एक शिष्य था समर्थ गुरु रामदास जी का जो भिक्षा लेने के लिए गांव में गया और घर-घर भिक्षा की मांग करने लगा।
समर्थ गुरु की जय! भिक्षा देहिं….
समर्थ गुरु की जय! भिक्षा देहिं….
एक घर के भीतर से जोर से दरवाजा खुला ओर एक बड़ी-बड़ी दाढ़ी वाला तान्त्रिक बाहर निकला और चिल्लाते हुए बोला- मेरे दरवाजे पर आकर किसी दूसरे का गुणगान करता है। कौन है ये समर्थ??
शिष्य ने गर्व से कहा- मेरे गुरु समर्थ रामदास जी… जो सर्व समर्थ है। तांत्रिक ने सुना तो क्रोध में आकर बोला कि इतना दुःसाहस कि मेरे दरवाजे पर आकर किसी और का गुणगान करे.. तो देखता हूँ कितना सामथ्र्य है तेरे गुरु में!
मेरा शाप है कि तू कल का उगता सूरज नही देख पाएगा अर्थात् तेरी मृत्यु हो जाएगी।
शिष्य ने सुना तो देखता ही रह गया और आस-पास के भी गांव वाले भी कहने लगे कि इस तांत्रिक का दिया हुआ शाप कभी भी व्यर्थ नहीं जाता.. बेचारा युवावस्था में ही अपनी जान गवां बैठा…. शिष्य उदास चेहरा लिए वापस आश्रम की ओर चल दिया और सोचते-सोचते जा रहा था कि आज मेरा अंतिम दिन है, लगता है मेरा समय खत्म हो गया है। आश्रम में जैसे ही पहुँचा, गुरु समर्थ रामदास जी हँसते हुए बोले- ले आया भिक्षा?
बेचारा शिष्य क्या बोले-! गुरुदेव हँसते हुए फिर बोले कि भिक्षा ले आया। शिष्य- जी गुरुदेव! भिक्षा में मैं अपनी मौत ले आया हूँ और सारी घटना सुना दी और एक कोने में जाकर चुप-चाप बैठ गया।
गुरुदेव बोले अच्छा चल भोजन कर ले।
शिष्य- गुरुदेव! आप भोजन करने की बात कर रहे हैं और यहाँ मेरा प्राण सूख रहे हैं। भोजन तो दूर एक दाना भी मुँह में न जा पाएगा।
गुरुदेव बोले- अभी तो पूरी रात बाकी है अभी से चिंता क्यों कर रहा है, चल ठीक है जैसी तुम्हारी इच्छा। और यह कहकर गुरुदेव भोजन करने चले गए। फिर सोने की बारी आई तब गुरुदेव शिष्य को बुलाकर आदेश किया- हमारे चरण दबा दे!
शिष्य मायूस होकर बोला! जी गुरुदेव जो कुछ क्षण बचे हैं जीवन के, वे क्षण मैं आपकी सेवा कर ही प्राण त्याग करूँ यहीं अच्छा होगा। ओर फिर गुरुदेव के चरण दबाने की सेवा शुरू की।
गुरुदेव बोले- चाहे जो भी हो जाय चरण छोड़ कर कहीं मत जाना।
शिष्य- जी गुरुदेव कहीं नहीं जाऊँगा।
गुरुदेव ने अपने शब्दों को तीन बार दोहराया कि चरण मत छोड़ना, चाहे जो हो जाए। यह कह कर गुरुदेव सो गए। शिष्य पूरी भावना से चरण दबाने लगा।
रात्रि का पहला पहर बीतने को था अब तांत्रिक ने अपने शाप को पूरा करने के लिए एक देवी को भेजा जो धन से सोने-चांदी से, हीरे-मोती से भरी थाली हाथ में लिए थी।
शिष्य चरण दबा रहा था। तभी दरवाजे पर वो देवी प्रकट हुई और कहने लगी- इधर आओ और ये थाली ले लो। शिष्य भी बोला- जी मुझे लेने में कोई परेशानी नही है लेकिन क्षमा करें! मैं वहाँ पर आकर नहीं ले सकता। अगर आपको देना ही है तो यहाँ पर आकर रख दीजिए। तो वह देवी कहने लगी कि- नहीं !! नहीं!! तुम्हें यहाँ आना होगा। देखो कितना सारा माल है। शिष्य बोला- नहीं। अगर देना है तो यही आकर रख दो। तांत्रिक ने अपना पहला पासा असफल देख दूसरा पासा फेंका।
तांत्रिक ने इस बार उस शिष्य की माँ का रूप बनाकर एक नारी को भेजा। शिष्य गुरु के चरण दबा रहा था तभी दरवाजे पर आवाज आई – बेटा! तुम कैसे हो? शिष्य ने अपनी माँ को देखा तो सोचने लगा अच्छा हुआ जो माँ के दर्शन हो गए, मरते वक्त माँ से भी मिल ले।
वह औरत जो माँ के रूप को धारण किये हुए थी बोली – आओ बेटा गले से लगा लो! बहुत दिन हो गए तुमसे मिले।
शिष्य बोला- क्षमा करना मां! लेकिन मैं वहाँ नहीं आ सकता क्योंकि अभी गुरुचरण की सेवा कर रहा हूँ। मुझे भी आपसे गले लगना है इसलिए आप यही आ कर बैठ जाओ। फिर उस औरत ने देखा कि चाल काम नहीं आ रही है तो वापिस चली गई। रात्रि का तीसरा पहर बीता ओर इस बार तांत्रिक ने यमदूत रूप वाला राक्षस भेजा।
राक्षस पहुँच कर उस शिष्य से बोला कि चल तुझे लेने आया हूँ तेरी मृत्यु आ गई है। उठ और चल… शिष्य भी झल्लाकर बोला- काल हो या महाकाल मैं नहीं आने वाला! अगर मेरी मृत्यु आई है तो यही आकर मेरे प्राण ले लो, लेकिन मैं गुरु के चरण नहीं छोडूँगा! फिर राक्षस भी उसका दृढ़ निश्चय देख कर वापिस चला गया।
सुबह हुई चिड़ियाँ अपनी घोसले से निकलकर चिचिहाने लगी। सूरज भी उदय हो गया। गुरुदेव रामदास जी नींद से उठे और शिष्य से पूछा कि – सुबह हो गई क्या ?
शिष्य बोला- जी! गुरुदेव सुबह हो गई।
गुरुदेव – अरे! तुम्हारी तो मृत्यु होने वाली थी न, तुमने ही तो कहा था कि तांत्रिक का शाप कभी व्यर्थ नही जाता। लेकिन तुम तो जीवित हो…!! गुरुदेव ने मुस्कराते हुए बोला।
शिष्य रात के घटनाक्रम को याद करते हुए कहने लगा – जी गुरुदेव, लग तो रहा हूँ कि जीवित ही हूँ क्योंकि रात को मेरी मौत तीन तीन बार रूप बदल कर आई थी पर आपकी चरण वन्दना ने मुझे बचा लिया।
अब शिष्य को समझ में आई कि गुरुदेव ने क्यों कहा था कि- चाहे जो भी हो जाए चरण मत छोड़ना। शिष्य गुरुदेव के चरण पकड़कर खूब रोने लगा बार बार मन ही मन यही सोच रहा था – जिसके सिर पर आप जैसे गुरु का हाथ हो तो उसका काल भी कुछ नही कर सकता है।
सारः गुरु की आज्ञा पर जो शिष्य चलता है उस के पास तो स्वयं मौत भी आने से एक बार नहीं अनेक बार सोचती है।
वेदान्त शर्मा