समुत्कर्ष समिति, उदयपुर
कालेपानी की यातनाएं भी नहीं तोड़ सकी सावरकर के संकल्प को : ओमप्रकाश
उदयपुर 23 दिसम्बर। काल स्वयं मुझसे डरा है, मै नहीं ! अनेक बार फांसी के फंदे को चूमकर , इसके विकराल स्तंभों को झकझोर कर मैं वापस लौट आया …इतने पर भी मैं जीवित रहा …ये मृत्यु की भूल थी…स्वातन्त्र्य वीर विनायक दामोदर सावरकर की इन अमर पंक्तियों को दोहराते हुए प्रताप गौरव केंद्र के निदेशक ओमप्रकाश ने कहा कि भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में महान क्रांतिकारियों में से एक वीर सावरकर भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन के अग्रिम पंक्ति के सेनानी एवं प्रखर राष्ट्रवादी नेता थे। वे विश्व के एकमात्र ऐसे कवि थे जिन्होंने अंडमान के काले पानी के घोर एकाकी यातनामय कारावास में जेल की दीवारों पर कील और कोयले से कविताएं लिखीं, फिर उन्हें याद किया और इस प्रकार याद की हुई 13600 पंक्तियों को उन्होंने जेल से छूटने के बाद पुन: लिखा।
समुत्कर्ष चैरिटी व्याख्यान माला के प्रथम सत्र में अपनी बात को स्पष्ट करते हुए उन्होंने कहा कि 1857 के बाद के काल खण्ड में भारतीय स्वातन्त्र्य समर की अनेक हुतात्माओं को अंग्रेजों व वामपंथी विचारकों ने योजना पूर्वक नेपथ्य में धकेल दिया था l आज इतिहास की पुस्तकों में आप पढते हैं कि कुछ महिमामंडित स्वतंत्रता सेनानियों के अहिंसक और असहयोग आंदोलन ने हमें आजादी दिलाई तो फिर अंग्रेजों ने इनमें से किसी को कालापानी की सजा क्यों नहीं दी, जबकि सावरकर ने तो अंग्रेजों से किसी तरह का असहयोग भी नहीं किया था। वीर सावरकर को भारतीय इतिहास से केवल इसलिए विलोपित कर दिया गया क्योंकि उन्होंने अंग्रेजों का सच उजागर किया था और हमारा इतिहास तो अंग्रेजों व मार्क्सवादियों ने लिखा है तो फिर उन्हें सावरकर की लेखनी कहां से पसंद आती। पहले ब्रिटिश ने और बाद में वामपंथी इतिहासकारों ने हमारे इतिहास के साथ जो खेल किया, उससे वीर सावरकर अकेले मुठभेड़ करते नजर आते हैं।
उन्होंने कहा कि देश का दुर्भाग्य देखिए, भारत की वर्तमान पीढ़ी यह तक नहीं जानती कि वीर सावरकर को आखिर दो जन्मों के कालापानी की सजा क्यों मिली थी, जबकि हमारे इतिहास की पुस्तकों में तो आजादी की पूरी लड़ाई कुछेक लोगों के नाम कर दी गई है। तो फिर आपके मन में यह जिज्ञासा उठना स्वाभाविक ही है कि जब देश को आजाद कराने की पूरी लड़ाई गांधी-नेहरू की अनुगामी टोली ने लड़ी तो उनमें से कितनो को कालापानी की सजा मिली, सावरकर को ही कालापानी की सजा क्यों दी गई जबकि उन्होंने तो भगत सिंह, चंद्रशेखर आजाद और उनके अन्य क्रांतिकारी साथियों की तरह बम-बंदूक से भी अंग्रेजों पर हमला नहीं किया था तो फिर क्यों उन्हें ही दो आजन्म कारावास 50 वर्ष की सजा सुनाई थी।
समुत्कर्ष समिति द्वारा संस्कृति संरक्षण और समाज प्रबोधन के क्रम में सुखाड़िया रंगमंच पर चतुर्थ समुत्कर्ष चैरिटी व्याख्यान माला स्वातन्त्र्य वीर सावरकर का आयोजन किया गया l व्याख्यान माला कि अध्यक्षता समिति अध्यक्ष संजय कोठारी ने की l इस अवसर पर विशिष्ट अतिथि महापौर चन्द्र सिंह कोठारी तथा समुत्कर्ष पत्रिका के सम्पादक वैद्य रामेश्वर प्रसाद तथा उपसंपादक गोविन्द शर्मा थे l समुत्कर्ष समिति द्वारा संचालित कार्यों का विषद परिचय परामर्शद तरुण शर्मा ने कराया l इस अवसर पर अतिथियों द्वारा समुत्कर्ष पत्रिका के स्वातन्त्र्य वीर सावरकर विशेषांक का लोकार्पण किया गया l प्रथम व्याख्यान से पूर्व प्रेरक गीत “लोकमन संस्कार करना ..’” ख्यात गायक और सेंसर बोर्ड से जुड़े तन्मय भट्ट ने प्रस्तुत किया l
द्वितीय सत्र का आरम्भ कैलाश प्रजापत के मधुर ओजपूर्ण गीत ‘भारत माँ के चरण कमल …’ से हुआ l अपनी बात को आगे बढ़ाते हुए प्रताप गौरव केंद्र के प्रारूपकार ओमप्रकाश ने कहा कि सावरकर 28 मई 1883 को जन्मे और 26 फरवरी 1966 को इस दुनिया से प्रस्थान कर गए। लेकिन इससे केवल 56 वर्ष व दो दिन पहले 24 फरवरी 1910 को अंग्रेज परस्त बम्बई न्यायालय ने उन्हें एक नहीं, बल्कि दो-दो जन्मों के कारावास की सजा सुनाई थी। उन्हें 50 वर्ष की कठोर कालापानी की सजा सुनाई गई ।
वीर सावरकर ऐसे देशभक्त थे जिन्होंने 1901 में इंग्लैंड की महारानी विक्टोरिया पर जब नासिक में शोक सभा का आयोजन किया गया तो सबसे पहले उन्होंने इसका खुलकर विरोध करते हुए कहा था कि क्या कोई अंग्रेज हमारे देश के महापुरुषों की मृत्यु पर शोक सभा करते है जब अंग्रेज हमारे देश होकर हमारे बारे में नही सोचते तो भला हमे दुश्मन की रानी की शोक सभा क्यों करनी चाहिए? वीर सावरकर एक ऐसे सिद्धहस्त लेखक थे जिनकी लेखनी ने सबसे पहले अंग्रेजो के दमनकारी सन 1857 के स्वंत्रता संग्राम का इतना सटीक वर्णन किया की इनके पहले ही प्रकाशन से अंगेजी सत्ता घबरा गयी थी यहाँ तक की अंगेजो को इनके प्रकाशन पर रोक लगाना पड़ा था l
ओमप्रकाश ने बताया कि 1857 की क्रांति को साधारण ग़दर बता कुप्रचारित करने के पीछे अंग्रेजों की सोच थी कि भारतीयों को न कभी इस सत्य का पता चले और न ही उनके अंदर गर्व का अनुभव हो। सावरकर ने लगातार डेढ़ वर्ष तक ब्रिटिश दस्तावेज व लेखन को खंगाल कर प्रमाणों के आधार पर अपनी पुस्तक ‘1857 का स्वातंत्र समर’ में सिद्ध किया कि 1857 का विद्रोह एक सैनिक विद्रोह नहीं, बल्कि देश का पहला स्वतंत्रता संग्राम था। वीर सावरकर की यह पुस्तक छपने से पहले की 1909 में प्रतिबंधित कर दी गई । पूरी दुनिया के इतिहास में यह पहली बार था कि कोई क्रान्ति पुस्तक छपने से पहले की बैन कर दी गई हो।
इस पर 1910 में सावरकर को विदेश में ही गिरफ्तार कर लिया गया। भारत लाते समय फ़्रांस तट के निकट सावरकर ने सफर से बीच ही समुद्र में कूद कर अंग्रेजी चुंगल से बचने की कोशिश भी की, लेकिन पकड़े गए। बाद में इंग्लैण्ड और फ़्रांस सरकार सावरकर गिरफ़्तारी विवाद को हेग स्थित अंतरराष्ट्रीय अदालत में ले गई , न्यायालय ने जहाँ वीर सावरकर को अंग्रेजो के सुपुर्द कर दिया तो यूरोप के समाचार पत्र सावरकर की अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता की लडा़ई के लिए मैदान में कूद पड़े। पर इसका कोई परिणाम नहीं निकला l
अंतत: उन्हें भारत लाकर मुकदमे का नाटक कर काला पानी (अंडमान) भेज दिया गया। वीर सावरकर के भाई गणेश सावरकर को भी कारावास की सजा हुई थी और दोनों एक ही जेल में रहते हुए भी दोनों को मिलने नहीं दिया जाता था । अंडमान की सेल्लुलर जेल में सावरकर को कई बार घोर एकांत मे, तो कभी खडी हथकड़ी में, नारियल का तेल निकलने के लिए कोल्हू में बैल की जगह जोता जाता था, जुट की रस्सियाँ बनाने का काम कराया जाता था l निर्धारित मात्र में तेल ना निकालने या रस्सियाँ ना बंट पाने पर वार्डर के हंटर की सजा के अलावा नम्बरदार की भद्दी गलियां सुननी पड़ती थी l
अपने व्याख्यान में उन्होंने कहा कि 12 वर्ष तक काला पानी की सजा काटकर मुक्त हुए सावरकर ने भारत आकर देश की आजादी के लिये कांग्रेस इतर चल रहे प्रयासों को और गति प्रदान की l उन्होंने अपना ध्यान हिन्दू समाज की कुरीतियों को दूर करने, छुआछूत से मुक्ति दिलाने तथा हिंदी भाषा को गौरव मय स्थान दिलाने में लगा दिया l इसके लिए उन्होंने हिन्दू महासभा के मंच का उपयोग किया l
1947 में भारत की आज़ादी की जहाँ उन्हें बहुत ख़ुशी हुई वहीँ विभाजन के दंश से वे तिलमिला कर रह गए l इसके लिए उन्होंने कांग्रेस नेतृत्व को दोषी माना, जिसका परिणाम हुआ की स्वतन्त्र भारत में भी उन्हें दो बार जेल जाना पड़ा l चीन और पकिस्तान के साथ हुए युद्ध में भारत की कुटनीतिक हार ने अस्वस्थ सावरकर को मानसिक रूप से और तोड़ डाला और प्रायोपवेशन द्वारा उन्होंने अपने को भारत माता की गोद में चिर काल के लिए विश्राम दे दिया l वास्तव में सावरकर ने अपने जीवन का एक एक पल भारत माता की सेवा में समर्पित कर दिया l आज की पीढ़ी को सावरकर को जानने, समझाने तथा अपने आचरण में लाने की महती आवश्यकता है l
समुत्कर्ष समिति के अध्यक्ष संजय कोठारी ने सर्व समाजों के श्रोताओ से खचाखच भरे सुखाडिया रंगमंच में सबका धन्यवाद ज्ञापित किया l कार्यक्रम का संचालन डॉ अनिल दशोरा नेेे किया।
संदीप आमेटा
81077 99661
संयोजक
समुत्कर्ष चेरिटी व्याख्यान माला
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B – 7, हिरन मगरी सेक्टर 14,
उदयपुर 313001