‘‘चैत्रे मासि जगद् ब्रह्मा ससर्ज प्रथमेऽहनि,
शुक्ल पक्षे समग्रेतु सदा सूर्योदये सति ।’’
ब्रह्म पुराण में वर्णित इस श्लोक के अनुसार चैत्र मास के प्रथम सूर्योदय पर ब्रह्मा जी ने सृष्टि की रचना की थी। वर्षारंभ का दिन अर्थात् नववर्ष दिन । इसे कुछ अन्य नामों से भी जाना जाता है, जैसे- संवत्सरारंभ, विक्रम संवत् वर्षारंभ, वर्ष प्रतिपदा, युगादि, गुड़ी पड़वा इत्यादि ।
नव संवत्सर का ऐतिहासिक महत्व है। इस दिन के सूर्योदय से भगवान ब्रह्मा जी ने सृष्टि की रचना की थी और उनके द्वारा निर्मित सृष्टि के प्रमुख देवी-देवताओं, यक्ष-राक्षस, गंधर्व, ऋषि-मुनि, नदियों, पर्वतों, पशु-पक्षियों, कीट-पतंगों का पूजन किया जाता है। सम्राट विक्रमादित्य ने इसी दिन राज्य स्थापित किया और उन्हीं के नाम पर विक्रमी संवत का नाम पड़ा।
इस वर्ष विक्रमी संवत् 2081 प्रारंभ हो रहा है। श्री राम और युधिष्ठिर के राज्याभिषेक का यही दिन है। शक्ति की उपासना अर्थात् नवरात्र का पहला दिन यही होता है। इसी दिन भगवान श्रीराम ने बाली का वध भी किया था। विक्रमादित्य की भाँति ही शालिवाहन ने हूणों को परास्त कर दक्षिण भारत में इसी दिन अपना राज्य स्थापित किया और शक संवत् की स्थापना की। मराठा साम्राज्य के अधिपति छत्रपति शिवाजी महाराज ने इसी दिन हिन्दू पदशाही का भगवा विजय ध्वज फहराकर हिन्दवी साम्राज्य की नींव रखी थी। महर्षि दयानंद जी ने भी आर्य समाज की स्थापना इसी दिन करना शुभ संकेत माना था।
भारत में अलग-अलग राज्यों में नव वर्ष की तिथियों और नामों में भिन्नता है। महाराष्ट्र में इसे गुड़ी-पड़वा के नाम से, पंजाब में बैशाखी जो 13 अप्रैल को मनाते हैं। सिख नानकशाही कैलेंडर के अनुसार 14 मार्च को होला मोहल्ला नया वर्ष होता है। गोवा में कोंकणी नाम से, आंध्रप्रदेश और तेलंगाना में उगादि नाम से, कश्मीरी पंडित इसे नवरोह, बंगाल में नबा बरसा, असम में बिहू, केरल में विशु, तमिलनाडु में पुथंडु नाम से मनाते हैं। इसी प्रकार अन्य प्रदेशों में भी अलग-अलग नाम और तिथि को नव वर्ष मनाया जाता है।
नव संवत्सर फाल्गुन मास के बाद आता है। पूरे भारत, खासकर उत्तर भारत में फाल्गुन मास होली के गीतों, प्यार- मोहब्बत के रंगों और उमंगों से रंगा होता जो सामाजिक एकता का प्रतीक भी है। इन्हीं रंगों और उमंगों से नव संवत्सर का उल्लास और बढ़ जाता है। चैत्र मास की शुक्ल प्रतिपदा को ही राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के संस्थापक डॉ. केशव बलिराम हेडगेवार जी का जन्मदिन धूमधाम से मनाया जाता है जिन्हें भारत की सांस्कृतिक एकता और आधुनिक भारत के निर्माता के रूप में हम जानते हैं।
आज आवश्यकता है कि हम वर्तमान पीढ़ी को भारतीय सनातन संस्कृति से परिचित कराकर गौरव की अनुभूति कराएँ जो पश्चिम की उपभोक्तावादी संस्कृति का आलिंगन किये हुए है।