स्वामी विवेकानन्द से दीक्षित होकर ‘भगिनी निवेदिता’ के नाम से सम्पूर्ण भारत में प्रसिद्ध हुईं इस आयरिश महिला का मूल नाम मार्गरेट एलिजाबेथ नोबुल था। नोबुल का जन्म 28 अक्टूबर, 1867 ई. को आयरलैण्ड में हुआ था। पिता सेमुअल रिचमण्ड नोबल उस समय के प्रसिद्ध ईसाई पादरी थे। जिज्ञासु प्रवृत्ति के कारण मार्गरेट ने बहुत जल्दी साहित्य, कला, विज्ञान, दर्शनशास्त्र जैसे विविध विषयों का अध्ययन कर लिया था। किशोर अवस्था में पिता की मृत्यु के पश्चात मार्गरेट ने अध्यापन का कार्य प्रारम्भ किया। साथ ही ‘रेग्जाम’ क्षेत्र के गरीब मजदूरों की बिना भेदभाव के सेवा करना शुरू किया। ईसाई पादरियों को अन्य मतों के लोगों की मार्गरेट द्वारा सेवा करना पसन्द नहीं आया। यहीं से ‘ईसाईयत’ के प्रति ‘मार्गरेट’ के मन में शंका उत्पन्न हो गयी। उनका मन अशान्त हो गया। अध्ययन से ईसाईयत की अनेक बातें व्यवहार में झूठी दिखायी दीं। गिरिजों में होने वाले अनाचार ने भी उनके मन पर विपरीत असर डाला।
नई राह मिली –
उसी समय ‘स्वामी विवेकानन्द’ शिकागो के विश्व-धर्म सम्मेलन में हिन्दू विचार – दर्शन की विजय पताका फहराकर नवम्बर 1895 में इंग्लैण्ड आये। मार्गरेट स्वामीजी के भाषणों से अत्यन्त प्रभावित हुई। उन्हें लगा कि जिस तत्व-ज्ञान, दर्शन, धर्म को जानने के लिए उनका मन अशान्त था, वह ज्ञान स्वामी विवेकानन्द से प्राप्त हो गया है। मार्गरेट स्वामीजी का शिष्यत्व स्वीकार कर 28 जनवरी 1898 को भारत आ गईं।
जन्म से ईसाई होने पर भी मार्गरेट, संस्कार और कर्म से पूर्णतः हिन्दू थी। वे भारत वर्ष को ‘स्वदेश’ कहती थी। इसीलिए स्वामी जी ने संन्यास में दीक्षित कर मार्गरेट का नया नाम ‘निवेदिता’ रखा, जो उनके भावी जीवन के सर्वस्वार्पण का परिचायक ही नहीं अपितु शाश्वत रूप से प्रेरणादायी भी था।