवं परिचय की रस्म समिति सचिव विनोद चपलोत ने पूरी की।
समुत्कर्ष समिति द्वारा संचालित कार्यों का विषद् परिचय परामर्शद् तरुण शर्मा ने कराया। इस अवसर पर अतिथियों द्वारा समुत्कर्ष पुस्तक माला के द्वितीय पुष्प ‘स्वामी विवेकानन्द-हिन्दू संस्कृति के वैश्विक उद्घोषक’ का लोकार्पण किया गया। प्रथम व्याख्यान से पूर्व प्रेरक गीत ‘जिनके ओजस्वी वचनों से गूँज उठा..’ ख्यात गायक रविन्द्र राठौड़ ने प्रस्तुत किया।
द्वितीय सत्र का आरम्भ कुशल सिकलीगर के मधुर ओजपूर्ण गीत ‘साधना का दीप ले निष्कंप हाथों …’ से हुआ। अपनी बात को आगे बढ़ाते हुए प्रताप गौरव केंद्र के प्रारूपकार श्री ओमप्रकाश जी ने कहा कि विवेकानंद का प्रसंग जब कभी भी आएगा उनके अमेरिका के शिकागो में दिए गए अविस्मरणीय भाषण की चर्चा जरूर होगी। यह एक ऐसा भाषण था जिसने भारत की अतुल्य विरासत और ज्ञान का डंका विश्व मंच पर बजा दिया था।
स्वामी जी के अनुसार मानव सेवा से बढ़कर और कोई सेवा श्रेष्ठ नहीं है और यहीं से शुरू होती है वास्तविक मानव की जीवन यात्रा। हमें आज आवश्यकता है स्वामी जी के आदर्शों पर चलने हेतु दृढ़ प्रतिज्ञ होने, उनकी शिक्षा, विचार संदेश तथा दर्शन को साकार रूप में अपना लेने की। स्वामी जी के जीवन शैली को आत्मसात करके जन-जन में एकता, प्रेम और दया की नदियाँ बहाकर नए युग की शुरूआत करने की।
श्री ओमप्रकाश जी ने कहा कि स्वामी विवेकानंद के अनुसार भारतवासियों को ऐसे धर्म की आवश्यकता नही है जो कमजोरी पैदा करें। स्वामी जी धर्म को मानव शक्ति का स्रोत्र मानते थे । वे ऐस धर्म को नही मानते थे जो कायरता सिखाता हो। उनका कहना था कि स्वयं अपने में विश्वास रखो। स्वामीजी ने भारतीयों को उद्बोधित करते हुए कहा है कि ‘‘यह समय न तो रोने का है और न खुशियाँ मनाने का है’’। यह समय कमजोरी दिखाने का भी नही है।आज हमारे देश को लौह पुरुषों तथा दृढ़ इच्छाशक्ति के लोगों की आवश्यकता है जिन्हे अपने लक्ष्य प्राप्ति से कोई रोक न सकें। चाहे इन्हें उसके लिए समुद्र की सतह में क्यों न जाना पडे़ अथवा मृत्यु का सामना क्यों न करना पडे़।
स्वामी जी के सेवा कार्यों का उल्लेख करते हुए श्री ओमप्रकाश जी ने कहा कि स्वामी विवेकानन्द ने मानव जाति के उत्थान के लिए नवीन संन्यासी सम्प्रदाय का गठन किया, जो रामकृष्ण मिशन के नाम से प्रसिद्ध है। विवेकानन्द ने इसका उद्देश्य निश्चित किया- ‘‘आत्मनो मोक्षार्थ जगत् हिताय च।’’- ‘अपनी मुक्ति तथा जगत के कल्याण के लिए।’ रामकृष्ण मठ और मिशन का मुख्य उद्देश्य शिक्षा के माध्यम से समाज-सेवा है। पुनरूज्जीवित हिन्दू धर्म के लिए विश्व की सांस्कृतिक विजय को इसने अपना साध्य माना।
प्रताप गौरव केंद्र के निदेशक श्री ओमप्रकाश जी ने कहा कि भारतीय संस्कृति एवं उनके मूल मान्यताओं पर दर्शन आधारित जीवन शैली अपनाने तथा आपनी संस्कृति को जीवित रखने हेतु भारतीय संस्कृति के मूल अस्तित्व को बनाए रखने का आह्वान स्वामी विवेकानंद ने किया ताकि आने वाली भावी पीढ़ी पूर्ण संस्कारित, नैतिक गुणों से युक्त, न्यायप्रिय, सत्यधर्मी तथा आध्यात्मिक और भारतीय आदर्श के सच्चे प्रतीक के रूप में विश्व में ऊँचा स्थान रखें ।
विशिष्ट अतिथि के रूप में बोलते हुए अनुष्का अकादमी के निदेशक राजीव सुराणा ने कहा कि भारत के लिए स्वामी जी के विचार, चिंतन और संदेश प्रत्येक भारतीय के लिए अमूल्य धरोहर है तथा उनके जीवन शैली और आदर्श प्रत्येक युवा पीढ़ी के लिए प्रेरणा स्रोत्र हैं। स्वामी विवेकानंद ने अपने जीवन का प्रधान लक्ष्य, भारत के नैतिक तथा सामाजिक पुनरोद्धार के लिए उन्होंने एक अनुप्रेरित कार्यकर्ता के रूप में अपना संपूर्ण जीवन समर्पित कर दिया था ।
समुत्कर्ष समिति द्वारा आयोजित समुत्कर्ष संस्कार माला में शहर के विभिन्न सामजिक, राजनैतिक संगठनों के प्रतिनिधियों के साथ-साथ बड़ी संख्या में नागरिकों ने भी सहभाग किया। इस मालिका के श्रोताओं में विभिन्न महाविद्यालयों के युवा भी अपनी उपस्थिति दर्ज करा रहे थे।
कार्यक्रम के अन्त मे समिति अध्यक्ष संजय कोठारी ने समस्त प्रबुद्ध जनों का हार्दिक आभार व्यक्त किया।