अगर हम अच्छी सोच के साथ जीना सीख जाएं
तो बुरी स्थितियां अपने आप ख्त्म हो जाएंगी।
हमारे जीवन में आने वाले उतार-चढाव भी उतने ही स्वाभाविक हैं, जितना कि मौसम का बदलना, पेड़-पौधों का मुरझाना और दोबारा उन पर नई कोपलें फूटना। जो व्यक्ति इस प्रक्रिया को सहजता से स्वीकारता है, वह सुख-दुख दोनों ही स्थितियों में संतुलित और समभाव रहता है पर कुछ लोग ऐसी मुश्किलों से बहुत जल्दी घबरा जाते हैं। उनका आत्मबल कमजोर पड़ने लगता है। विधाता ने हम सभी को विपरीत परिस्थितियों से जूझने की शक्ति समान रूप से दी है पर कुछ लोग अपने अंतर्मन की इस ताकत को पहचान नहीं पाते और ऐसे ही लोग राह में आने वाली छोटी-छोटी बाधाओं से बहुत जल्दी घबरा जाते हैं। अपने अंतर्मन की ताकत को पहचानने वाले लोग हर हाल में शांत और संयमित रहते हैं।
अपने मन को हर हाल में संयमित रखना मनुष्य के लिए सबसे बड़ी चुनौती है। यह सच है कि मानव मन बेहद चंचल है। इसकी गति बिजली से भी तेज है। तभी तो श्रीमद्भगवदगीता जी में भगवान श्रीकृष्ण कहते हैं- ‘इंद्रियां बलवान हैं, इंद्रियों से बलवान मन है और मन से भी ज्यादा शक्तिशाली है बुद्धि।’ मनोबल बढाने का वास्तविक अर्थ अपनी बुद्धि-विवेक को बलवान बनाने से है। मन को अगर कोई काबू कर सकता है तो वह है बुद्धि। मन में अलग-अलग भाव उत्पन्न होते हैं। कुछ अच्छे तो कुछ खराब। भय, क्रोध, चिंता इत्यादि बुरे भाव हैं। प्रेम, सेवा, भक्ति, दान और निर्भयता अच्छे भाव हैं। इसके लिए सबसे पहले यह समझना बहुत जरूरी है कि मन के अवगुणों को दूर कर अच्छे गुणों को कैसे उत्पन्न किया जाए।
जैसे ही आपके सद्गुणों की वृद्धि होगी, आप बडे़ से बडे संकटों से जूझने में सक्षम हो जाएंगे पर इसके लिए व्यक्ति के मन में धैर्य का होना बहुत जरूरी है। ज्ञान एक साधना है, जिसे जीवन भर ऐसे ही अंगीकार करना पड़ता है जैसे कि स्वस्थ शरीर पाने के लिए हम नियमित व्यायाम और योगाभ्यास को अपनाते हैं। ठीक उसी तरह मानसिक शांति के लिए हमें अध्यात्म को भी अपनी जीवनशैली में प्रमुखता से शामिल करना चाहिए। वैराग्य है मार्गदर्शक आत्मबल बढाने के लिए सबसे जरूरी है-वैराग्य। यहां वैराग्य का तात्पर्य गृहस्थ जीवन को त्यागने से नहीं है, बल्कि परिवार में रहते हुए भी संतों जैसा आचरण अपनाने से है लेकिन हम दूसरों की सेवा और सहायता भी तभी कर सकते हैं, जब हमारे भीतर यह सब करने की शक्ति और योग्यता हो। इसलिए सबसे जरूरी है कि हम पहले स्वयं को समर्थ बनाएं।
अतीत से सीखें : सच तो यह है कि कमजोर मनोबल बाहरी मुश्किलों से भी ज्यादा नुकसानदेह होता है। जरा अपने अतीत में झांक कर देखें कि इससे पहले भी जब कभी आपके जीवन में कोई परेशानी आई तो क्या आप उस समस्या से बाहर नहीं निकले? पिछले कुछ वर्षों में आने वाले दुखों को तो आप याद रखते हैं पर अनगिनत सुखों को भुला देते हैं। आज हमारे जीवन में जो भी हो रहा है, वह कुछ दिनों के बाद अतीत का हिस्सा हो जाएगा। इसलिए मुश्किल हालात में भी हमें यही सोचना चाहिए कि आज हमारे साथ जो भी हो रहा है उसमें भी भविष्य के लिए कोई न कोई अच्छाई ही छिपी होगी।
करें खुद का सम्मान : आत्मसम्मान के साथ जीने की कला हमारी बुद्धि को प्रबल बनाती है। बुरे से बुरे वक्त में भी आप दूसरों से दया पाने की उम्मीद कभी न रखें। हम सब एक ही परमेश्वर की संतान हैं। हम अंश हैं उस अमृत के, जो पूरी सृष्टि का आधार है। अमृत का अंश भी अमृत ही हुआ लेकिन इस बात को पूरी तरह अपने अंतर्मन में उतारने से पहले ईमानदारी के साथ विचारों और ज्ञान का गहन आत्ममंथन करना अति आवश्यक है। जिस तरह किसी भी वस्तु का मंथन करने पर उसमें मौजूद नुकसानदेह तत्व विष की तरह बाहर निकल आते हैं, ठीक उसी तरह अपने मन में मौजूद भावनाओं का मंथन करने के बाद उनमें से कुछ नकारात्मक बातें भी बाहर निकल आती हैं, जो व्यक्ति का मनोबल कमजोर कर सकती हैं। इसीलिए कहा जाता है कि हमें अपने सभी अवगुण प्रभु को अर्पित कर देने चाहिए। इसी से बाद हमारी बुद्धि विकसित होगी।
कुरुक्षेत्र है जीवनः यह जीवन एक ऐसी रणभूमि है, जहां प्रतिदिन युद्ध हो रहा है। बाहरी युद्ध में तो हमें अपने शत्रुओं का पता होता है लेकिन इस युद्ध में तो असली शत्रु हमारा मन ही है। वास्तव में हम धर्म-क्षेत्र में थे परंतु मोह के कारण ही वह कुरुक्षेत्र बन गया। मन के भीतर चलने वाले युद्ध में हमें वैराग्य का कवच पहनना पडे़गा। लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए भी कोई रणनीति बनानी होगी। हम सब अभिमन्यु की तरह हैं। हम इस संसार के चक्रव्यूह के भीतर तो घुस आते हैं पर उससे बाहर निकलने का रास्ता हमें नहीं मालूम। केवल आध्यात्मिक ज्ञान ही हमें इससे बाहर निकाल सकता है। शास्त्र ही वो शस्त्र हैं, जो मन के अवगुणों को निर्मूल करके हमारा मनोबल बढ़ा सकते हैं। आज के जीवन में ऑफिस और घर-परिवार ही हमारा कर्म क्षेत्र है। अगर हम अपने कर्म क्षेत्र में निर्भय होकर दायित्वों का निर्वाह करें तो इससे न केवल हमारा आत्मबल बढे़गा बल्कि हमारे जीवन से अज्ञान का अंधकार हमेशा के लिए दूर हो जाएगा।
डॉ. सौरभ व्यास