चंद्रमा की ओर भारत की ऐतिहासिक यात्रा प्रारम्भ
भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (ISRO) ने गत 22 जुलाई को चंद्रयान-2 की सफल लॉन्चिंग के साथ ही अंतरिक्ष में एक और इतिहास रच दिया। चांद पर भारत के दूसरे महत्वाकांक्षी मिशन चंद्रयान-2 को चेन्नई से लगभग 100 किलोमीटर दूर श्रीहरिकोटा के सतीश धवन अंतरिक्ष केन्द्र में दूसरे लांच पैड से प्रक्षेपित किया गया। चंद्रयान-2 का प्रक्षेपण भारत के सबसे शक्तिशाली रॉकेट GSLV-मार्क III-M1 (बाहुबली) के जरिए दोपहर ठीक 2 बजकर 43 मिनट पर किया गया। प्रक्षेपण के 16 मिनट बाद यह पृथ्वी की ध्रु़वीय कक्षा में स्थापित हो गया और इसी के साथ पहला चरण भी सफल रहा। चंद्रयान-2 का यह सफर 46 दिनों तक चलेगा और इसके बाद वह 6 सितम्बर को चांद पर उतरेगा। चंद्रयान-2 मिशन की लागत 978 करोड़ रुपये है। एक सप्ताह पहले तकनीकी गड़बड़ी आने के बाद चंद्रयान-2 का प्रक्षेपण रोक दिया गया था। यह लॉन्चिंग चंद्रमा की ओर भारत की ऐतिहासिक यात्रा की शुरुआत है।
पहले इस मिशन को 15 जुलाई को लॉन्च किया जाना था, लेकिन ऐन वक्त पर लॉन्च व्हीकल में तकनीकी खामी का पता चलने पर इसे टाल दिया गया था। लॉन्चिंग की दिनांक आगे बढ़ाने के बावजूद चंद्रयान-2 चंद्रमा पर तय दिनांक 6 सितंबर को ही पहुंचेगा। इसे समय पर पहुंचाने का उद्देश्य यही है कि लैंडर और रोवर तय कार्यक्रम के अनुसार काम कर सकें। समय बचाने के लिए चंद्रयान पृथ्वी का एक चक्कर कम लगाएगा।
विशेषज्ञों का कहना है कि यह मिशन चांद की सतह का नक्शा तैयार करने में मददगार होगा। इस मिशन के जरिए वैज्ञानिक चांद पर मैग्नीशियम, एल्युमीनियम, सिलिकॉन, कैल्शियम, टाइटेनियम, आयरन और सोडियम जैसे तत्वों की मौजूदगी का पता लगाएंगे। सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि इसके जरिए चंद्रमा के ध्रुवीय क्षेत्र के गड्ढों में बर्फ के रूप में जमा पानी का भी पता लगाने की कोशिश की जाएगी। विशेषज्ञों का कहना है कि अपने अंतरिक्ष कार्यक्रम पर भारत का जोर अपनी युवा आबादी की आकांक्षाओं को दर्शाता है।
चंद्रयान 2 उस अंधेरे हिस्से में कदम रखेगा, जहां उतरने का किसी देश ने साहस नहीं किया।
चंद्रयान-2 अपनी तरह का पहला मिशन है जो चंद्रमा के दक्षिण ध्रुवीय क्षेत्र के उस क्षेत्र के बारे में जानकारी जुटाएगा जो अब तक अछूता है। यह चांद के जिस दक्षिणी ध्रुव वाले क्षेत्र में उतरेगा, वहां अब तक किसी देश ने अभियान को अंजाम नहीं दिया है। यह अभियान इस हिस्से को समझने और चांद के विकास क्रम को जानने में मददगार होगा। क्षेत्र में कई विशाल क्रेटर (अंतरिक्षीय पिंडों के टकराने से बने गड्ढे) हैं, जिनमें सौर व्यवस्था के बहुत शुरुआती समय के प्रमाण मिलने की उम्मीद है।
क्यों है खास हमारा यह मिशन ?
सारी दुनिया की निगाहें हमारे चंद्रयान-2 मिशन पर लगी हैं क्योंकि चंद्रयान-2 दुनिया का पहला ऐसा मिशन होगा जो चन्द्रमा के साउथ पोलर रीजन में सॉफ्ट लैंडिंग करेगा। यही नहीं, यह भारत का पहला ऐसा मिशन है जो पूरी तरीके से विकसित स्वदेशी तकनीक के साथ चन्द्रमा की सतह पर सॉफ्ट लैंडिंग करेगा। इस मिशन के साथ ही भारत दुनिया का चौथा ऐसा देश बन जाएगा जो चन्द्रमा की सतह पर सॉफ्ट लैंडिंग करेगा। प्रयोगों की बात करें तो इसमें जो पेलोड्स इस्तेमाल किए गए हैं वो चन्द्रमा की सतह पर ट्रोपोग्राफी, मिनरल आइडेंटिफिकेशन (खनिज का पता लगेगा) और इसके डिस्ट्रीब्यूशन (फैलाव), मिट्टी की थर्मो-फिजिकल कैरेक्टर, सर्फेस केमिकल कम्पोजिशन और चन्द्रमा के वातावरण का अध्ययन करेंगे।
क्या क्या करेगा चंद्रयान-2
– चंद्रयान-2 चंद्रमा की सतह पर पानी के प्रसार और मात्रा का अध्ययन करेगा।
– चंद्रमा के मौसम का अध्ययन करेगा।
– चंद्रमा की सतह में मौजूद खनिजों और रासायनिक तत्वों का अध्ययन करेगा।
– चंद्रमा के बाहरी वातावरण का अध्ययन करेगा।
– इस मिशन के साथ 13 पेलोड भेजे गए हैं, इनमें से 8 पेलोड ऑर्बिटर में, 3 लैंडर में और 2 रोवर में रहेंगे।
15 मंजिल ऊंचा है बाहुबली
44 मीटर लंबे 640 टन का जियोसिंक्रोनस सैटेलाइट लांच व्हीकल-मार्क तृतीय (जीएसएलवी-एमके तृतीय) रॉकेट को तेलुगु मीडिया ने ‘बाहुबली’ तो इसरो ने ‘फैट बॉय’ (मोटा लड़का) नाम दिया है। 375 करोड़ की लागत से बना यह रॉकेट 3.8 टन वजनी चंद्रयान-2 को लेकर उड़ेगा। चंद्रयान-2 की लागत 603 करोड़ है। इसकी ऊंचाई 44 मीटर है जो कि 15 मंजिली इमारत के बराबर है। यह रॉकेट चार टन वजनी सेटेलाइट को आसमान में ले जाने में सक्षम है। इसमें तीन चरण वाले इंजन लगे हैं। अब तक इसरो इस श्रेणी के तीन रॉकेट लांच कर चुका है। 2022 में भारत के पहले मानव मिशन में भी इसी रॉकेट का इस्तेमाल किया जाएगा।
चंद्रयान-2 के हैं तीन भाग
चंद्रयान-2 के तीन हिस्से हैं- ऑर्बिटर, लैंडर और रोवर। अंतरिक्ष वैज्ञानिक विक्रम साराभाई के सम्मान में लैंडर का नाम ‘विक्रम’ रखा गया है। वहीं रोवर का नाम ‘प्रज्ञान’ है, जो संस्कृत शब्द है, जिसका अर्थ होता है ज्ञान। चांद की कक्षा में पहुंचने के चार दिन बाद लैंडर-रोवर अपने ऑर्बिटर से अलग हो जाएंगे। विक्रम छह सितंबर को चांद के दक्षिणी ध्रुव के नजदीक उतरेगा और वहां तीन वैज्ञानिक प्रयोगों को अंजाम देगा। चांद पर उतरने के बाद रोवर उससे अलग होकर 14 दिन तक अन्य प्रयोगों को अंजाम देगा। चांद के हिसाब से यह अवधि एक दिन की बनेगी। वहीं ऑर्बिटर सालभर चांद की परिक्रमा करते हुए आठ प्रयोग करेगा। इस पूरे अभियान में अमेरिकी अंतरिक्ष एजेंसी नासा भी एक प्रयोग को अंजाम देगी।
ऑर्बिटर, लैंडर और रोवर तीनों क्या-क्या काम करेंगे – ऑर्बिटर
चंद्रमा की कक्षा में ऑर्बिटर एक वर्ष परिक्रमा करेगा। यह 2,379 किलो वजनी है और सूर्य की किरणों से 1000 वॉट बिजली पैदा कर सकता है। आर्बिटर 1 वर्ष तक सक्रिय रह कर चंद्रमा की सतह से लगभग 100 किलोमीटर की ऊंचाई वाली कक्षा में चक्कर लगाएगा। इसका काम चांद की सतह का निरीक्षण करना और खनिजों का पता लगाना है। इसके साथ 8 पेलोड भेजे जा रहे हैं, जिनके अलग-अलग काम होंगे। इसके जरिए चांद के अस्तित्व और उसके विकास का पता लगाने की कोशिश होगी। बर्फ के रूप में जमा पानी का पता लगाया जाएगा। बाहरी वातावरण को स्कैन किया जाएगा। चंद्रमा पर अपने अध्ययन और विभिन्न उपकरणों द्वारा भेजी गई सूचनाओं को ऑर्बिटर बेंगलुरु में मौजूद इंडियन डीप स्पेस नेटवर्क (आईडीएसएन) में भेजेगा।
लैंडर (विक्रम)
इसरो का यह पहला मिशन है, जिसमें लैंडर जाएगा जो कुल 15 दिन तक सक्रिय रहेगा। 1471 किलो वजनी लैंडर 650W की इलेक्ट्रिक पावर जेनरेट कर सकता है। विक्रम को यह नाम भारतीय खगोल कार्यक्रम के पितामह कहे जाने वाले डॉ. विक्रम साराभाई पर मिला है। यह पूरे एक चंद्र दिवस काम करेगा, जो हमारे 14 दिन के बराबर हैं। लैंडर आर्बिटर से अलग होकर चंद्रमा की सतह पर एक ऐसे क्षेत्र में उतरेगा जिसके बारे में अब तक बहुत कम खोजबीन हुई है। विक्रम लैंडर चांद की सतह पर सॉफ्ट लैंडिंग करेगा। लैंडर जहां उतरेगा उसी जगह पर यह जांचेगा कि चांद पर भूकंप आते है या नहीं। वहां तापमान और चंद्रमा का घनत्व कितना है।
रोवर (प्रज्ञान)
मिशन की अवधि – 15 दिन (चंद्रमा का एक दिन)
प्रज्ञान यानी बुद्धिमत्ता, चंद्रयान का चंद्रमा पर उतरने जा रहा यह 27 किलो का 6 पहियों वाला रोवर मौके पर ही प्रयोग करेगा। इसमें 500 मीटर तक चलने की क्षमता है। इसके लिए यह सौर ऊर्जा का उपयोग करेगा। रोवर के लिए पावर की कोई दिक्कत न हो, इसके लिए इसे सोलर पावर उपकरणों से भी लैस किया गया है। यह रोवर 50 वॉट तक बिजली पैदा करेगा, जिसका उपयोग चंद्रमा पर मिले तत्वों का एक्सरे और लेजर से विश्लेषण करेगा। प्रज्ञान, लैंडर (विक्रम) से अलग होकर चंद्रमा की सतह पर घूम-घूमकर तस्वीरें लेगा। चांद की मिट्टी का रासायनिक विश्लेषण करेगा।
किन किन बाधाओं को पार करेगा चंद्रयान-2
चंद्रमा की सतह पर उतरना किसी विमान के उतरने जैसा कतई नहीं है। श्रीहरिकोटा से 22 जुलाई को जीएसएलवी-एमके 3 रॉकेट से प्रक्षेपित होने के बाद यान का एक हिस्सा लैंडर विक्रम 6 सितंबर को चंद्रमा की सतह पर उतरेगा। मगर इस दौरान कई तरह की चुनौतियां उसके स्वागत में खड़ी मिलेंगी ….
सटीक रास्ते पर ले जाना
लॉन्च के समय धरती से चांद की दूरी करीब 3. 844 लाख किमी होगी। इतने लंबे सफर के लिए सबसे जरूरी सही मार्ग (ट्रैजेक्टरी) का चुनाव करना, क्योंकि सही ट्रैजेक्टरी से चंद्रयान-2 को धरती, चांद और रास्ते में आने वाली अन्य वस्तुओं की ग्रैविटी, सौर विकिरण और चांद के घूमने की गति का कम असर पड़ेगा।
गहरे अंतरिक्ष में संचार
धरती से ज्यादा दूरी होने की वजह से रेडियो सिग्नल देरी से पहुंचेंगे। देरी से जवाब मिलेगा। साथ ही अंतरिक्ष में होने वाली आवाजें भी संचार में बाधा पहुचांएंगी।
चांद की कक्षा में पहुंचना
चंद्रयान-2 को चांद की कक्षा में पहुंचाना आसान नहीं होगा। लगातार बदलती कक्षीय गतिविधियों की वजह से चंद्रयान-2 को चांद की कक्षा में पहुंचाने के लिए ज्यादा सटीकता की जरूरत होगी। इसमें काफी ईंधन खर्च होगा। सही कक्षा में पहुंचने पर ही तय जगह पर लैंडिंग हो पाएगी।
चांद की कक्षा में घूमना
चंद्रयान-2 के लिए चांद के चारों तरफ चक्कर लगाना भी आसान नहीं होगा। इसका बड़ा कारण है चांद के चारों तरफ ग्रैविटी एक जैसी नहीं है। इससे चंद्रयान-2 के इलेक्ट्रॉनिक्स पर असर पड़ता है। इसलिए, चांद की ग्रैविटी और वातावरण की भी बारीकी से गणना करनी होगी।
चंद्रमा पर सहज (सॉफ्ट) लैंडिंग
चंद्रमा पर चंद्रयान-2 को रोवर और लैंडर की सहज लैंडिंग सबसे बड़ी चुनौती है। चांद की कक्षा से दक्षिणी ध्रुव पर रोवर और लैंडर को आराम से उतारने के लिए प्रोपल्शन सिस्टम और ऑनबोर्ड कंप्यूटर का काम मुख्य होगा। ये सभी काम खुद-ब-खुद होंगे।
चंद्रमा की धूल और बवंडर
चांद की सतह पर ढ़ेरों गड्ढे, पत्थर और धूल है। जैसे ही लैंडर चांद की सतह पर अपना प्रोपल्शन सिस्टम ऑन करेगा, वहां तेजी से धूल उड़ेगी। धूल उड़कर लैंडर के सोलर पैनल पर जमा हो सकती है, इससे बिजली आपूर्ति बाधित हो सकती है। ऑनबोर्ड कंप्यूटर के सेंसरों पर भी असर पड़ सकता है।
चंद्रमा की सतह का बदलता तापमान
चांद का एक दिन या रात धरती के 14 दिन के बराबर होती है। इसकी वजह से चांद की सतह पर तापमान तेजी से बदलता है। इससे लैंडर और रोवर के काम में बाधा आएगी।
हमारा चंद्रयान-2 ऐसे पूरा करेगा चांद तक का सफर
चंद्रयान-2 के 6 सितंबर को चांद की सतह पर उतरने का अनुमान है। 22 जुलाई को 16 मिनट की उड़ान के बाद रॉकेट (बाहुबली) ने इस यान को पृथ्वी की बाहरी कक्षा में पहुंचा दिया गया। इसके बाद 15 दिनों तक यह धरती की परिक्रमा करते हुए चांद की ओर बढ़ेगा। इस दौरान इसकी रफ्तार 10 किलोमीटर/प्रति सेकंड होगी।
चांद की कक्षा में
16 दिनों बाद चंद्रयान पृथ्वी की कक्षा से बाहर निकलेगा। इस दौरान चंद्रयान-2 से रॉकेट अलग हो जाएगा। फिर इसे चांद की कक्षा तक पहुंचाया जाएगा। 5 दिनों बाद चंद्रयान-2 चांद की कक्षा में पहुंचेगा। इस दौरान उसकी गति 10 किलोमीटर प्रति सेकंड और न्यूनतम 4 किलोमीटर प्रति सेंकंड रहेगी।
चांद की कक्षा में पहुंचने के बाद चंद्रयान चंद्रमा के चारां और गोल-गोल चक्कर लगाते हुए उसकी सतह की ओर बढ़ेगा। चंद्रमा की कक्षा में 25 दिनों तक चक्कर लगाते हुए चंद्रयान उसकी सतह के नजदीक पहुंचेगा। इस दौरान उसकी अधिकतम गति 10 किलोमीटर/सेकंड और न्यूनतम स्पीड 1 किलोमीटर/सेकंड रहेगा।
ऑर्बिटर से लैंडर हो जाएगा अलग
चांद की सतह के नजदीक पहुंचने के बाद चंद्रयान चांद के दक्षिणी ध्रुव की सतह पर उतरेगा। लेकिन इस प्रक्रिया में 4 दिन लगेंगे। चांद की सतह के नजदीक पहुंचने पर लैंडर (विक्रम) अपनी कक्षा बदलेगा। फिर वह सतह की उस जगह को स्कैन करेगा जहां उसे उतरना है। लैंडर ऑर्बिटर से अलग हो जाएगा और आखिर में चांद की सतह पर उतर जाएगा।
लैंडिंग के बाद लैंडर रोवर होगा रिलीज
लैंडिंग के बाद लैंडर (विक्रम) का दरवाजा खुलेगा और वह रोवर (प्रज्ञान) को रिलीज करेगा। रोवर के निकलने में करीब 4 घंटे का समय लगेगा। फिर यह वैज्ञानिक परीक्षणों के लिए चांद की सतह पर निकल जाएगा। इसके 15 मिनट के अंदर ही इसरो को लैंडिंग की तस्वीरें मिलनी शुरू हो जाएंगी। चांद की सतह पर पहुंचने के बाद लैंडर और रोवर 14 दिनों तक जानकारियां जुटाते रहेंगे।
14 दिनों तक सक्रिय रहेंगे विक्रम और प्रज्ञान
इस तरह अलग-अलग चरणों के तहत लॉन्च के 46 दिनों बाद चंद्रयान चांद की सतह पर पहुंच जाएगा। चांद की सतह पर पहुंचने के बाद लैंडर (विक्रम) और रोवर (प्रज्ञान) 14 दिनों तक सक्रिय रहेंगे। रोवर इस दौरान 1 सेंटीमीटर/ सेकंड की गति से चांद की सतह पर चलेगा और उसके मूलभूत तत्वों का अध्ययन करेगा व तस्वीरें भेजेगा। वह वहां 14 दिनों में कुल 500 मीटर कवर करेगा। दूसरी तरफ ऑर्बिटर चंद्रमा की कक्षा में 100 किलोमीटर की ऊंचाई पर उसकी परिक्रमा करता रहेगा। ऑर्बिटर वहां 1 साल तक सक्रिय रहेगा।
मानव के चांद तक के सफर की खास बातें
चांद के सफर की शुरुआत वर्ष 1959 में हुई थी, जब सोवियत संघ ने अपना पहला अंतरिक्ष यान लूना-2 भेजा। सोवियत संघ के इस प्रयास से प्रेरित होकर अमेरिकी वैज्ञानिकों ने 1960 में अपोलो-8 भेजा। इस तरह चांद के अन्वेषण की दिशा में पहला कदम सोवियत संघ ने ही उठाया था।
20 जुलाई 1969 को इंसान ने पहली बार धरती के इस प्राकृतिक उपग्रह पर अपने कदम रखे। नासा ने अपोलो 11 मिशन को सफलतापूर्वक अंजाम देकर 20 जुलाई 1969 को अपने अंतरिक्ष यात्रियों नील आर्मस्ट्रॉन्ग और आल्ड्रिन जूनियर को चांद की सतह पर उतार कर वहां अमेरिका का झंडा गाड़ दिया।
भारत का चांद पर पहला मिशन 22 अक्टूबर, 2008 को गया था। उसका नाम था चंद्रयान-1। चांद पर यह 8 नवंबर, 2008 को पहुंचा था। भारत का चंद्रयान-1 मिशन काफी अहम रहा क्योंकि इसी मिशन के दौरान चांद पर पानी होने की बात सामने आई थी। बाद में नासा ने भी चंद्रयान-1 के आंकड़ों के आधार पर चंद्रमा पर बर्फ होने की पुष्टि की थी।
श्रीमती सुदर्शना भट्ट