हर इक मूरत जरूरत भर का, पत्थर ढूंढ लेती है
कि जैसे नींद अपने आप, बिस्तर ढूंढ लेती है
अगर हो हौसला दिल में, तो मंजिल मिल ही जाती है
नदी खुद अपने कदमों से, समन्दर ढूंढ लेती है
तू नदी है तो अलग अपना, रास्ता रखना
न किसी राह के, पत्थर से वास्ता रखना
पास जाएगी तो खुद, उसमें डूब जाएगी
अगर मिले भी समन्दर, तो फासला रखना
वो जिनके दम से जहाँ में, तेरी खुदाई है
उन्हीं लोगों के लबों से, ये सदा आई है
समन्दर तो बना दिए, मगर बता मौला
तूने सहरा में नदी, क्यूं नहीं बनाई है
हौसलों को रात दिन, दिखला रही है देखिए
परबतों से लड़ रही, बल खा रही है देखिए
किसकी हिम्मत है जो, उसको रोक लेगा राह में …
– डाॅ. सुनील जोगी