आत्मज्ञान के लिए निश्चित रूप से संयम जरूरी है। संपूर्ण शक्ति मान में समाहित व्यक्ति आत्मशोधन करके आत्मसिद्धि प्राप्त करता है। एक बार बोला झूठ जिस प्रकार सैकड़ों झूठों की गणना में आता है और उसकी कालिमा झूठे व्यक्ति के रूप में होती है इसी प्रकार पथ से विचलित व्यक्ति प्रयास के उपरांत अपने को संभालने में अक्षम होता है। विषयों में फंसा व्यक्ति यदि चिंतन करता है और आत्मबोध नहीं कर पाता तो वह उन्हीं दो नौकाओं में चढ़े व्यक्ति के समान है, जो किसी का सहारा न पाकर डूब जाता है। सैकड़ों कुएं अपर्याप्त दूरी तक बनाने में व्यक्ति प्यासा ही रहता है। अधूरे बने कुएं से जल प्राप्ति का विचार करना दिन में नक्षत्रों को खोजने का प्रयास है।
आत्म अवलोकन का अर्थ है अपने आप को देखना। अर्थात् किसी कार्य को करने या होने के बाद उसके करने में हमारे द्वारा अपनाई गई क्रिया और विचार पद्धति का विश्लेषण। यानी, हमने किसी बात को कैसे सोचा और समझा व उसे किस प्रकार क्रियान्वित किया।
आत्म अवलोकन के द्वारा हमें अपनी गलतियों से सीखने और अच्छे किए गए कार्य को और बेहतर ढंग से करने का मौका मिलता है। महात्मा बुद्ध का कहना है कि व्यक्ति को जितना कोई बाहरी सिखा सकता है, उससे कहीं अधिक वह अपने स्वाध्याय एवं आत्म अवलोकन तथा आत्म चिंतन से सीख सकता है। इसलिए वह हमेशा कहते हैं, ‘अप्प दीपो भव’ अर्थात् अपने दीपक स्वयं बनो। यानी, अपने बुद्धि, चिंतन एवं आत्म अवलोकन से अपने जीवन को प्रकाशित करो। इस प्रकार प्राप्त किया हुआ ज्ञान कभी विस्मृत नहीं होता और हमेशा व्यक्ति को सही निर्णय लेने में मददगार होता है। क्योंकि यह गहन अनुभव चिंतन और आत्म अवलोकन पर आधारित है।
आत्म अवलोकन के द्वारा सीखने की प्रक्रिया ऐसी होती है कि हम उसमें शांत भाव से बैठ कर किसी समस्या या बिंदु के बारे में चिंतन कर सकते हैं। शांति से चिंतन करने पर हमें उसके समस्त गुण-दोष समझ में आ जाते हैं। हमारे ऊपर मानसिक दबाव न होने के कारण हम उस अनुभव या चिंतन से पूर्ण होकर स्थित हो सकते हैं। इस प्रकार आत्म अवलोकन के द्वारा हमारी समझने की भावनात्मक क्षमता और विश्लेषण करने की बौद्धिक क्षमता दोनों का विकास होता है। उदाहरण के लिए भारतीय चिंतन परंपरा में मन को एकाग्र करने के लिए ध्यान की जो पद्धति विकसित है, वह इसी का प्रकट रूप है। जिसमें हम शांत भाव से स्थित बैठकर किसी समस्या या विचार पर चिंतन, विश्लेषण व समाधान करते हैं। किंतु यह तभी संभव है जब हम इसे बिना उद्वेग अथवा मानसिक दबाव के कर सकें। छात्र जीवन में भी आत्म अवलोकन की महती आवश्यकता है।
अपने को बिना जाने और समझे जब हम आगे बढ़ने लगते हैं और लक्ष्य निर्धारित कर लेते हैं। इससे जीवन भर भटकाव होता रहता है। जब हम अपनी प्रतिभा को बिना पहचाने आगे बढ़ेंगे तो भटकना स्वाभाविक है। ऐसे में यह जरूरी है कि लक्ष्य निर्धारित करने और उस पर आगे बढ़ने से पहले अपने आप को जाने और समझें। प्रत्येक क्षण सावधानीपूर्वक उस आनंद के घनस्वरूप सृष्टि कर्ता को पहचानें तथा अंतर्मन से विचार करें कि हम कहीं पर अपने लक्ष्य में असावधानी तो नहीं कर रहे हैं, क्योंकि असावधानी हमें लक्ष्य से भटकाती है। व्यक्ति अपने स्वार्थ और लालच में अपने लक्ष्य को भूल जाता है और उसे माता-पिता बंधु बांधव सभी शत्रुवत दिखाई देते हैं।
जैसे असावधानी में एक गेंद सीढ़ी पर गिरती है तो वह ऊपर की ओर नहीं, बल्कि सीढ़ी दर सीढ़ी नीचे चली जाती है और अपने लक्ष्य को नहीं प्राप्त कर पाती इसी प्रकार यह मन एक बार असावधानी में भटका तो नित्य भटकता ही है। वह आत्मस्वरूप को पहचान नहीं पाता, धीरे-धीरे अधःपतन करता है। वह नाश की ओर जाता है तथा अज्ञानी की संज्ञा में आता है। जो व्यक्ति आत्मचिंतन, आत्मशोधन व नित्य आत्मा रूपी गोमुख से निकली हुई ब्रह्म ज्ञान रूपी सुरसरि में स्नान करता है, अपने कलुषों को धोता है तथा अपने आपको ब्रह्म में समाहित करते हुए आत्मसिद्धि प्राप्त करता है। उसकी सावधानी उसे परम पद प्रदान करती है।
गोपाल लाल माली