परीक्षा का नाम सुनते ही कई को डर लगने लगता है, गला सूखने लगता है और सर चकराने लगता है। कुछ विद्यार्थी तो परीक्षा के दिनों में अवसाद में चले जाते हैं। लेकिन परीक्षा की भट्टी में तपकर ही शिक्षार्थी सोना बनता है वह सोना जिसकी चमक दुनिया को अपनी ओर खींच लाती है।
अगर परीक्षा कक्ष में अचानक से विद्यार्थी ब्लैक आउट हो जाए या पेपर देखकर उसे डर लगने लगे तो ‘डीप ब्रीदिंग थेरपी’ का सहारा लें। इसके तहत लँबी साँसे लें और छोड़ें। एक मिनट तक ऐसा करने से बेहतर महसूस होगा। इसके अलावा ठंडा पानी रखें और बीच-बीच में छोटे-छोटे घूँट में पानी पीएँ।
नौतियों का सामना करने की क्षमता का परीक्षण करना ही परीक्षा हैं। फिर चाहे विद्यार्थियों द्वारा स्कूलों और कॉलेजों मे दी जाने वाली परीक्षा हो या सांसारिक जीवन की परेशानियों से निपटने की क्षमता का परीक्षण।
परीक्षा कभी समाप्त नहीं होती क्योंकि जीवन की समस्याएँ और चुनौतियाँ कभी समाप्त नहीं होती। जब किसी एक समस्या का कुशलता पूर्वक निदान कर दिया जाता हैं, तो तुरंत ही कोई दूसरी समस्या उत्पन्न हो जाती हैं। जीवन में सदैव गतिशीलता विद्यमान रहती हैं, यह किसी एक मुकाम पर ठहरती नहीं है।
विद्यार्थियों पर पढ़ाई का सकारात्मक दबाव होना चाहिए। दबाव अपनी क्षमतानुसार बेहतर करने का होना चाहिए, न कि दूसरों से खुद की तुलना करके खुद को हताश करने का। अधिक दबाव में आने से विद्यार्थियों को शारीरिक और मानसिक दोनों समस्याएँ हो सकती हैं, जिसका दुष्प्रभाव परीक्षा पर पड़ सकता है। विद्यार्थियों को इस बात का ध्यान रखना चाहिए कि यह केवल एक शैक्षणिक परीक्षा है, जीवन की सफलता-असफलता इस पर निर्भर नहीं करती। न ही यह परीक्षा आपकी पूरी जिंदगी निर्धारित करेगी।
हर बच्चे की क्षमता, रुचि और तैयारी अलग होती है। अगर एक पेपर खराब जाता है और विद्यार्थी उसका अफसोस मनाएगा तो बाकी के पेपर भी खराब हो सकते हैं। ऐसे में माँ-बाप की जिम्मेदारी बढ़ जाती है। उन्हें ऐसे में बच्चों का हौसला बढ़ाना चाहिए। विद्यार्थियों को भी लगता है कि पेपर मन मुताबिक नहीं हुआ है तो इस बारे में बहुत अधिक चर्चा करने और प्रश्नों का सही उत्तर देखने से बचना चाहिए। इससे बेवजह की घबराहट बढ़ती है और आगे की परीक्षाएँ प्रभावित होती हैं।
अगर बच्चे का परिणाम उम्मीद के अनुसार न आया हो तो अभिभावक को समझदारी से काम लेने की जरूरत है। याद रखें कि बच्चे ने अपनी तरफ से मेहनत की थी। अति महत्वाकांक्षी पैरेंट्स कई बार बच्चों के लिए मुश्किलें खड़ी कर देते हैं। इस अवस्था में बच्चे पर तंज कसने से बचें। क्योंकि बच्चा इस समय आपसे ज्यादा दुःखी होगा। बच्चे को मोटिवेट करें और उसे उसके प्रदर्शन के लिए बधाई दें।
परीक्षाओं का सामना सिर्फ सांसारिक जीवन जीने वाले को ही नहीं करना पड़ता हैं, वरन सांसारिक जीवन का त्याग कर चुके योगी और तपस्वियों को भी परीक्षाओं के दायरे में आना पड़ता हैं। कभी परीक्षाएँ स्वयं की काबिलियत को जाँचने का आधार बनती है, तो कभी दूसरों की संतुष्टि की परिचायक। अतः जीवन में परीक्षाएँ कभी समाप्त नहीं होती, सिर्फ उसका विषय और स्वरूप ही बदलता रहता हैं।
जैसे कोई पँछी ऊँचाई से गिरने के डर को मन से निकालकर अपने जीवन की पहली उड़ान भरता है उसी तरह हर विद्यार्थी को परीक्षा के डर को मन से निकाल कर सफलता की उड़ान भरनी होगी तभी वह इस संसार रूपी आकाश को अपने पँखों से नाप सकेगा क्योंकि डर के आगे हमेशा जीत होती है।