प्रति दिन की तरह राजा राम की राज-सभा शुरू हुई। वे न्याय के अपने आसन में बैठे थे। हर दिन की तरह राम ने अपने भाई लक्ष्मण को बाहर भेजा। लक्ष्मण ने बाहर आकर पुकारा, ”कोई है जिसे राजा राम से कोई काम हो! जो राजा से मिलना चाहता हो!” लेकिन वहां कोई नहीं था। मतलब था कि राम के राज्य में किसी को दुख न था।
लक्ष्मण ने किसी के भी वहां ने होने की सूचना राम को दे दी। राम खुश हुए। लेकिन एक अच्छे राजा की तरह उन्होंने फिर लक्ष्मण को बाहर भेजा। इस बार लक्ष्मण ने देखा कि दरवाजे पर एक कुत्ता खड़ा था। वह बहुत ही उदास था और लक्ष्मण की ओर देखकर भौंक रहा था। लक्ष्मण ने बहुत ही प्यार के साथ कहा, ”तुम निर्भय होकर अपना काम बताओ।”सुनकर कुत्ते ने कहा, ”हे लक्ष्मण! मैं अपना काम श्रीराम को ही बता सकता हूं। क्योंकि वे सबका दुख और डर दूर करने वाले हैं।”
लक्ष्मण ने सारी बात श्रीराम को जाकर कही और बाहर आकर कुत्ते से कहा, ”यदि तुम कुछ कहना चाहते हो तो चलकर राजा से कहो।” इस पर कु8ो ने कहा, ”नहीं मैं ऐसा नहीं कर सकता। बिना श्रीराम की आज्ञा के मैं राजभवन के भीतर नहीं जा सकता।”
लक्ष्मण ने जाकर श्रीराम से कहा कि द्वार पर कु8ाा खड़ा है और वह उनको ही अपना काम बताना चाहता है तथा अंदर आने के लिए उसे उनकी आज्ञा चाहिए। राम ने सुना तो वे बेचैन हो उठे। उन्होंने कहा, ”राम के राज्य में सब बराबर हैं। जिसे भी राजा से काम है उसे अंदर आकर राजा से मिलने का पूरा अधिकार है। वह चाहे कोई भी हो। इसलिए हे लक्ष्मण! कुत्ते को शीघ्र ही राजसभा में ले आओ।”
लक्ष्मण तुरंत कुत्ते को भीतर ले आए। राम ने बहुत ही उदार मन से कहा, ”कहो, तुम क्या कहना चाहते हो। निर्भीक होकर साफ साफ कहो।” राजा का इतना अच्छा व्यवहार देखकर कुत्ता बहुत प्रसन्न हुआ। उसने राजा की सच्चे मन से प्रशंसा की। श्रीराम ने बीच में उसे अपनी बात जल्दी से कहने को कहा। तब कु8ो ने बताया, ”हे प्रभु! आपके राज्य में मेरे साथ अन्याय हुआ है। मुझे बिना अपराध के पीटा गया है। देखिए मेरे माथे पर घाव! पीटने वाला एक प्रसिद्ध भिक्षु है। जिसका नाम सर्वार्थसिद्ध है। वह ब्राहमण है। अब आप ही न्याय कीजिए।” सुनकर, श्रीराम ने तुरंत एक द्वारपाल को भेजकर सर्वार्थसिद्ध को वहां बुलाया और कुत्ते को पीटने का कारण पूछा।
ब्राहमण ने बताया कि उसने क्रोध में आकर पीटा था। क्रोध का कारण बताते हुए उसने आगे कहा, ”मैं भूखा था। भिक्षा मांगने का समय समाप्त हो चुका था। फिर भी घर घर जाकर मांग रहा था। यह कुत्ता बीच रास्ते में खड़ा था। मैंने इससे बहुत कहा कि यह मेरे रास्ते से हट जाए, लेकिन इसने एक नहीं सुनी बस अपनी मौज में बेढंगे तरीके से खड़ा रहा। इस पर मुझे क्रोध आ गया और मैंने इसके सिर पर डंडा दे मारा। अत: मैं अपराधी हूं। मुझे दण्ड दीजिए।”
सारी बात सुनकर राम ने कहा कि क्रोध में किया गया कार्य हमेशा खराब होता है। इसके बाद उन्होंने सभा के सदस्यों से पूछा कि ब्राह्मण को क्या दण्ड दिया जाए। प्रजा की सुरक्षा के लिए दण्ड देना तो जरूरी है। सभासदों ने एक दूसरे को देखा- उन्होंने कहा कि शास्त्रों के अनुसार ब्राह्मण को दण्ड नहीं दिया जा सकता। वैसे राजा तो शासक है और कुछ भी करने को समर्थ है।
सभासदों की बात सुनकर कुत्ते ने बहुत ही आदर भाव के साथ राम से कहा, ”हे प्रभु! यदि आप समझते हैं कि मेरे साथ अन्याय हुआ है तो क्या मैं अपने लिए एक वर मांग सकता हूं। उससे मेरे अपराधी को दण्ड भी मिल जाएगा।” श्रीराम ने हां की तो उसने कहा, ”आप इस ब्राह्मण को एक मठ का स्वामी बना दीजिए।”
यह सुनकर श्रीराम ने उस ब्राह्मण को मठ का सबसे ऊंचा पद दे दिया। ब्राह्मण तो बहुत ही खुश हुआ। वह हाथी पर बैठकर गर्व से भरा खुशी खुशी चला गया। सभा के सभी लोग हक्के बक्के थे। उनकी कुछ समझ में नहीं आ रहा था। यह कु8ो ने मांगा भी तो क्या मांगा। ब्राह्मण के तो मजे आ गए। यह उसके लिए दण्ड हुआ कि वरदान।
उन्होंने श्रीराम से ही पूछा कि महाराज यह कैसा न्याय हुआ। तब श्रीराम मंद मंद मुस्कराए। उन्होंने कुत्ते की ओर प्रशंसा से देखते हुए कहा, ”कुत्ता समझकर इसे महत्वहीन मत समझो। जिस रहस्य को यह जानता है उसे आप जैसे ज्ञानी लोग भी नहीं जानते। यह जानता है कि किस काम का क्या और कैसे फल मिलता है। इसने बहुत सोच समझकर ब्राह्मण के लिए यह पद मांगा है। इसका कारण जानने के लिए इस महाज्ञानी कुत्ते से ही पूछिए।”
तब कुत्ते ने बहुत ही विनम्रता से कहा, ”हे राम, मैं अपने पहले जन्म में उसी मठ का स्वामी था। मैंने हर काम मन लगाकर किया। अपने कर्तव्यों को भरसक निभाया। तो भी नहीं जानता कि अनजाने में क्या भूल हो गई कि इस जन्म में मुझे कुत्ता बनना पड़ा। अब आप ही बताएं कि जब मेरा यह हाल हो सकता है तो बात बात पर गुस्सा खाने वाले उस क्रोधी और नासमझ ब्राह्मण का क्या हाल होगा? वह हर किसी को सताएगा। अपने पद का दुरूपयोग करेगा और सीधा नरक में जाएगा। तभी उसे सच्चा ज्ञान होगा।”
कुत्ते की सूझबूझ भरी बात सुनकर भला कौन न चौंकता। किसे न खुशी होती। स्वयं राम भी आश्चर्य से खिल उठे। उसके बाद वह कुत्ता जिधर से आया था उधर ही चला गया।
याज्ञिक शर्मा