जितना जीवन मिला है, आनंद उठाइये जरूरी नहीं कि जिंदगी का सबक कोई ज्ञानी ही सिखाए। कई प्राचीन कहानियों में प्रमाण मिले हैं कि बड़े-बड़े दिग्गजों को मामूली समझे जाने वाले प्राणियों ने पाठ पढ़ाया है। ऐसी ही कहानी है सिकंदर महान् और एक कौवे की-
यह तब की बात है जब सिकंदर ने अपने बल के दम पर दुनियाभर में धाक जमा ली थी। इसके बाद वह अमर होना चाहता था। उसने पता लगाया कि कहीं ऐसा जल है जिसे पीने से व्यक्ति अमर हो सकता है। सिकंदर उस जल की तलाश में निकल पड़ा।
काफी दिनों तक देश-दुनिया में भटकने के बाद आखिरकार सिकंदर ने वह जगह पा ही ली, जहाँ उसे अमृत की प्राप्ति होती। वह उस गुफा में प्रवेश कर गया, जहाँ अमृत का झरना था। उसकी खुशी का ठिकाना नहीं रहा। उसे विश्वास नहीं हो रहा था कि जिस चीज के पाने के लिए वह वर्षों से सोच रहा था, वही अमृत जल कल-कल करके उसके सामने बह रहा था। उसने जल पीने के लिए हाथ बढ़ाया ही था कि एक कौवे की आवाज आई। वह कौवा गुफा के अंदर ही बैठा था। कौवा जोर से बोला, ठहर, रुक जा, यह भूल मत करना। सिकंदर ने कौवे की तरफ देखा। वह बड़ी दुर्गति की अवस्था में था। पंख झड़ गए थे, पंजे गिर गए थे, अंधा भी हो गया था, बस कंकाल मात्र ही शेष रह गया था।
सिकंदर ने कहा, ‘तू रोकने वाला कौन?’ कौवे ने उत्तर दिया, ‘मेरी कहानी सुन लो, मैं अमृत की तलाश में था और यह गुफा मुझे भी मिल गई थी। मैंने अमृत पी लिया। अब मैं मर नहीं सकता, पर मैं अब मरना चाहता हूँ। देख लो मेरी हालत। एक बार मेरी ओर देख लो फिर उसके बाद यदि इच्छा हो तो अवश्य अमृत पी लेना। अब मैं चिल्ला रहा हूँ, चीख रहा हूँ कि कोई मुझे मार डाले, लेकिन मुझे मारा भी नहीं जा सकता। अब प्रार्थना कर रहा हूँ परमात्मा से कि प्रभु मुझे मार डालो। मेरी एक ही आकांक्षा है कि किसी तरह मर जाऊँ।
कौवे की बात सुनकर सिकंदर देर तक सोचता रहा। सोचने के बाद फिर बिना अमृत पिए चुपचाप गुफा से बाहर वापस लौट आया।
सिकंदर समझ चुका था कि जीवन का आनन्द उस समय तक ही रहता है, जब तक हम उस आनन्द को भोगने की स्थिति में होते हैं। इसलिए स्वास्थ्य की रक्षा कीजिये। जितना जीवन मिला है, उस जीवन का भरपूर आनन्द लीजिये।
नेहल जोशी