व्यक्ति का पुरुषार्थ ही उसके वर्तमान का सबसे बड़ा सहचर है। परन्तु वर्तमान में भी उसके प्रारब्ध के कर्म फल उसका पीछा नहीं छोड़ते। परिणामतः कई अकल्पित घटनाक्रम जीवन में घटते रहते हैं। भारत भूमि में ऐसे कई स्थान हैं जहाँ पहुँच कर व्यक्ति को अनिर्वचनीय आनन्द की प्राप्ति होती है। जहां सिर झुकाने के बाद व्यक्ति को दुनिया के सामने सिर नहीं झुकाना होता है। इन्सान अपने अभीष्ट को पा लेने की ओर बढ़ जाता है। आइये, कुछ ऐसे ही सिद्ध स्थानों का पर्यटन करें….
माँ वैष्णो देवी
यह मंदिर जम्मू और कश्मीर राज्य के जम्मू में स्थित है। मंदिरों की नगरी के नाम से प्रसिद्ध जम्मू शहर के उत्तर-पूर्व में 70 किमी की दूरी तय करके पवित्र त्रिकुटा पहाड़ियों पर स्थित वैष्णोदेवी की पावन गुफा के दर्शनार्थ भक्त आते हैं। हालांकि इस धर्मस्थल की उत्पत्ति के सही दिन व वर्ष की जानकारी किसी को नहीं है, फिर भी सदियों से यह गुफा लोगों के लिए धार्मिक तथा मानसिक शांति प्राप्ति का एक मुख्य स्थान रही है। आरंभ में तो इसे जम्मू क्षेत्र के कुछ इलाकों में ही लोग जानते थे जबकि अब तो माता का आशीर्वाद प्राप्त करने के लिए विदेशों से भी लोग आते हैं।
तिरुपति बालाजी मंदिर
तिरुमाला पर्वत पर स्थित भगवान बालाजी के मंदिर में हर साल करोड़ों लोग दर्शन के लिए आते हैं। प्रभु वेंकटेश्वर या बालाजी को भगवान विष्णु का अवतार माना जाता है। ऐसा माना जाता है कि प्रभु विष्णु ने कुछ समय के लिए स्वामी पुष्करणी नामक तालाब के किनारे निवास किया था। यह तालाब तिरुमाला के पास स्थित है। तिरुमाला- तिरुपति के चारों ओर स्थित पहाड़ियां, शेषनाग के सात फनों के आधार पर बनीं सप्तगिरी कहलाती हैं। श्री वेंकटेश्वरैया का यह मंदिर सप्तगिरी की सातवीं पहाड़ी पर स्थित है, जो वेंकटाद्री नाम से प्रसिद्ध है।
महाकाली शक्तिपीठ, पावागढ़
गुजरात की ऊंची पहाड़ी पावागढ़ पर बसा मां कालिका का शक्तिपीठ सबसे जाग्रत माना जाता है। यहां स्थित काली मां को ‘महाकाली’ कहा जाता है। कालिका माता का यह प्रसिद्ध मंदिर मां के शक्तिपीठों में से एक है। ऐसा माना जाता है कि मां पार्वती के दाहिने पैर की अंगुलियां पावागढ़ पर्वत पर गिरी थीं। यह मंदिर गुजरात की प्राचीन राजधानी चंपारण्य के पास स्थित है, जो वडोदरा शहर से लगभग 50 किलोमीटर दूर है। पावागढ़ मंदिर ऊंची पहाड़ी की चोटी पर स्थित है। रोप-वे से उतरने के बाद आपको लगभग 250 सीढ़ियां चढ़ना होंगी, तब जाकर आप मंदिर के मुख्य द्वार तक पहुंचेंगे।
मेहंदीपुर बालाजी मंदिर
राजस्थान के दौसा जिले के पास दो पहाड़ियों के बीच बसा हुआ घाटा मेहंदीपुर नामक स्थान है, जहां पर बहुत बड़ी चट्टान में हनुमानजी की आकृति स्वतः ही उभर आई है जिसे ‘श्रीबालाजी महाराज’ कहते हैं। इसे हनुमानजी का बाल स्वरूप माना जाता है। इनके चरणों में छोटी-सी कुंडी है जिसका जल कभी समाप्त नहीं होता। यहां के हनुमानजी का विग्रह काफी शक्तिशाली एवं चमत्कारिक माना जाता है तथा इसी वजह से यह स्थान न केवल राजस्थान में बल्कि पूरे देश में विख्यात है। जनश्रुति है कि यह मंदिर करीब 1,000 साल पुराना है।
कामाख्या मंदिर
कामाख्या देवी शक्तिपीठ को 51 शक्तिपीठों में से एक माना जाता है। यह शक्तिपीठ तंत्र साधना के लिए प्रसिद्ध है। कामाख्या शक्तिपीठ असम की राजधानी दिसपुर के पास गुवाहाटी से 8 किलोमीटर दूर कामाख्या में है। यहां आने वाले की हर मनोकामना पूर्ण होती है यदि वह खुद को पवित्र समझता है तो। यहीं भगवती की महामुद्रा (योनि-कुण्ड) स्थित है। यह मंदिर एक पहाड़ी पर बना है व इसका तांत्रिक महत्व है।
महाकाल मंदिर
बारह ज्योर्तिलिंगों में से एक भारत के हृदयस्थल मध्यप्रदेश के उज्जैन में पुण्य सलिला शिप्रा के तट के निकट भगवान शिव ‘महाकालेश्वर ज्योतिर्लिंग’ के रूप में विराजमान हैं। महाराजा विक्रमादित्य के न्याय की नगरी उज्जयिनी में भगवान महाकाल की असीम कृपा रहती है। कहते हैं कि अकाल मृत्यु वो मरे जो काम करे चांडाल का, काल उसका क्या करे जो भक्त हो महाकाल का।
नाथद्वारा मंदिर
श्रीवल्लभाचार्य के सम्प्रदाय का श्रीनाथ द्वारा मंदिर वैष्णव और वल्लभ सम्प्रदाय ही नहीं समूचे हिंदू समाज के लिए महत्व रखता है। राजस्थान के उदयपुर शहर से 30 मील की दूरी पर स्थित प्रसिद्ध एकलिंगजी स्थान से मात्र 17 मील उत्तर में स्थित है यह विश्व प्रसिद्ध मंदिर।
शबरीमाला मंदिर
प्रभु अयप्पा का निवास स्थान माना जाता है। इस विश्वविख्यात मंदिर की महिमा का जितना गुणगान किया जाए, कम ही है। यह मंदिर करोड़ों श्रद्धालुओं के लिए आस्था का केंद्र है। भगवान अयप्पा का यह धाम केरल और तमिलनाडु की सीमा पर पश्चिमी घाट की पहाड़ियों पर स्थित है। इस मंदिर को दक्षिण भारत के प्रमुख तीर्थ स्थान का दर्जा मिला हुआ है। पूणकवन के नाम से प्रसिद्ध 18पहाड़ियों के बीच स्थित यह पवित्र धाम चारों ओर से घने वन और छोटी-बड़ी पहाड़ियों से घिरा हुआ है। माना जाता है कि महर्षि परशुराम ने शबरीमाला पर भगवान अयप्पा की साधना के लिए उनकी मूर्ति स्थापित की थी।
ज्वाला जी का मंदिर
ज्वालादेवी का मंदिर हिमाचल के कांगड़ा घाटी के दक्षिण में 30 किमी की दूरी पर स्थित है। यह मां सती के 51 शक्तिपीठों में से एक है। यहां माता की जीभ गिरी थी। हजारों वर्षों से यहां स्थित देवी के मुख से 9 ज्वालाएं प्रज्वलित हो रही हैं जिससे बुझाने का प्रयास अकबर ने किया था लेकिन वह असफल रहा। ये ज्वालाएं 9 देवियों महाकाली, महालक्ष्मी, सरस्वती, अन्नपूर्णा, चंडी, विन्ध्यवासिनी, हिंगलाज भवानी, अम्बिका और अंजना देवी की ही स्वरूप हैं। कहते हैं कि सतयुग में महाकाली के परम भक्त राजा भूमिचंद ने स्वप्न से प्रेरित होकर यह भव्य मंदिर बनवाया था। जो भी सच्चे मन से इस रहस्यमयी मंदिर के दर्शन के लिए आया है उसकी सारी मनोकामनाएं पूरी हो जाती हैं। गुरु गोरखनाथ ने यहां तपस्या की थी।
शिवशंकर खण्डेलवाल