हम अपनी जिंदगी जीते हुए अक्सर अपने शारीरिक, मानसिक और भावनात्मक पहलुओं को विकसित करने के लिए उससे संबंधित सभी कार्यों को बड़े सुचारू रूप से करते हैं। हमारी यही कोशिश होती है कि हमारा शरीर स्वस्थ रहे, धन-संपत्ति से हम भरपूर रहें और दुनिया के जितने भी रिश्ते-नाते हैं वे सब ठीक-ठाक रहें, ताकि हमारी दुनिया जड़ें मजबूत हों। इसके विपरीत यदि हम अपनी आध्यात्मिक जड़ों को विकसित करना चाहते हैं तो हमें बाहरी दुनिया से ध्यान हटाकर एक नैतिक जीवन जीने का प्रयास करना होगा।
अगर सच्चे दिल से हम एक आध्यात्मिक जीवन जीना चाहते हैं तो उसके लिए अपने आध्यात्मिक वृक्ष (आत्मा) को सींचना होगा। इसके लिए प्रभु ने हमें यह मनुष्य शरीर दिया है, पर अक्सर हम जीवन जीते हुए शब्दों की अपेक्षा अपने कार्यों पर अधिक ध्यान देते हैं। महापुरुषों ने विचारों की ताकत को अच्छे से समझकर स्वयं पर निगरानी रखें।
सदाचारी जीवन में अहिंसा का जीवन जीना भी शामिल है। हमारे शब्दों और कार्यों के अहिंसक होने से पहले हमें अपने विचारों को अहिंसक करना होगा। अगर हम अपने विचारों पर नियंत्रण करेंगे, तभी हम अपने शब्दों और कार्यों को भी नियंत्रित कर सकते हैं। यदि हमारी स्वयं की अहिंसा की जड़ें कमजोर हैं तो हम कैसे किसी दूसरे को अहिंसा का जीवन जीने के लिए कह सकते हैं। हमें दूसरों को सलाह देने से पहले अपनी जड़ों को मजबूत करना चाहिए, यानी शांत करना चाहिए, तभी इसका प्रभाव दूसरों पर पड़ेगा।
इसके अलावा हमें स्वयं के अंदर सच्चाई के गुण का भी विकास करना चाहिए। सभी झूँठ हमारे दिमाग से शुरू होते हैं। यदि हमारे शब्द और कार्य धोखे और बेईमानी से भरे हुए हैं तो यह इसलिए है क्योंकि वे हमारे विचारों से उपजे हैं। यदि हम दिनभर अपने विचारों पर निगरानी रखें और रोजाना रात को उन पर चिंतन करें तो हम पाएँगे कि हमारे विचार ही हैं जो हमें गलत कार्य करने को प्रेरित करते हैं।
हमें चाहिए कि हम बेईमानी और धोखे से भरे हुए विचारों को अपने अंदर पनपने ही न दें। इससे असत्य और धोखेबाज जैसे अवगुण उत्पन्न ही नहीं होंगे। तो आइए! हम उन विचारों को उखाड़ फेंके जो हमें हिंसा और ईमानदारी के गुणों से दूर करते हैं।
चंद्रशेखर जोशी