पौराणिक शास्त्रों के अनुसार गाय (गौ) विश्व की माता है। मानव समाज में भी माँ शब्द कहना गाय से ही सीखा है। जब गौ वत्स रंभाता है तो माँ शब्द गुंजायमान होता है। गौशाला में बैठकर किए गए यज्ञ हवन, जप तप का फल कई गुना मिलता है। गौ माता महिमामयी और सभी प्रकार से पूज्य है। गौमाता की सेवा से बढ़कर कोई दूसरा महान पुण्य नहीं है। गाय हमारी माता है एवं गौसेवा व रक्षा करना हमारा परम कर्तव्य है।
मातरः सर्वभूतानां गावः सर्वसुखः
‘गौएँ सभी प्राणियों की माता कहलाती हैं। वे सभी को सुख देने वाली हैं।’ (महा. अनु. 69.7)
गौमाता की सेवा भगवत्प्राप्ति के साधनों में से एक है। गौदुग्ध का सेवन करना भी गौ-सेवा है। जब गाय का दूधहमारा आवश्यक आहार हो जाएगा, तब उसकी आपूर्ति के लिए गौ-पालन तथा गौ- संरक्षण की आवश्यकता होगी। गाय के दूध, दही, घी, गौमूत्र तथा गोबर की विशेष महिमा है।
अग्नि, भविष्य, मत्स्य, पद्म आदि पुराणों में गौदुग्ध की महिमा का वर्णन मिलता है। गौदुग्ध में जो विशेष पोषक तत्त्व पाये जातेहैं, वे अन्य किसी के भी (भैंस, बकरी आदि के) दूध में नहीं पाये जाते हैं।
गव्यं तु जीवनीयं रसायनम्।
आचार्य वाग्भट्ट के ‘अष्टांगहृदय’ ग्रंथ में उल्लेख है कि सब पशुओं के दुग्धों में गाय का दुग्ध अत्यंत बलवर्धक और रसायन है।
मध्यकाल में अरब के चिकित्सकों ने और सन् 1867 में रूस और जर्मनी के चिकित्सकों ने दूध के औषधीय महत्त्व को समझा।
भारतीय परंपरा के मत से गाय के शरीर में 33 करोड़ देवता वास होता हैं, एवं गौ-सेवा से एक ही साथ सभी देवता प्रसन्न होते हैं। हिन्दू संस्कृति के अनुसार जिस घर में गाय माता का निवास करती हैं एवं जहाँ गौ सेवा होती है, उस घर से समस्त परेशानियाँ कोसों दूर रहती हैं। भारतीय संस्कृति में गाय को माता का सम्मान दिया जाता हैं इसलिये उसे गौ-माता कहते हैं।
प्राचीन ग्रंथों में सुरभि (इंद्र के पास), कामधेनु (समुद्र मंथन के 14 रत्नों में एक), पद्मा, कपिला आदि गायों महत्व बताया है। जैन पंथ के प्रथम तीर्थंकर ऋषभदेवजी ने असि, मसि व कृषि गौ वंश को साथ लेकर मनुष्य को सिखाया कि हमारा पूरा जीवन गाय पर आधारित है। शिव मंदिर में काली गाय के दर्शन मात्र से काल सर्प योग निवारण हो जाता है।
गाय के पीछे के पैरों के खुरों के दर्शन करने मात्र से कभी अकाल मृत्यु नहीं होती है। गाय की प्रदक्षिणा करने से चारों धाम के दर्शन लाभ प्राप्त होता है, क्योंकि गाय के पैर चारों धाम है। जिस प्रकार पीपल का वृक्ष एवं तुलसी का पौधा आॅक्सीजन छोड़ते हैं। एक छोटा चम्मच देसी गाय का घी जलते हुए कंडे पर डाला जाए तो प्रचुर मात्रा में आॅक्सीजन बनती है। इसलिए हमारे यहाँ यज्ञ हवन अग्नि -होम में गाय का ही घी उपयोग में लिया जाता है। प्रदूषण को दूर करने का इससे अच्छा और कोई साधन नहीं है।
देवताओं और दानवों के द्वारा समुद्र मंथन के समय 5 गायें उत्पन्न हुई, इनका नाम था- नंदा, सुभद्रा, सुरभि, सुशीला और बहुला। ये सभी गायें भगवान की आज्ञा से देवताओं और दानवों ने महर्षि जमदग्नि, भारद्वाज, वशिष्ठ, असित और गौतम मुनि को समर्पित कर दीं। आज जितने भी देशी गौवंश भारत एवं इतर देशों में हैं, वे सब इन्हीं 5 गौओं की संतानें हैं और हमारे पूर्वजों एवं ऋषियों का यह महाधन है। क्या हम सिर्फ गोत्र बताने के लिए ही अपने ऋषियों की संतानें हैं? उनकी सम्पत्ति गौ धन को बचाना हमारा कर्तव्य नहीं ?
धार्मिक ग्रंथों में लिखा है ‘‘गावो विश्वस्य मातरः’’ अर्थात् गाय विश्व की माता है। गौ माता की रीढ़ की हड्डी में सूर्य नाड़ी एवं केतुनाड़ी साथ हुआ करती है, गौमाता जब धूप में निकलती है तो सूर्य का प्रकाश गौमाता की रीढ़ हड्डी पर पड़ने से घर्षण द्वारा केरोटिन नाम का पदार्थ बनता है जिसे स्वर्णक्षार कहते हैं। यह पदार्थ नीचे आकर दूध में मिलकर उसे हल्का पीला बनाता है। इसी कारण गाय का दूध हल्का पीला नजर आता है। इसे पीने से बुद्धि का तीव्र विकास होता है। जब हम किसी अत्यंत अनिवार्य कार्य से बाहर जा रहे हों और सामने गाय माता के इस प्रकार दर्शन हो की वह अपने बछड़े या बछिया को दूध पिला रही हो तो हमें समझ जाना चाहिए की जिस काम के लिए हम निकले हैं वह कार्य अब निश्चित ही पूर्ण होगा।
गौ माता का जंगल से घर वापस लौटने का संध्या का समय (गोधूलि वेला) अत्यंत शुभ एवं पवित्र है। गाय का मूत्र गो औषधि है। माँ शब्द की उत्पत्ति गौ मुख से हुई है। मानव समाज में भी माँ शब्द कहना गाय से सीखा है। जब गौ वत्स रंभाता है तो माँ शब्द गुंजायमान होता है। बच्चों को नजर लग जाने पर, गौ माता की पूँछ से बच्चों को झाड़े जाने से नजर उत्तर जाती है, इसका उदाहरण ग्रंथों में भी पढ़ने को मिलता है, जब पूतना उद्धार में भगवान कृष्ण को नजर लग जाने पर गाय की पूँछ से नजर उतारी गई।
गाय से प्राप्त दूध, घी, मक्खन से मानव शरीर पुष्ट बनता हैं। गाय का दूध, दूध ही नहीं अमृत तुल्य हैं एवं गाय का गोबर चूल्हे, हवन इत्यादि में उपयोग होता हैं और यहाँ तक कि उसका मूत्र भी विभिन्न दवाइयाँ बनाने के काम आता हैं। गाय ही ऐसा जीव हैं जो अन्य पशुओं में सर्वश्रेष्ठ और बुद्धिमान माना है। कहा जाता है भगवान श्रीकृष्ण छह वर्ष में ही गोपाल बने क्योंकि उन्होंने गौ सेवा का संकल्प लिया था। भगवान श्रीकृष्ण ने गौ सेवा करके गौ का महत्व बढ़ाया हैं। गौ के गोबर से लीपने पर स्थान पवित्र होता है। गौ-मूत्र का पान ग्रंथों में अथर्ववेद, चरकसहिंता, राजतिपटु, बाण भट्ट, अमृत सागर, भाव सागर, सुश्रुत संहिता में सुंदर वर्णन किया गया है। काली गाय का दूध त्रिदोष नाशक सर्वोत्तम है। रुसी वैज्ञानिक शिरोविच ने कहा था कि गाय का दूध में रेडियो विकिरण से रक्षा करने की सर्वाधिक शक्ति होती है। गाय का दूध एक ऐसा भोजन है, जिसमें प्रोटीन कार्बोहाइड्रेड, दुग्ध, शर्करा, खनिज, लवण, वसा आदि मनुष्य शरीर के पोषक तत्व भरपूर पाए जाते हैं।
आज भी कई घरों में गाय की रोटी रखी जाती है। कई स्थानों पर संस्थाएँ गौशाला बनाकर पुनीत कार्य कर रही हैं, जो कि प्रशंसनीय कार्य है। साथ ही यांत्रिक कत्लखानों को बंद करने का आंदोलन, माँस निर्यात नीति का पुरजोर विरोध एवं गौ रक्षा पालन संवर्धन हेतु सामाजिक धार्मिक संस्थाएँ एवं सेवा भावी लोग लगातार संघर्षरत हैं।
दुःख इस बात का भी होता है कि लोग गाय को आवारा भटकने के लिए बाजारों में छोड़ देते हैं। उन्हें इनके भूख प्यास की कोई चिंता ही नहीं होती। लोगों को चाहिए कि यदि गाय पालने का शौक है तो उनकी देखभाल भी आवश्यक है, क्योंकि गाय हमारी माता है
राजेश सैनी