काला पानी के नाम से कुख्यात सेल्युलर जेल पोर्ट ब्लेयर में है। पोर्ट ब्लेयर, अंडमान निकोबार की राजधानी है। ये जेल अंग्रेजों द्वारा भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के सेनानियों को कैद में रखने के लिए बनाई गई थी। अंग्रेजों का इस जेल को बनाने का ख्याल 1857 ई. के विद्रोह में आया था।1857 में सेपॉय विद्रोह के बाद से ही अंडमान द्वीप का उपयोग ब्रिटिशों द्वारा कैदियों को कैद करने के लिए किया जाने लगा था।
1857 के प्रथम स्वाधीनता संग्राम ने अंग्रेजी सरकार को चौकन्ना कर दिया। व्यापार के बहाने भारत आये अंग्रेजों को भारतीय जनमानस द्वारा यह पहली कड़ी चुनौती थी, जिसमें समाज के लगभग सभी वर्ग शामिल थे।
दिल्ली में हुए युद्ध के बाद अंग्रेजो को आभास हो चुका था कि उन्होंने युद्ध अपनी बहादुरी और रणकौशलता के बल पर नही बल्कि षड््यंत्रों, जासूसों, गद्दारी से जीता था। अपनी इन कमजोरियों को छुपाने के लिए जहाँ अंग्रेजी इतिहासकारों ने 1857 के स्वाधीनता संग्राम को सैनिक ग़दर मात्र कहकर इसके प्रभाव को कम करने की कोशिश की, वहीं इस संग्राम को कुचलने के लिए भारतीयों को असहनीय व अविस्मरणीय यातनाएँ भी दी।
एक तरफ लोगां को फांसी दी गयी, पेड़ों पर सामूहिक रूप से लटका कर मृत्यु दण्ड दिया गया व तोपों से बांधकर दागा गया, वहीं जिन लोगो से अंग्रेजी सरकार को ज्यादा खतरा महसूस हुआ, उन्हें ऐसी जगह भेजा गया जहाँ से जीवित वापस आने की बात तो दूर किसी अपने-पराये की खबर तक मिलने की कोई उम्मीद भी नही थी। अंतिम मुगल सम्राट बहादुर शाह जफ़र को अंग्रेजी सरकार ने रंगून भेज दिया, जबकि इसमें भाग लेने वाले अन्य क्रांतिकारियों को काले पानी की सजा बतौर अंडमान भेज दिया गया था।