जीवन-पथ जो कंटकमय हो
विपदाओं का घोर वलय हो
किन्तु कामना एक यही बस
प्रतिपल पग गतिमान चाहिए ।। १।।
हास मिले या त्रास मिले
विश्वास मिले या फाँस मिले
गरजे क्यों न काल ही सम्मुख
जीवन का अभिमान चाहिए ।। २।।
जीवन के इन संघर्षो में
दुःख-कष्ट के दावानल में
तिल-तिल कर तन जले न क्यों पर
होंठों पर मुस्कान चाहिए ।। ३।।
कंटक पथ पर गिरना चढ़ना
स्वाभाविक है हार जीतना
उठ-उठ कर हम गिरें उठें फिर
पर गुरुता का ज्ञान चाहिए ।। ४।।
मेरी हार देश की जय हो
स्वार्थ -भाव का क्षण-क्षण क्षय हो
जल-जल कर जीवन दूँ जग को
बस इतना सम्मान चाहिए ।। ५।।