विश्व में सर्वाधिक लेखन गीता के ज्ञान पर ही हुआ है। गीता पर विश्वभर में अनेक व्याख्यान, भाष्य, टीकाएँ लिखी गई और जिसने उसे जैसा समझा वैसा लिखा या प्रवचन दिया। गीता को पढ़ना और गीता की व्याख्याओं आदि को पढ़ने में बहुत अंतर है। गीता को समझने के लिए सिर्फ गीता ही पढ़ना चाहिए। गीता महाभारत का एक अंश है तो उसे महाभारत के साथ ही पढ़ना ही सही मार्ग है। गीता पर कुछ खास लोगों द्वारा की गई व्याख्या को पढ़ना चाहिए जिससे एक नया दृष्टिकोण समझने और विकसित होने में मदद मिलती है। आइये, कुछ खास रचनाकारों और उनकी रचनाओं के नाम जानते हैं।
1. शंकराचार्यः गीता का सबसे पहला ज्ञात भाष्य आदि शंकराचार्य ने लिखा, जिसे ‘शांकर भाष्य’ कहा जाता है। आदि शंकराचार्य ने इस महान ग्रंथ को अपने ‘प्रस्थानत्रयी’ में स्थान दिया। उन्होंने प्रस्थानत्रयी के अन्तर्गत वेदान्त सूत्र, एकादश उपनिषदों (ईशावास्य, केन, कठ, प्रश्न, मुण्डक, माण्डूक्य, ऐतरेय, तैत्तिरीय, श्वेताश्वतर, छान्दोग्य व बृहदरण्यक) के साथ गीता को भी सम्मिलित किया और इन सभी पर भाष्य लिखा।
2. बाल गंगाधर तिलकः बालगंगाधर तिलक ने गीता रहस्य नाम से गीता पर भाष्य ग्रंथ लिखा। बर्मा के मांडले जेल में कालापानी भुगतते हुए तिलक महाराज ने नवंबर 1910 से मार्च 1911 के बीच मात्र एक सौ पाँच दिनों में ही बारह सौ दस पृष्ठों का यह भाष्य-ग्रंथ लिख दिया था।
3. श्रील प्रभुपादः अन्तर्राष्ट्रीय कृष्ण भावनामृत संघ (इस्कान) के संस्थापक तथा हरे राम हरे कृष्ण आन्दोलन के प्रवर्तक श्रील प्रभुपाद के विश्वप्रसिद्ध गीता-भाष्य- ‘श्रीमद्भागवत गीता यथा रूप’ का नजरिया बहुत अलग ही है।
4. ओशो रजनीशः ओशो रजनीश ने गीता में कुछ भी नहीं लिखा उन्होंने गीता पर जो अद्भुत प्रवचन दिए उसे ही लिपिबद्ध कर उसका नाम ‘गीता दर्शन’ रखा गया। यह साहित्य लगभग 8 भागों में है।
5. महात्मा गांधीः महात्मा गांधी ने अपने सत्य के प्रयोग के अलावा गीता पर भी गीता माता लिखी है।
6. विदेशी लेखकः चाल्र्स विलिकन्स (1749-1836) ने सन 1776 में गीता का अंग्रेजी में अनुवाद कराया। बाद में एडविन अर्नाल्ड नामक किसी अंग्रेज विद्वान ने भी ‘द सांग सेलेस्टियस’ शीर्षक से अंग्रेजी भाष्य लिखा, जो 1885 में प्रकाशित हुआ। विलियम जोन्स (1746-1794) ने ‘मनुस्मृति’ का अनुवाद ईस्ट इंडिया कम्पनी की कानून-व्यवस्था को सुदृढ़ करवाने के लिए करवाया था, उसी तरह कम्पनी के औपनिवेशिक शासन की जड़ें जमाने के निमित्त तत्कालीन अंग्रेज गर्वनर जनरल वारेन हेस्टिंग्स ने इसका अंग्रेजी अनुवाद करवाया था। फ्रेंच विद्वान डुपरो ने 1778 में इसका फ्रांसीसी में अनुवाद किया। अमेरिका के प्रसिद्ध दार्शनिक विल डयून्ट तथा हेनरी डेविड थोरो और इमर्सन से लेकर वैज्ञानिक राबर्ट ओपन हीमर तक सभी गीता ज्ञान से प्रभावित थे। थोरो स्वयं बोस्टन से 20 किलोमीटर दूर बीहड़ वन में, वाल्डेन के एक आश्रम में बैठकर गीताअध्ययन करते थे। इमर्सन एक पादरी थे, जो चर्च में बाइबिल का पाठ करते थे। परन्तु रविवार को उन्होंने चर्च में गीता का पाठ प्रारम्भ कर दिया था। अत्यधिक विरोध होने पर भी उन्होंने गीता को ‘यूनिवर्सल बाइबिल’ कहा था। उन्होंने गीता का अनुवाद भी किया था।
7. अन्य संतः रामानुजाचार्य, मध्वाचार्य, निम्बार्काचार्य, भास्कराचार्य, वल्लभाचार्य, श्रीधर स्वामी, आनन्द गिरि, संत ज्ञानेश्वर, बलदेव विद्याभूषण, आदि अनेक मध्यकालीन आचार्यों ने भी तत्कालीन युगानुकूल आवश्यकतानुसार भगवद्गीता के भाष्य प्रस्तुत किए। हालाँकि इनके अलावा गीता पर कई टिप्पणीकार भी हुए हैं जिन्होंने कुछ ना कुछ कहा है, जैसे महर्षि अरविंद, रवीन्द्रनाथ ठाकुर, स्वामी विवेकानंद। स्वामी दयानंद सरस्वती ने भी गीता पर अपने वक्तव्य दिए हैं।
राजेश गोराणा