विजय दिवस
16 दिसम्बर 1971 हमारा ‘‘विजय दिवस’’ है। क्या आपको इसके बारे में याद है? इस दिन ऐसा क्या हुआ था कि ये हमारा विजय दिवस बना? बहुत सारे लोग अपने दिमाग पर जोर डाल रहें होंगे। सोच रहे होंगे कि हमारा विजय दिवस तो 26 जुलाई को मनाया जाता है। अब ये 16 दिसम्बर को कौनसा विजय दिवस आ गया। तो चलिये हम आपको बता देते हैं कि वर्ष 1971 में भारत-पाक युद्ध के दौरान 16 दिसंबर को ही भारत ने पाकिस्तान पर अभूतपूर्व विजय हासिल की थी। और उसी उपलक्ष में यह दिन हर वर्ष ‘‘विजय दिवस’’ के रूप में मनाया जाने लगा।
विजय दिवस प्रतीक है पाकिस्तान पर भारत के ऐतिहासिक विजय का। इसी दिन 16 दिसंबर, 1971 को भारत ने पश्चिमी पाकिस्तान को हराकर पूर्वी भाग को स्वत्रंत करा इतिहास रचा था। भारत के लेफ्टिनेंट जनरल जगजीत सिंह अरोड़ा के सामने पाकिस्तान सेना के प्रमुख जनरल नियाजी तथा 93 हजार पाकिस्तानी सैनिकों ने इस युद्ध के बाद घुटने टेके थे। इस युद्ध में भारतीय सेना ने देश के पूर्वी और पश्चिमी छोर पर पाकिस्तान के छक्के छुड़ा दिए थे। पश्चिमी छोर पर भारत ने पाकिस्तान के एक बडे़ हिस्से पर कब्जा कर लिया था। पूर्वी छोर पर भारतीय सेना ने शौर्य और पराक्रम का परिचय देते हुए पूर्वी पाकिस्तान पर नियंत्रण कर लिया और इस तरह से बांग्लादेश आजाद हुआ।
3 दिसंबर, 1971 की शाम को शुरू हुई लड़ाई 16 दिसंबर, 1971 को खत्म हो गई। इस लड़ाई में पाकिस्तान को उसके दुस्साहस और पूर्वी पाकिस्तान के लोगों पर दमन की कीमत चुकानी पड़ी। पाकिस्तान के 93 हजार सैनिकों ने इस युद्ध के बाद भारत के आगे आत्मसमर्पण कर दिया था। इस युद्ध में तत्कालीन थलसेना अध्यक्ष और चीफ ऑफ स्टाफ सैम मानेकशॉ की अगुवाई में भारतीय जवानों ने अपनी जांबाजी की अनूठी मिसाल पेश की।
थल सेना
पश्चिमी छोर पर भारतीय थल सेना ने जबर्दस्त हमला बोलते हुए पाकिस्तान के पंजाब, कश्मीर और सिंध इलाकों में पड़ने वाले करीब साढ़े पांच हजार वर्ग मील इलाके पर कब्जा कर लिया। हालांकि, जंग के बाद शिमला समझौते में भारत ने यह इलाका पाकिस्तान को वापस कर दिया
पूर्वी छोर पर भारतीय सेना ने मुक्ति वाहिनी से हाथ मिलाते हुए मित्र वाहिनी बनाई। लेफ्टिनेंट जनरल जगजीत सिंह अरोड़ा ने पूर्वी पाकिस्तान में भारतीय हमले का नेतृत्व किया। भारतीय सेना ने ढाका में एयर फील्ड को फतह कर लिया। इस बीच भारतीय नौसेना ने पूर्वी पाकिस्तान की ओर जाने वाले समुद्री रास्ते को घेर लिया। महज 13 दिनों तक चली लड़ाई में पूर्वी पाकिस्तान सेना ने जनरल नियाजी के नेतृत्व में समर्पण कर दिया। इस युद्ध में पाकिस्तान के करीब एक-तिहाई सैनिक भारत द्वारा बंदी बना लिए गए।
वायु सेना
पाकिस्तान एयर फोर्स ने भारत-पाकिस्तान के बीच जंग की शुरुआत की थी। पाकिस्तानी एयर फोर्स के शुरुआती हमलों के बाद भारतीय वायुसेना ने मुंहतोड़ जवाब दिया। पाकिस्तान ने महज 60 विमानों के जरिए शुरू में हमले किए। भारतीय वायु सेना के जबर्दस्त हमले से पाकिस्तानी वायुसेना की हालत पतली हो गई। पूर्वी छोर पर पाकिस्तान एयर फोर्स नंबर 14 स्क्वाड्रन को भारतीय वायुसेना ने तबाह कर दिया। इसके साथ ही ढाका एयरफील्ड पर फतह हासिल हुई।
नौसेना
भारतीय नौसेना ने पाकिस्तान के पश्चिमी भाग पर 4-5 दिसंबर की रात को हमला किया। इस हमले का कोड ‘ऑपरेशन ट्राइडेंट’ रखा गया। भारतीय जवानों ने पाकिस्तान के मुख्य युद्ध पोत पीएनएस खैबर और पीएनएस मुहाफिज को नष्ट कर दिया। पीएनएस शाहजहां को बुरी तरह नुकसान पहुंचा। पाकिस्तानी नौसेना के 720 जवान या तो मारे गए या फिर घायल हो गए। पाकिस्तान इस हमले से उबर पाता इसके पहले ही 8 और 9 दिसंबर की रात को भारतीय नौसेना ने ऑपरेशन पायथन छेड़ दिया। नौसेना ने रॉकेट लांचर बोट की मदद से कराची की सड़कों को नुकसान पहुंचाया, जिससे अतिरिक्त सहायता मिलना बंद हो गई। नौसेना ने कराची हार्बर पर खड़े 3 व्यापारिक जहाजों को भी डुबो दिया।
पूर्वी भाग में वाइस एडमिरल कृष्णन के नेतृत्व में नौसेना ने बंगाल की खाड़ी में मोर्चा संभाल कर पूर्वी पाकिस्तान को पश्चिमी भाग से पूरी तरह अलग-थलग कर दिया। 4 दिसंबर के बाद आईएनएस विक्रांत ने पाकिस्तान के कई तटीय शहरों पर हमला बोला। पाकिस्तान ने इसके जवाब में पीएनएस गाजी को भेजा लेकिन इसे विशाखापट्टनम के पास नौसेना ने डुबा दिया।
1971की लड़ाई में पाकिस्तानी सेना भारतीय फौजों के सामने सिर्फ 13 दिन ही टिक सकी। इतिहास की सबसे कम दिनों तक चलने वाली लड़ाइयों में से एक इस लड़ाई के बाद पाकिस्तान के करीब 93हजार सैनिकों ने आत्मसमर्पण कर दिया था। आधुनिक सैन्य काल में इस पैमाने पर किसी फौज के आत्मसमर्पण का यह पहला मामला था।
विजय दिवस के महानायक जिन्होंने इस महासंग्राम में अपूर्व शौर्य और साहस का परिचय दिया था –
1. सेनाध्यक्ष सैम मानेकशॉ
सैम होर्मूसजी फ्रेमजी जमशेदजी मानेकशॉ उस समय भारतीय सेना के अध्यक्ष थे जिनके नेतृत्व में भारत ने सन् 1971 में पाकिस्तान के खिलाफ युद्ध छेड़ा और इसमें विजय प्राप्त की। और हमारे पड़ौसी देश बांग्लादेश का जन्म हुआ।
2. कमांडर ले. जनरल जगजीत सिंह अरोड़ा
जगजीत सिंह अरोड़ा भारतीय सेना के कमांडर थे। वो जगजीत सिंह अरोड़ा ही थे जिनके साहस और युद्ध कौशल ने पाकिस्तान की सेना को समर्पण के लिए मजबूर किया। ढाका में उस समय तकरीबन 30000 पाकिस्तानी सैनिक मौजूद थे और लेफ्टिनेंट जनरल जगजीत सिंह के पास ढाका से बाहर करीब 4000 सैनिक ही थे। दूसरी सैनिक टुकड़ियों का अभी पहुंचना बाकी था। लेफ्टिनेंट जनरल जगजीत सिंह ढाका में पाकिस्तान के सेनानायक लेफ्टिनेंट जनरल नियाजी से मिलने पहुँचे और उस पर मनोवैज्ञानिक दबाव डालकर उन्होंने उसे आत्मसमर्पण के लिए बाध्य कर दिया। और इस तरह पूरी पाकिस्तानी सेना ने भारतीय सेना के सामने आत्मसमर्पण कर दिया।
3. मेजर होशियार सिंह
मेजर होशियार सिंह को भारत पाकिस्तान युद्ध में अपना पराक्रम दिखाने के लिए परमवीर चक्र से सम्मानित किया गया। मेजर होशियार सिंह ने 3 ग्रेनेडियर्स की अगुवाई करते हुए अपना अद्भुत युद्ध कौशल और पराक्रम दिखाया। उनके आगे दुश्मन की एक न चली और उसे पराजय का मुँह देखना पड़ा। उन्होंने जम्मू कश्मीर की दूसरी ओर शकरगढ़ के पसारी क्षेत्र में जरवाल का मोर्चा फतह किया था।
4. लांस नायक अलबर्ट एक्का
1971 के इस ऐतिहासिक भारत पाकिस्तान युद्ध में अलबर्ट एक्का ने अपनी वीरता, शौर्य और सैनिक हुनर का प्रदर्शन करते हुए अपने इकाई के सैनिकों की रक्षा की। इस अभियान के समय वे बहुत ज्यादा घायल हो गये और 3 दिसम्बर 1971 को इस दुनिया को विदा कह गए। भारत सरकार ने इनके अदम्य साहस और बलिदान को देखते हुए मरणोपरांत परमवीर चक्र से सम्मानित किया।
5. फ्लाइंग ऑफिसर निर्मलजीत सिंह सेखों
निर्मलजीत सिंह सेखों 1971 मे पाकिस्तान के विरुद्ध लड़ते हुए वीरगति को प्राप्त हुए। उन्हें मरणोपरांत परमवीर चक्र से सम्मानित किया गया। फ्लाइंग ऑफिसर निर्मलजीत सिंह सेखों श्रीनगर में पाकिस्तान के खिलाफ एयरफोर्स बैस में तैनात थे, जहां इन्होंने अपना साहस और पराक्रम दिखाया। भारत की विजय ऐसे ही वीर सपूतों की वजह से संभव हो पाई।
6. लेफ्टिनेंट अरुण खेत्रपाल
लेफ्टिनेंट अरुण खेत्रपाल को अपने युद्ध कौशल और पराक्रम के बल पर दुश्मन के छक्के छुड़ाने के लिए मरणोपरांत परमवीर चक्र से सम्मानित किया गया। 1971 में हुए भारत-पाकिस्तान युद्ध में अनेक भारतीय वीरों ने अपने प्राणों की कुर्बानी दी। सबसे कम उम्र में परमवीर चक्र पाने वाले लेफ्टिनेंट अरुण खेत्रपाल भी उन्हीं में से एक थे।
7. चेवांग रिनचौन
चेवांग रिनचौन की वीरता और शौर्य को देखते हुए इन्हें महावीर चक्र से सम्मानित किया गया था। 1971 के भारत-पाक युद्द में लद्दाख में तैनात चेवांग रिनचौन ने अपनी वीरता और साहस का पराक्रम दिखाते हुए पाकिस्तान के चालुंका कॉम्पलैक्स को अपने कब्जे में लिया था।
8. महेन्द्र नाथ मुल्ला
1971 भारत-पाक युद्द के समय महेन्द्र नाथ मुल्ला भारतीय नेवी में तैनात थे। इन्होंने अपने साहस का परिचय देते हुए कई दुश्मन लडाकू जहाज और सबमरीन को नष्ट कर दिया था। महेन्द्र नाथ मुल्ला को मरणोपरांत महावीर चक्र से सम्मानित किया गया।
तरुण शर्मा