कस ली है कमर अब तो, कुछ करके दिखाएंगे,
आजाद ही हो लेंगे, या सर ही कटा देंगे।
हटने के नहीं पीछे, डरकर कभी जुल्मों से,
तुम हाथ उठाओगे, हम पैर बढ़ा देंगे।
बेशस्त्र नहीं हैं हम, बल है हमें चरखे का,
चरखे से जमीं को हम, ता चर्ख गुंजा देंगे।
परवा नहीं कुछ दम की, गम की नहीं, मातम की,
है जान हथेली पर, एक दम में गँवा देंगे।
उफ तक भी जुबाँ से हम हरगिज न निकालेंगे,
तलवार उठाओ तुम, हम सर को झुका देंगे।
सीखा है नया हमने लड़ने का यह तरीका,
चलवाओ गन मशीनें, हम सीना अड़ा देंगे।
दिलवाओ हमें फाँसी, ऐलान से कहते हैं,
खून से ही हम शहीदों के, फौज बना देंगे।
मुसाफिर जो अंडमान के, तूने बनाए, जालिम
आजाद ही होने पर, हम उनको बुला लेंगे।
अशफाक उल्ला खां