एक राजा के समक्ष तीन आरोपी प्रस्तुत किये गए। तीनों पर कर चोरी का आरोप था। मंत्री ने पहले आरोपी को आगे कर राजा को बताया- ”इनके खातों में चवन्नी की कर चोरी पकड़ी गयी है।“ राजा ने आरोपी को देखा और कहा- ”तुमसे यह अपेक्षा नहीं थी, चलिए घर जाइये।“
मंत्री ने दूसरे आरोपी को आगे किया और बताया- ”इनके खातों में अठन्नी की गड़बड़ी मिली है।“ राजा दूसरे आरोपी से बोला- ”तुमने यह ठीक नहीं किया, तुम्हें लज्जा आनी चाहिए। चलिए, अपने घर जाइये।“
तीसरे आरोपी पर भी अठन्नी की कर चोरी का आरोप था। उसे देखकर राजा बोला- ”इसे छः महीने के लिए कारागार में डाल दो।“ मंत्री को राजा के इस दण्ड विधान पर बहुत आश्चर्य हुआ।
अगले दिन अवसर पाकर मंत्री ने राजा से पूछा- ”आपने लगभग एक जैसे आरोपों पर भिन्न-भिन्न दण्ड क्यों दिया। दो को तो आपने दण्ड दिया ही नहीं और तीसरे को छः महीने के लिए कारागार में डलवा दिया।“
राजा ने उत्तर दिया- ”आप तीनों आरोपियों से मिल कर आइए और फिर मुझे सूचित कीजिये।“
मंत्री पहले आरोपी के घर पहुँचा जिससे राजा ने कहा था- ”तुमसे यह अपेक्षा नहीं थी।“ वहाँ अफरा तफरी मची थी। आरोपी ने राजदरबार से आते ही आत्महत्या कर ली थी। उसने एक पन्ने पर लिखा था- ”मैं राजा की अपेक्षा पर खरा नहीं उतरा। अब मेरे जीवित रहने का कोई औचित्य नहीं।“ मंत्री सकते में आ गया।
भारी मन से वह दूसरे आरोपी के घर पहुँचा। देखा तो वहाँ ताला लगा था। पड़ोसियों से पूछने पर पता चला कि उसने तो राजदरबार से लौटते ही बैलगाड़ियाँ मँगवा ली थीं और वह कह रहा था- ”मैं राजा की दृष्टि में अपना सम्मान खो चुका हूँ। अब मैं इस नगर में सिर उठाकर नहीं चल सकता। इसलिए अब मैं परिवार सहित कहीं दूर चला जाऊँगा।“ बस इतना कहा और सामान लाद कर रातों रात सपरिवार निकल गया। मंत्री आश्चर्य में डूब गया।
अब वो तीसरे आरोपी से मिलने कारागार पहुँचा। देखा तो वह कारागार में मूँछों को ताव देता हुआ कसरत कर रहा है।
मंत्री ने पूछा- ”कैसे हो ?“ उत्तर मिला- ”बहुत बढ़िया।
लेकिन आपसे एक आग्रह है जेल के खाने की सूची बहुत संक्षिप्त है इसे थोड़ी बड़ी करवाइये।“
मंत्री बोला- ”आपको तनाव नहीं होता छः महीने का कारावास हुआ है।“ आरोपी बोला- ”अजी तनाव कैसा, हमारा तो सारा तनाव अब आपका तनाव है। हम तो अब राजकीय अतिथि हैं। अच्छा हुआ हवा-पानी बदल गया। चार नए मित्र भी मिले हैं।“
गेहम जोषी