एक बार कि बात है, एक शहर में एक लड़का रहता था, स्कूल से आने के बाद वह अपने पिता के साथ काम पर जाया करता था। उसके पिता एक घोड़े के अस्तबल में काम करते थे। वह लड़का रोज ही देखता और सोचता था कि किस तरह उसके पिता इतनी मेहनत करते हैं लेकिन फिर भी उन्हें वो मान सम्मान कभी नहीं मिलता जो उस अस्तबल के मालिक को मिलता है। वो रोज देखता था कि किस तरह उस अस्तबल का मालिक समाज में खूब इज्जत पाता है।
एक दिन उसके स्कूल में उसके शिक्षक ने सभी बच्चों को एक लेख लिखकर लाने के लिए कहा, उस लेख में सभी बच्चों को यह लिखकर लाना था कि वे बड़े होकर क्या बनना चाहते हैं और उनका क्या सपना है? अब इस लड़के ने रात भर जागकर एक बहुत ही बेहतरीन लेख लिखा, जिसमें उसने लिखा कि वह बड़े होकर एक अस्तबल का मालिक बनेगा, जहा बहुत सारे घोड़े प्रशिक्षण लेंगे और आगे अपने सपने को पूरे विस्तार से बताते हुए उसने 200 एकड़ के अपने सपनों वाले रेंच की फोटो भी बना दी।
अगले दिन उसने पूरे मन से अपना लेख शिक्षक को दे दिया। शिक्षक ने सभी कापियां जांचने के बाद परिणाम सुनाया और उस लड़के के लेख के लिए कोई अंक नहीं दिए और उसकी कॉपी में बड़े अक्षरों से फेल लिख दिया।
अब लड़का टीचर के पास गया और पूछाः आपने मुझे, अंक नहीं दिए और फैल क्यों कर दिया?
टीचर ने कहा – अगर तुम भी बाकी बच्चों कि तरह छोटा मोटा लेख लिख लाते तो तुम पास हो जाते लेकिन तुमने जो लिखा है वो पूरी तरह से असंभव है। तुम लोगो के पास कुछ नहीं है। इसलिए जो तुमने लिखा है ऐसा सम्भव ही नहीं हो सकता है। तुम चाहो तो मैं तुम्हें एक और मौका देता हूँ, तुम कल दूसरा लेख लिख कर लाना, जिसमें कोई वास्तविक लक्ष्य बना लेना।
घर जाकर लड़के ने बहुत सोचा लेकिन उसे कुछ और बनने का विचार ही नहीं आ पाया। अगले दिन उसने टीचर के पास जाकर कहा, आपको जो भी मार्क्स देना हो आप दे दीजिए लेकिन मेरा तो यही सपना है, और मुझे कुछ और नहीं बनना है। मैं अपना सपना बदल नहीं सकता। 20 साल बाद इस लड़के ने सचमुच अपना सपना पूरा कर लिया।
इस कहानी से हमें यह समझ लेना चाहिए कि अगर हम कुछ करने कि ठान ले और बिना विचलित हुए पूरे मन से उस लक्ष्य को पाने में अपना सारा ध्यान लगा दें तो हमे अपना सपना पूरा करने से कोई नहीं रोक सकता। सिर्फ आपके मन में खुद के सपने के प्रति कोई शंका नहीं होनी चाहिए।
पीयूष दोषी