सोमनाथ से अयोध्या तक पुनर्निर्माण का पथ भारतवर्ष की सामूहिक स्मृति जागरण का अविजेय, अमर्त्य, शत्रु दलन, सज्जन प्रतिपालक ज्योति पर्व है। अब से भारत एक नया मन, नया कलेवर धारण करने वाला है। अयोध्या में इस शक्ति के ऊर्जा केंद्र की प्राण प्रतिष्ठा हो रही है- मंदिर मात्र की नहीं।
प्राण प्रतिष्ठा, का अर्थ ‘जीवन शक्ति की स्थापना’ या ‘देवता को जीवन में लाना’ है। यह एक अनुष्ठान है जो एक देवता को एक मूर्ति में आह्वान करने, उसे एक पवित्र और दिव्य इकाई में बदलने के लिए किया जाता है। एक बार जब प्राण प्रतिष्ठा पूरी हो जाती है, तो वह प्रतिमा एक देवता में बदल जाती है जो प्रार्थना स्वीकार कर सकती है और उपासकों को आशीर्वाद दे सकती है।
धार्मिक दृष्टिकोण से भगवान राम देश के बहुसंख्यक समाज के सबसे अधिक पूजे जाने वाले देवता हैं और उन्हें आज भी पूरा समाज मर्यादा के प्रतीक के रूप में स्वीकार करता है। अयोध्या में रामलला का उनके जन्मस्थान में प्रवेश और मंदिर में प्राण-प्रतिष्ठा समारोह भारतवर्ष के पुनर्निर्माण के अभियान की शुरुआत होगी। इससे नए भारत का उदय होगा। भारतवर्ष का पुनर्निर्माण सद्भाव, एकता, प्रगति, शांति और सभी की भलाई के लिए जरूरी है।
अयोध्या में राम मंदिर के वास्तु का अवसर राष्ट्रीय गौरव के पुनर्जागरण का प्रतीक है। यह आधुनिक भारतीय समाज द्वारा श्रीराम के चरित्र के पीछे के जीवन दर्शन की स्वीकृति का भी प्रतीक है।
विदेशी आक्रांताओं ने भारत में उर्जा के केंद्र मंदिरों को चुन चुनकर नष्ट किया। किसी राष्ट्र और समाज को हतोत्साहित करने के लिए उनके धार्मिक स्थलों को नष्ट करना, यह उन आक्रांताओं की वैश्विक नीति थी। उन आक्रांताओं का उद्देश्य भारतीय समाज को हतोत्साहित करना था, ताकि वे कमजोर समाज वाले भारत पर बेरोकटोक शासन कर सकें। अयोध्या में श्रीराम मंदिर का विध्वंस भी इसी इरादे और मकसद से किया गया था। आक्रांताओं की यह नीति सिर्फ अयोध्या या किसी एक मंदिर तक ही सीमित नहीं थी, बल्कि पूरे विश्व के लिए एक युद्ध रणनीति थी।
अयोध्या में प्रभु श्री राम के बाल स्वरूप के मंदिर में प्राण प्रतिष्ठा यह भारत की विजय पाने की सुप्त प्रवृत्ति, काल को मात देने वाली जिजीविषा और सामूहिक सांगठनिक शक्ति का ऐसा ऐतिहासिक प्रकटीकरण है, जो धरातल पर आदि शंकर के बाद या राजनीतिक स्तर पर राजाराज चोल, कृष्णदेवराय, उनसे पूर्व विक्रमादित्य, अशोक के बाद कभी संभव हुआ नहीं।
दुर्बल, आत्मविस्मृत, समझौतावादी यही पिछले सेकुलर युग में हिंदू की पहचान थी। उस छवि के टूटने और नवीन साहसी निर्भीक हिंदू के उदय से जन्मी वेदना भारत के शत्रुओं को होना स्वाभाविक है।
अयोध्या का अर्थ है एक ऐसा शहर, जहाँ कोई युद्ध न हो, एक संघर्ष रहित स्थान। वर्तमान अवसर पर, पूरे देश में अयोध्या का पुनर्निर्माण समय की माँग है और यह हम सभी का कर्तव्य भी है।