हर वर्ष 15 सितम्बर को अभियंता दिवस और संचयिका दिवस के रूप में मनाया जाता है। अभियन्ता दिवस पर भारत के सुविख्यात इंजिनियर डॉ. मोक्षगुंडम विश्वेश्वरैया आधुनिक भारत के विश्वकर्मा के रूप में बड़े सम्मान के साथ स्मरण किया जाता है। अपने समय के बहुत बड़े इंजीनियर, वैज्ञानिक और निर्माता के रूप में देश की सेवा में अपना जीवन समर्पित करने वाले डॉ. मोक्षगुंडम को भारत ही नहीं, वरन विश्व की महान् प्रतिभाओं में गिना जाता है। इस दिन सभी लोग अपने कर्तव्यों को प्रति समर्पित भाव से निर्वहन करने का संकल्प लेते है। भारतरत्न डॉ. मोक्षगुंडम बहुमुखी प्रतिभा के धनी, उत्कृष्ट अभियंता, दूरदर्शी एवं कुशल रणनीतिकार थे। उन्होंने अपने दीर्घ कामकाजी जीवन में ईमानदारी, शुचिता, अध्यवसाय, कार्यदक्षता, कर्तव्यपरायणता, समय प्रबंधन, विलक्षण प्रतिभा, कठोर अनुशासन, राष्ट्र निर्माण के लिए दृढ़ संकल्प तथा राष्ट्रीय हितों के लिए पूर्ण समर्पण की अद्भुत मिसाल प्रस्तुत की।
डॉ. मोक्षगुंडम यश एवं प्रचार से हमेशा दूर भागते रहे लेकिन उपलब्धियों, प्रगतिशील सोच एवं तकनीकी कौशल के कारण उनकी ख्याति देश-विदेश में फैल गयी। भारत के कई विश्वविद्यालयों द्वारा उन्हें डाक्टरेट की मानद उपाधि दी गयी। वे कभी स्व-प्रशंसा के मायाजाल में नहीं फंसे और अनवरत चुपचाप अपनी साधना की लौ में जलते रहे। डॉ. मोक्षगुंडम का जन्म 15 सितम्बर 1861 में मैसूर में हुआ था। परिवार की तंगहाली दशा के बावजूद भी उन्होंने संघर्ष करते हुए उच्च शिक्षा प्राप्त की। देश की आजादी के बाद तमाम प्रकार के निर्माण कार्यो की दरकार नजर आ रही थी, ऐसे समय में डॉ. मोक्षगुंडम ने अपने समर्पण भाव का परिचय देते हुए तमाम प्रकार के निर्माण कार्यो में अपनी महत्वपूर्ण भूमिका का निर्वहन किया। आजादी से पहले दक्षिण भारत के मैसूर को कर्नाटक का सबसे विकसित और समृद्धशाली क्षेत्र बनाने में मोक्षगुंडम विश्वेश्वरैया का अभूतपूर्व योगदान रहा।
जब देश गुलाम था, तब कृष्णराज सागर बांध, भद्रावती आयरन एंड स्टील वर्क्स, मैसूर संदल ऑयल एंड शॉप फैक्ट्री, मैसूर विश्वविद्यालय, बैंक ऑफ मैसूर का निर्माण विश्वेश्वरैया की देखरेख में हुआ था। इसलिए उन्हें कनार्टक का भागीरथ कहा जाता है। 32 वर्ष की उम्र में विश्वेश्वरैया ने सिंधु नदी से सुक्कुर कस्बे को पानी भेजने का प्लान तैयार किया। वहीं, सरकार ने सिंचाई व्यवस्था को दुरुस्त करने के लिए एक प्लान बनाया। विश्वेश्वरैया ने एक ब्लॉक सिस्टम बनाया, जिसे सभी ने पसंद किया था। उन्होंने बांध बनाकर उसके पानी को स्टील के दरवाजों से रोका। इस महान अभियंता ने बेहद कम संसाधनों के बावजूद दक्षिण भारत में बांध निर्माण से लेकर सिंचाई तथा जलापूर्ति के क्षेत्र में बड़े-बड़े काम किए। विश्वेश्वरैया ने मैसूर के कृष्ण राज सागर बांध का निर्माण कराया, जिससे मैसूर और मंड्या जिलों का काया पलट हो गया। वाड्यार वंश के शासनकाल में कावेरी नदी पर इस बांध के निर्माण के दौरान देश में सीमेंट नहीं बनता था। इसके लिए इंजीनियरों ने मोर्टार तैयार किया जो सीमेंट से ज्यादा मजबूत था। इस बांध का निर्माण सर एमवी के नाम से प्रसिद्ध विश्वेश्वरैया के जीवन की बड़ी उपलब्धियों में से एक है। विश्वेश्वरैया को 1912 में मैसूर के महाराजा ने अपना दीवान यानी मुख्यमंत्री नियुक्त किया। उनका निधन 1962 में हुआ।
15 सितम्बर को एक दिवस संचयिका दिवस भी मनाते है। यह दिवस मुख्य रूप से विद्यालय में अध्यनरत छात्रों को धन संचय के लिए प्रेरित करने के लिए मनाया जाता है। दरअसल जीवन में धन का संचय होना आवश्यक है और इसके प्रति जागरूकता जीवन के प्रारंभिक दिनों से होनी चाहिए। इसीलिए विद्यालयों में अध्ययनरत छात्रो को इसके लिए जागरूक किया जाता है। उन्हें बैंकिंग और उससे जुड़े हुए गतिविधियों के बारे में विस्तार से बताया जाता है।
रवि जैन (कनिष्ठ अभियंता)