दो कालेपानी का दंड सुना दिये जाने के बाद अन्डमान भेजने से पूर्व वीर विनायक सावरकर को डोंगरी जेल में रखा गया। यहां उन्हें रस्सी के लिए नारियल के रेशे कूटने का काम दिया गया। इसी जेल में एक दिन उनकी पत्नी यमुना देवी (माई) अपने भाई के साथ उनसे मिलने पहुंची। पति को इस रूप से देखकर उनकी आंखों में आंसू आ गए।
वीर सावरकर ने अद्भुत वीरता का परिचय देते हुए कहा- ‘‘चिन्ता न करो। यदि ईश्वर की कृपा हुई तो पुनः अवश्य भेंट होगी। तब तक यदि सामान्य संसार का भय सताने लगे, तो ऐसा विचार करो कि बेटे-बेटियों की संख्या बढ़ाना तथा चार तिनके जमा करके घर बांधना ही यदि संसार कहलाता है, तो ऐसा संसार तो कौए, चिड़ियां भी बसाती रहती हैं। परंतु यदि परिवार का उदार अर्थ मानव परिवार लेना हो, तो उसे सजाने में तो हम पूर्ण सफल हुए हैं।
माना कि अपना सुखी जीवन हमने अपने ही हाथों ध्वस्त कर डाला। परंतु भविष्य में सहस्त्रों घरों में सुख की वर्षा होगी। क्या तब हमें अपना बलिदान सार्थक न लगेगा? सुखी संसार की कल्पना करने वाले अनेक लोग प्लेग के शिकार बन जाते हैं, उनका घर दीपक विहीन हो जाता है। विवाह मंडप तक से पति-पत्नी को काल दबोच कर ले जाता है। अतः संकटों का सामना करना सीखो और धैर्य रखो।’’
श्रीमती यमुना देवी (माई) ने एक वीर पत्नी का परिचय दिया और बोलीं- ‘‘आप चिन्ता न करें। मेरे लिए क्या यही कम सुख की बात है कि मेरा वीर पति मातृभूमि की सेवा के लिए कठोर साधना कर रहा है। हम तो परस्पर मिलकर इन कष्टों को सहन कर ही लेंगे। आप हमारी चिंता न करें। स्वयं के विषय में चिन्ता करें, अपने स्वास्थ्य का ध्यान रखें क्योंकि आपके निश्चिन्त होने पर ही हम निश्चिन्त हो पाएंगें।’’
डोंगरी जेल के बाद सावरकर को भायखला जेल भेजा गया और यहां भी पूर्व जेल के समान कठोर परिश्रम के कार्य कराये गए। भायखला, के बाद उन्हें ठाणे जेल स्थानान्तरित कर दिया गया। इस जेल के कष्टों का वर्णन करते हुए उन्होंने लिखा है-‘‘ठाणे बन्दीगृह में मुझे जिस काम में रखा गया, उसमें कुख्यात दुष्ट मुसलमान वार्डर रखे गए थे। एकदम एकांत। भोजन आया, कौर भी न निगल सका। बाजरे की बेकार रोटी, न जाने कैसी खट्टी सब्जी। मुंह में रखना भी कठिन। रोटी का टुकड़ा काटा जाए, थोड़ा चबाया जाए, घूंट भर पानी पिया जाए और उसी के साथ कौर निगल लिया जाए।’’
इस जेल में एक दिन वार्डर ने उन्हें सूचना दी कि उनके छोटे भाई डॉ. नारायण दामोदर सावरकर को भी इसी जेल में रखा गया है। 20 वर्षीय नारायण सावरकर को लॉर्ड मिंटो पर बम फैंकने के आरोप में बंदी बनाया गया था। यहाँ स्मरणीय है कि सबसे बड़े भाई गणेश दामोदर सावरकर पहले ही कालेपानी की सजा भुगतने के लिए अन्डमान भेजे जा चुके थे।
उसी वार्डर के हाथों वीर सावरकर ने छोटे भाई नारायण को एक पत्र भेजा। पत्र के माध्यम से उन्होंने छोटे भाई को कष्टों से विचलित न होने की शिक्षा दी थी-
‘‘तुम मेरे विषय में बिलकुल चिन्ता न करना, और न मन को खिन्न करना। वाष्प यंत्र को प्रेरणा देने के लिए अपने देह का ईंधन बनाकर यदि किसी को जलते रहना है, तो वह स्थान हमें ही क्यों न प्राप्त हो। जलते रहना भी तो एक कर्म है। इतना ही नहीं, एक महान कर्म है।’’
कहने की आवश्यकता नहीं कि इस पत्र से नारायण सावरकर को एक आदर्श आत्मबल की प्राप्ति हुई होगी।
न्यायालय के निर्णय के बाद वीर सावरकर लगभग चार माह तक इन जेलों में रहे।