दीपावली प्रकाश पर्व है। हर तरह के अंधकार के विनाश का पर्व। इसे मर्यादा पुरुषोत्तम राम के आसुरी शक्तियों पर विजय के उपरांत अयोध्या आगमन के दिन से जोड़कर देखा जाता है । इसका संदेश भगवान बुद्ध के ‘अप्प दीपो भवः में निहित है। अप्प दीपो भव यानी अपने दीपक खुद बनो। अप्प दीपो भव के माध्यम से उन्होंने प्रत्येक व्यक्ति को खुद के लिए जिम्मेदार बनने का संदेश दिया है। जब हम खुद के प्रति जिम्मेदार बनते हैं, तो सुव्यवस्था का सृजन स्वतः हो जाता है। हम आत्मालोचन करते हैं तो अपनी आदतें भी सुधारते हैं। अपनी आदतें सुधारेंगे तो उसका असर परिवेश पर आसपास के लोगों पर पड़ेगा ही।
यह एक ऐसा पर्व है जो व्यक्तिगत और
सामूहिक दोनों तरह से मनाया जाता है।
इसलिए इसे सामाजिक और धार्मिक
सौहार्द का पर्व भी कहा जाता है। दीपावली
का पर्व मात्र भारत ही नहीं बल्कि नेपाल,
श्रीलंका, पाकिस्तान, बांग्लादेश,
म्यांमार, थाईलैण्ड, मलेशिया, सिंगापुर,
इण्डोनेशिया, आस्ट्रेलिया, न्यूजीलैण्ड,
फिजी , माॅरीशस, केन्या, तंजानिया,
दक्षिण अफ्रीका, गुयाना, सूरीनाम,
त्रिनिडाड और टोबैगो, नीदरलैण्ड,
कनाडा, ब्रिटेन, संयुक्त अरब अमीरात तथा
संयुक्त राज्य अमेरिका में भी हर्षोल्लास से
मनाया जाता है। भारतीय मूल के लोगों की
उपस्थिति विश्व के विभिन्न देशों में
जैसे-जैसे बढ़ रही है, वैसे-वैसे इस त्योहार
का वैश्विक विस्तार हो रहा है।
दीपावली आलोक पर्व है। दीप का प्रज्वलन केवल एक रीत भर नहीं है, केवल बाहरी क्रिया नहीं है, यह आंतरिक अनुष्ठान है, स्वयं को दीप्त करने का। आत्मदीप बनने का। हम बिना दीप्ति के, बिना जीवट की लौ के, मिट्टी के निष्प्राण अस्तित्व ही तो हैं। जिजीविषा की लौ के प्रज्वलित होने पर क्रियाशील दीप हो जाते हैं। नित्य नई ऊँचाइयों को छूता यह विश्व, प्रज्वलित दीपों का वह संसार है जिसके लिए प्रत्येक मानवीय उपलब्धि दीपावली है।
यह आसुरी शक्तियों पर विजय का प्रतीक-पर्व है। इसे चेतना- पर्व के रूप में मनाया जाना चाहिए। प्रकाश का अर्थ ही यही हैः आत्मप्रकाश, सचेतनता यानी ‘अप्प दीपो भव।’ दीपावली हमें समूह की शक्ति का भी संकेत देती हैं। यहाँ अकेला दीपक नहीं जलाया जाता, दीपों की पंक्तियाँ होती हैं। प्रकाश बहुगुणित हो जाता है। संदेश यह है कि हमें भी आसुरी शक्तियों के खिलाफ अंधकार के खिलाफ एक होकर संघर्ष करना चाहिए अर्थात् ‘संघे शक्ति कलौयुगे।’
दीपावली न सिर्फ धार्मिक त्योहार है बल्कि समग्र सुख और समृद्धि का अर्थशास्त्र है। इसका संबंध मौसम और प्रकृति के साथ मानवीय समाज के कुशल प्रबंधन का परिचय देता है। इसके अध्ययन करने वालों ने पाया कि यह त्योहार धन पैदा करने के साथ-साथ उचित वितरण की नीतियाँ भी इसमें निहितार्थ है।
दीप पर्व पर एक छोटी-सी, मगर अच्छी शुरुआत स्वयं के स्तर पर कर सकते हैं। दिवाली पर लक्ष्मी पूजन के वक्त दीप तो जलाते ही हैं, तो उसकी संख्या कुछ और बढ़ा दी जाए। इससे हमारे कुंभकार बंधुओं के घर में भी दिवाली की खुशियाँ आएँगी। इसके अलावा दिवाली पर हम एक संकल्प-जैसा कुछ ले सकते हैं कि अपने बच्चों को देसी शिल्पकारों, हस्तशिल्पियों, हुनरमंदों की बनाई वस्तुएँ उपहार में देंगे, चाहे वह कोई खिलौना हो, सजावटी सामान हो, या कोई चित्र हो। ऐसा करने पर हमारे बच्चों को यह दिवाली याद भी रहेगी और ‘वोकल फाॅर लोकल’ के दौर में शिल्पकारों की मदद भी हो जाएगी।