एक धनी सेठ था। उस सेठ के पास सुख सुविधा के लिए ऐसी सभी वस्तुएं थी जो ऐशो आराम से रहने के लिए उचित मानी जाती है। उसकी एक पुश्तैनी हवेली भी थी जो बहुत विशाल थी और जिसकी उसे साफ-सफाई करवानी थी। लेकिन वह पूरे घर की साफ-सफाई एक साथ नहीं करवाना चाहता था क्योंकि पूरे घर की एक साथ सफाई करवाने पर उसे सारा सामान इधर से उधर करना पड़ता जिससे बहुत समय ख़राब होता और सामान को संभालने में भी बहुत दिक्कतें आती।
इसलिए उसकी इच्छा थी कि कोई ऐसा मजदूर मिल जाए जो एक दिन में केवल एक कमरा साफ करें। अतः इस कार्य के लिए उसने कई मजदूरों से बात की लेकिन सभी पूरे घर को एक साथ साफ करने के लिए कह रहे थे। जब कहीं बात नहीं बनी तो सेठ ने अतुल नाम के एक बारह- तेरह साल के मजदूर लड़के को काम पर लगा दिया। अतुल रोज समय पर हवेली आता और एक कमरा साफ करके अपने घर चला जाता। इस प्रकार उसने घर के बाहरी कमरों को कुछ दिनों में साफ कर दिया।
बाहर के कमरों की सफाई हो चुकी थी इसलिए अब वह घर के आन्तरिक कमरों की साफ सफाई करने लगा। एक दिन वह सेठ के शयनकक्ष की सफाई करने गया तो उस कमरे में रखी कीमती वस्तुओं को देखकर अतुल की आंखें खुली की खुली रह गई।
वह अपने आप को रोक नहीं पाया और कमरें में रखी चीजों को खूब पास से ध्यानपूर्वक उठा-उठाकर देखने लगा। उसको सभी चीजें बहुत अच्छी लग रही थी लेकिन एक सोने की घड़ी के प्रति उसका बाल मन आकर्षित होने लगा और यह आकर्षण कही न कही उसके नैतिक संस्कारों की जड़ों को हिला रहा था। आखि़रकार वह लालच के जाल में फंस ही गया और उस घड़ी को बार-बार उठा कर देखने लगा। कान से लगाकर घड़ी की मीठी आवाज भी सुनी और अनगिनत बार हाथ पर भी बांध कर देखी।
अपने हाथ पर घड़ी उसे बहुत खूबसूरत लग रही थी। अब तो उसका ध्यान उस घड़ी पर ही केंद्रित होकर रह गया और उसके मन से एक आवाज उठी- ‘‘यदि यह घड़ी मुझे मिल जाती’’। लेकिन अतुल का बाल मन यह नहीं समझ पा रहा था कि बिना पूछे घड़ी को अपना बना लेना चोरी कहलाता है। उसी वक्त घर की मालकिन यह देखने के लिए आ गई कि आखिर अतुल क्या कर रहा है जो वह दोपहर के खाने के लिए न आया। मालकिन ने अतुल के हाथ में घड़ी देखी तो दरवाजे की आड़ में ही रुक गई।
बहुत देर तक घड़ी हाथ में लिए वह सोचता रहा क्या मैं इसे ले लूँ और ले तो लूँगा पर यह तो चोरी होगी। चोरी शब्द मन में आते ही उसका सारा शरीर कांप उठा। उसके लिए यह किसी संकट की घड़ी से कम नहीं लग रहा था।
ऐसे समय में उसे अपने माँ की दी हुई सीख याद आ गई कि ‘‘बेटा कभी किसी की चीज नहीं चुराना, चाहे तुम्हें भूखा ही क्यों न रहना पड़े क्योंकि चोरी करना महापाप होता है। भले ही कोई इन्सान तुम्हें चोरी करते देखे या न देखे पर ईश्वर अवश्य देख लेता है। वह चोरी करने पर बहुत बड़ी सजा देता है। यह याद रखना कि चोरी एक न एक दिन जरुर पकड़ी ही जाती है और तब सजा जरुर मिलती है।’’
माँ की बाते याद आते ही अतुल को लगा कि ईश्वर उसे देख रहे है और उन्होंने उसके मन की चोरी वाली बात जान ली है। वह घबराकर रोने लगा और घड़ी को वही मेज पर रखकर यह कहता हुआ बाहर भागा- माँ, मैं चोर नहीं हूँ, मैं कभी चोरी नहीं करूँगा, मुझे बचा लो माँ, मुझे जेल नहीं जाना है।
मालकिन यह सब देख भावविह्नल हो गई और अतुल को पकड़ कर गले से लगा लिया और उसे चुप कराते हुए बोली ‘‘बेटा तुमने कोई चोरी नहीं की। तुम्हे डरने की जरुरत नहीं है। तुम तो बहुत ईमानदार हो।’’
मालकिन ने खुद घड़ी अपने हाथों से अतुल को देनी चाही लेकिन उसने लेने से मना कर दिया। यह देख मालकिन बहुत खुश हुई और मन ही मन सोचा कि जिस माँ ने अपने बेटे को नैतिकता की इतनी अच्छी शिक्षा दी है उस माँ से तो जरुर मिलना चाहिए और वह अतुल के साथ उसके घर गई।
मालकिन ने अतुल की माँ को सारी बताई और कहा ‘‘जिंदगी में हम कितने सही और कितने गलत है यह बात सिर्फ दो ही शख्स जानते है एक ‘ईश्वर’ और दूसरा आपकी ‘अंतरात्मा’। आपने अतुल को अपनी ‘अंतरात्मा’ की आवाज सुनना सीखा दिया है।
आपने अपने बच्चें में बहुत अच्छे संस्कार के बीज बोए हैं। गरीब होकर भी आप इतनी ईमानदार है और चाहती है कि बच्चा भी ईमानदार बनें। आप धन्य है और आपका प्रयत्न सफल हुआ क्योंकि आपका यह बच्चा बहुत ईमानदार है और सदा ही ईमानदार रहेगा। अब से आपके बच्चे की शिक्षा-दीक्षा का खर्चा मैं दूंगी।
कांची शर्मा