महाभारत के युद्ध के दौरान एक दिन अर्जुन युद्ध करते हुए दूर निकल गए, इस अवसर का लाभ उठा कौरवों ने धर्मराज युधिष्ठिर को घायल कर दिया सायंकाल को जब अर्जुन वापस आए, तो उन्होंने विश्रामगृह में युधिष्ठिर को देखा और पूछा, ‘तात! आप का यह हाल किसने किया?’
इतना सुनते ही युधिष्ठिर को क्रोध आ गया। उन्होंने कहा ‘धिक्कार है तुम्हारे गांडीव को, जिसके रहते हुए मुझे इतना कष्ट हुआ।’ इतना सुनते ही अर्जुन ने धर्मराज युधिष्ठिर पर गांडीव तान दिया। तभी भगवान श्रीकृष्ण आ गए। अर्जुन ने उनसे कहा, ‘भ्राता ने मेरे गांडीव को ललकारा है। मैंने प्रतिज्ञा की है कि जो भी मेरे गांडीव को ललकारेगा, मैं उसके प्राण ले लूंगा।
ऐसी कठिन परिस्थिति में क्या किया जाए?’ श्री कृष्ण ने जवाब दिया, ‘तुम युधिष्ठिर को अपशब्द कहो, उसकी आलोचना करो, वह स्वयं ही मर जाएंगे, क्योंकि शास्त्रों में कहा गया है कि अपयशोंः वै मृत्युः अर्थात् अपयश ही मृत्यु है।’
अर्जुन ने वही किया। उनकी प्रतिज्ञा पूरी हो गई। युधिष्ठिर भी बच गए। अब अर्जुन सोचने लगा, ‘मैंने बड़े भाई का अपमान किया है। मैं आत्महत्या करूंगा।’
श्री कृष्ण ने फिर कहा कि अर्जुन तुम अपने गाण्डीव से क्या क्या कर सकते हो ? इस मनमाफिक प्रश्न के उत्तर में अर्जुन अपनी प्रशंसा में कसीदे पढने लगा।
तब श्री कृष्ण ने कहा कि अर्जुन आत्मप्रशंसा ही आत्महत्या के समान है। इस तरह भगवान श्री कृष्ण ने अपनी सूझबूझ से अर्जुन और युधिष्ठिर दोनों की जान बचा ली।
सजल सामर