बल्कि उसी के इस्तेमाल से कश्मीर
भारत का एक सामान्य राज्य बन गया है …
नरेंद्र मोदी सरकार का धारा 370 के अंश हटाने का कदम किसी आश्चर्य से कम नहीं था। हालांकि पिछले कुछ दिनों से अनुमान लगाया जा रहा था कि सरकार धारा 370 को खत्म कर देगी, लेकिन कई लोग इस आशंका को ये कहते हुए नकार रहे थे कि सुप्रीम कोर्ट में धारा 370 और अनुच्छेद 35 ए से संबंधित कई मामले फंसे हुए हैं।
अनुच्छेद 370 को खत्म करने के बजाए, सरकार ने इसी अनुच्छेद द्वारा राष्ट्रपति को दी गई शक्ति का उपयोग करके इसे निष्क्रिय कर दिया। हालांकि धारा 370 को खत्म करने के लिए अनुच्छेद 368 के तहत एक संवैधानिक संशोधन की आवश्यकता होती है। लेकिन अनुच्छेद 370(3) का इस्तेमाल कर सरकार ने बड़ी चतुराई से संशोधन मार्ग को दरकिनार कर दिया।
कहते हैं तूफान अपने आने की आहट किसी ना किसी रूप में दे ही देता है। ऐसा ही एक राजनीतिक तूफान आज जम्मू-कश्मीर में भी आ गया, जो अनुच्छेद- 370 को अपने साथ बहा ले गया। वैसे इस तूफान की संभावना कुछ दिनों पहले से ही नजर आ रही थी।
सबसे पहले अमरनाथ यात्रियों पर आतंकी हमले की खबर फिर इसके मद्देनजर राज्य में सुरक्षाबलों की भारी तैनाती, उस के बाद तीर्थयात्रियों और पर्यटकों को तुरंत कश्मीर छोड़ने के निर्देश, 4 अगस्त की सुबह तीन प्रमुख पूर्व मुख्यमंत्रियों की नजरबंदी, श्रीनगर जिले में धारा-144 लागू करना और अंततः 5-6 अगस्त को संसद में जम्मू-कश्मीर में वर्षों से लागू अनुच्छेद-370 का निरस्तीकरण।
गृहमंत्री अमित शाह ने राज्यसभा में ‘जम्मू एवं कश्मीर राज्य पुनर्गठन विधेयक 2019’ का एक ऐतिहासिक संकल्प पेश किया, जिसमें उन्होंने अनुच्छेद 370 के खंड 1 के अलावा इस अनुच्छेद के सारे खंडों को रद्द करने की सिफारिश की। गृहमंत्री के इस प्रस्ताव पर विपक्षी पार्टियों ने जम कर हंगामा किया। बावजूद इसके कुछ ही देर बाद पुनर्गठन विधेयक को बहुमत से पारित कर दिया गया।
गृहमंत्री के अनुसार, राष्ट्रपति अनुच्छेद 370 को खत्म करने वाले राजपत्र पर हस्ताक्षर कर चुके हैं। बता दें कि भारतीय संविधान के अनुच्छेद 370 के तहत जम्मू-कश्मीर राज्य को विशेष स्वायत्तता प्रदान की गई थी। वहीं, भारतीय संविधान का 35 ‘ए’ अनुच्छेद का उल्लेख अनुच्छेद-370 के खण्ड(1) में शामिल है।
इसे जम्मू और कश्मीर सरकार की सहमति से राष्ट्रपति के आदेश पर भारतीय संविधान में जोड़ा गया था। तत्कालीन भारत के राष्ट्रपति डॉ. राजेंद्र प्रसाद ने इसे 14 मई 1954 को जारी किया गया था। यह अनुच्छेद जम्मू और कश्मीर राज्य विधानमंडल को ‘स्थाई निवासी’ परिभाषित करने तथा उन नागरिकों को विशेषाधिकार प्रदान करने का अधिकार देता था।
संविधान विशेषज्ञों का कहना है कि अनुच्छेद 370 तीन भागों में बंटा हुआ है। जम्मू-कश्मीर के बारे में अस्थायी प्रावधान है जिसे या तो बदला जा सकता है या हटाया जा सकता है। प्रस्ताव में अनुच्छेद 370 को पूरी तरह से नहीं हटाया गया है। 370 (1), वहां के नागरिकों को कुछ खास अधिकार देता है, जिसे राष्ट्रपति के अनुमोदन से ही समाप्त किया जा सकता है।
अमित शाह के बयान के मुताबिक 370(1) बाकायदा कायम है, सिर्फ 370 (2) और (3) को हटाया गया है। 370 (1) में प्रावधान के मुताबिक जम्मू और कश्मीर की सरकार से सलाह करके राष्ट्रपति आदेश द्वारा संविधान के विभिन्न अनुच्छेदों को जम्मू और कश्मीर पर लागू कर सकते हैं।
इसके साथ ही जम्मू कश्मीर का हुआ पुनर्गठन
सरकार ने अनुच्छेद 370 को हटाने के साथ ही राज्य का विभाजन जम्मू कश्मीर एवं लद्दाख के दो केंद्र शासित क्षेत्रों के रूप में करने का प्रस्ताव पारित कर दिया। जम्मू कश्मीर पुनर्गठन विधेयक, 2019 के भाग 2 एवं 3 में कहा गया है कि इसके तहत एक नये संघ शासित क्षेत्र लद्दाख का सृजन होगा। प्रस्तावित संघ शासित क्षेत्र लद्दाख बिना विधायिका के होगा। तथा जम्मू कश्मीर केंद्र शासित क्षेत्र में अपनी विधायिका होगी। राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने जम्मू-कश्मीर पुनर्गठन अधिनियम 2019 को अपनी मंजूरी भी दे दी है। हाल ही में 17वीं लोकसभा के पहले सत्र के दौरान संसद के दोनों सदनों में इससे संबंधित विधेयक पारित किया गया था।
संघ शासित क्षेत्र लद्दाख में कारगिल और लेह जिले शामिल होंगे। वहीं प्रस्तावित संघ शासित क्षेत्र जम्मू कश्मीर में धारा 3 के तहत आने वाले क्षेत्र को छोड़कर (यानी प्रस्तावित केंद्र शासित प्रदेश लद्दाख को छोड़कर) मौजूदा जम्मू कश्मीर राज्य के क्षेत्र शामिल होंगे। प्रस्तावित जम्मू कश्मीर संघ शासित क्षेत्र को लोकसभा की पाँच सीटें और लद्दाख क्षेत्र को एक सीट आवंटित की जायेगी।
इसमें कहा गया है कि नियत दिन से अनुच्छेद 239 ‘‘क’’ में निहित उपबंध, जो पुडुचेरी संघ राज्य क्षेत्र पर लागू है, जम्मू कश्मीर संघ शासित क्षेत्र पर भी लागू होंगे। जम्मू कश्मीर संघ शासित क्षेत्र के लिये भारत के संविधान के अनुच्छेद 239 के अंतर्गत एक प्रशासक नियुक्त किया जायेगा और उसे संघ शासित क्षेत्र के उपराज्यपाल के रूप में पदनामित किया जायेगा।
जम्मू कश्मीर संघ शासित प्रदेश के लिये एक विधानसभा होगी और प्रत्यक्ष चुनावों द्वारा चुने गए व्यक्तियों से भरी जाने वाली सीटों की कुल संख्या 107 होगी।
जानें क्या हैं अनुच्छेद 370 (1)
17 अक्टूबर 1949 को एक एक ऐसी घटना घटी थी जिसने जम्मू और कश्मीर का इतिहास बदल दिया। दरअसल, संसद में गोपाल स्वामी आयंगर ने खड़े होकर कहा कि हम जम्मू और कश्मीर को नया आर्टिकल देना चाहते हैं। उनसे जब यह पूछा गया कि क्यों? तो उन्होंने कहा कि आधे कश्मीर पर पाकिस्तान ने कब्जा कर लिया है और इस राज्य के साथ कई समस्याएं हैं। आधे लोग उधर फंसे हुए हैं और आधे इधर। वहाँ की स्थिति अन्य राज्यों की अपेक्षा अलग है तो ऐसे में वहाँ के लिए फिलहाल नए आर्टिकल की जरूरत होगी, क्योंकि अभी जम्मू और कश्मीर में पूरा संविधान लागू करना संभव नहीं होगा। अंततः अस्थायी तौर पर उसके लिए 370 लागू करना होगी। जब वहाँ हालात सामान्य हो जाएंगे तब इस धारा को भी हटा दिया जाएगा। फिलहाल वहाँ धारा 370 से काम चलाया जा सकता है।
उल्लेखनीय है कि सबसे कम समय में डिबेट के बाद यह आर्टिकल संसद में पास हो गया। यह संविधान में सबसे आखिरी में जोड़ी गई धारा थी। इस धारा के फेस पर भी लिखा है कि ‘टेम्परेरी प्रोविजन फॉर द स्टेट ऑफ द जम्मू और कश्मीर’। भारतीय संविधान के 21वें भाग का 370 एक अनुच्छेद है। 21वें भाग को बनाया ही गया अस्थायी प्रावधानों के लिए था जिसे कि बाद में हटाया जा सके। इस धारा के 3 खंड हैं। इसके तीसरे खंड में लिखा है कि भारत का राष्ट्रपति जम्मू और कश्मीर की संविधान सभा के परामर्श से धारा 370 कभी भी खत्म कर सकता है। हालांकि अब तो संविधान सभा रही नहीं, ऐसे में राष्ट्रपति को किसी से परामर्श लेने की जरूरत नहीं।
जब कोई आर्टिकल या धारा टेम्परेरी बनाई जाती है तो उसको सीज करने या हटाने की प्रक्रिया भी लिखी जाती है। उसमें लिखा गया कि प्रेसीडेंट ऑफ इंडिया जब उचित समझें और उन्हें लगे कि समस्याओं का हल हो गया है या जनजीवन सामान्य हो गया तो वह उस धारा को हटा सकता है। यहाँ यह समझने वाली बात यह है कि धारा 370 भारत की संसद लेकर आई है और वही इसे हटा सकती है। इस धारा को कोई जम्मू और कश्मीर की विधानसभा या वहाँ का राजा नहीं लेकर आया, जो हटा नहीं सकते हैं। यह धारा इसलिए लाई गई थी, क्योंकि तब वहाँ युद्ध जैसे हालात थे और उधर (पीओके) की जनता इधर पलायन करके आ रही थी। ऐसे में वहाँ भारत के संपूर्ण संविधान को लागू करना शायद नेहरू ने उचित नहीं समझा या नेहरू ने इस संबंध में शेख अब्दुल्ला की बात मानी हो। लेकिन यह भी कहा गया कि इसी बीच वहाँ पर भारत के संविधान का वह कानून लागू होगा जिस पर फिलहाल वहां कोई समस्या या विवाद नहीं है। बाद में धीरे-धीरे वहां भारत के संविधान के अन्य कानून लागू कर दिए जाएंगे। इस प्रक्रिया में सबसे पहले 1952 में नेहरू और शेख अब्दुल्ला के बीच एक एग्रीमेंट हुआ। जिसे ‘दिल्ली एग्रीमेंट’ कहा गया।
क्या थे अनुच्छेद-370 के प्रावधान :
– जम्मू-कश्मीर में बाहर के लोग जमीन नहीं खरीद सकते थे।
– जम्मू-कश्मीर की विधानसभा का कार्यकाल 6 साल होता था।
– भारत की संसद जम्मू-कश्मीर के संबंध में बहुत ही सीमित दायरे में (रक्षा, विदेशी मामले और संचार संबंधी) कानून बना सकती थी।
– जम्मू-कश्मीर में महिलाओं पर शरियत कानून लागू होता था।
– जम्मू-कश्मीर की कोई महिला यदि भारत के किसी अन्य राज्य के व्यक्ति से शादी कर ले, तो उस महिला की जम्मू-कश्मीर की नागरिकता खत्म हो जाती थी, लेकिन अगर कोई कश्मीरी महिला पाकिस्तान के किसी व्यक्ति से शादी करती थी, तो उसके पति को भी जम्मू-कश्मीर की नागरिकता मिल जाती थी।
– जम्मू-कश्मीर में पंचायत के पास कोई अधिकार नहीं था।
– कश्मीर में अल्पसंख्यक हिंदुओं और सिखों को 16 फीसदी आरक्षण नहीं मिलता था।
– जम्मू-कश्मीर का झंडा अलग होता था। यहाँ जम्मू- कश्मीर में भारत के राष्ट्रध्वज या राष्ट्रीय प्रतीकों का अपमान अपराध नहीं था, क्योंकि यहाँ सुप्रीम कोर्ट के आदेश मान्य नहीं होते थे।
– जम्मू-कश्मीर के नागरिकों के पास दोहरी नागरिकता होती थी।
– अनुच्छेद 370 के चलते कश्मीर में रहने वाले पाकिस्तानियों को भी भारतीय नागरिकता मिल जाती थी।
– सूचना का अधिकार (आरटीआई) लागू नहीं होता था।
– शिक्षा का अधिकार (आरटीई) लागू नहीं होता था।
– यहाँ सीएजी (ब्।ळ) भी लागू नहीं था।
अनुच्छेद- 370 हटने के बाद जम्मू-कश्मीर में क्या-क्या बदल जाएगा :
– अब जम्मू-कश्मीर से बाहर का भी कोई व्यक्ति जम्मू-कश्मीर में संपत्ति खरीद सकेगा।
– अब तक जम्मू-कश्मीर के सरकारी दफ्तरों में भारत के झंडे के साथ-साथ जम्मू-कश्मीर का झंडा भी लगा रहता था। अब जम्मू-कश्मीर की पहचान उसके अलग झंडे से नहीं, बल्कि तिरंगे से होगी।
– अब जम्मू-कश्मीर में देश के बाकी हिस्सों की तरह ही सारे कानून लागू होंगे। आर्टिकल 370 के कारण देश की संसद को जम्मू-कश्मीर के लिए रक्षा, विदेश मामले और संचार के अलावा अन्य किसी विषय में कानून बनाने का अधिकार नहीं था। साथ ही, राज्य को अपना अलग संविधान बनाने की अनुमति दी गई थी।
– जम्मू-कश्मीर में राज्यपाल का पद खत्म हो जाएगा। दिल्ली की तरह अब यहां उप-राज्यपाल (लेफ्टिनेंट गर्वनर) होंगे। राज्य की पुलिस केंद्र के अधिकार क्षेत्र में रहेगी।
– जम्मू-कश्मीर राज्य पर संविधान की अनुच्छेद-356 (किसी भी राज्य में संवैधानिक तंत्र की विफलता या संविधान के स्पष्ट उल्लंघन की दशा में केंद्र की संघीय सरकार को उस राज्य की सरकार को बर्खास्त करके वहां राष्ट्रपति शासन लागू करने का विशेषाधिकार) लागू नहीं होती थी। ऐसी स्थिति में वहां राष्ट्रपति शासन नहीं, बल्कि राज्यपाल शासन लगता था। अब लागू हो सकेगी।
– जम्मू-कश्मीर में अब दोहरी नागरिकता लागू नहीं होगी। पूर्व में केवल जम्मू-कश्मीर में केवल राज्य के स्थाई नागरिकों को ही राज्य चुनावों में वोट का अधिकार था। दूसरे राज्य के लोग यहां वोट नहीं दे सकते और ना ही चुनाव में उम्मीदवार बन सकते थे। अब भारत का कोई भी नागरिक वहां की मतदाता सूची में अपना नाम दर्ज करवा सकता है और चुनावों में प्रत्याशी भी बन सकता है।
– जम्मू-कश्मीर पूर्व की तरह राज्य ना होकर विधानसभा वाला एक केंद्र शासित प्रदेश बन गया है। लद्दाख को इससे अलग कर दिया गया है। लद्दाख में विधानसभा नहीं होगी। साथ ही, विधानसभा का कार्यकाल 6 साल की जगह 5 साल होगा।
– जम्मू-कश्मीर में अब तक 87 विधानसभा सीटें थीं, जो कि अब घटकर 83 हों जाएगी। केंद्र शासित प्रदेश बनाए जाने के बाद लद्दाख के चार निर्वाचन क्षेत्र खत्म हो जाएंगे।
– जम्मू एवं कश्मीर देश का तीसरा विधानसभा वाला केंद्र शासित प्रदेश बन गया है। इसके अलावा पुदुच्चेरी और राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र दिल्ली में विधानसभाएं हैं।
– अनुच्छेद 370 के निरस्त होते ही जम्मू-कश्मीर को मिले सारे विशेषाधिकार समाप्त हो गए हैं। अब यहां भी देश के बाकी हिस्सों की तरह पूरी तरह से भारतीय संविधान लागू होगा। गौरतलब है कि कश्मीर में 17 नवंबर 1956 को अपना संविधान लागू किया था।
– पूर्व में जम्मू-कश्मीर में आरटीआई और सीएजी जैसे कानून लागू नहीं होते थे लेकिन अब वे लागू होंगे।
– रणबीर दंड संहिता (त्च्ब्) की जगह भारतीय दंड संहिता (प्च्ब्) लागू होगी।
– जम्मू-कश्मीर में देश का कोई भी नागरिक अब नौकरी पा सकता है।
– भारतीय संविधान की अनुच्छेद 360 जिसके अंतर्गत देश में वित्तीय आपातकाल लगाने का प्रावधान है, लेकिन अनुच्छेद 370 के कारण जम्मू-कश्मीर पर यह प्रावधान अब तक लागू नहीं हो पाता था। अब जम्मू कश्मीर भी इसके दायरे में होगा।
– आर्टिकल 370 के खत्म होने के बाद अब अगर जम्मू-कश्मीर की महिला किसी अस्थायी निवासी से शादी करती है, तो उसे भी पुश्तैनी संपत्ति में अधिकार मिलेगा। अब वहां की महिलाओं पर पूर्व की भांति शरीयत का कानून नहीं, बल्कि देश के संविधान का कानून लागू होगा।
‘70 सालों की टीस खत्म हुई’
‘‘70 सालों की टीस खत्म होने का आनंद व्यक्त नहीं किया जा सकता। हम कभी क्यों नहीं बोलते कि यूपी, पंजाब या तमिलनाडु भारत का अभिन्न अंग है, यह इसलिए था कि धारा 370 से जनमानस में एक संशय था। आज यह कलंक मिट गया। कहा जाता है कि आर्टिकल 370 भारत को कश्मीर से जोड़ता है। धारा 370 भारत को कश्मीर से नहीं जोड़ती है बल्कि जोड़ने से रोकती है और आज यह रुकावट हमेशा के लिए दूर हो जाएगी।
‘पीओके पर हमारा दावा पहले की तरह ही मजबूत’
कहा जा रहा है कि पीओके पाक को दे दिया, नरेंद्र मोदी की सरकार पीओके को कभी दे ही नहीं सकती। पीओके पर हमारा दावा उतना ही मजबूत है, जितना पहले था।….बिल में पीओके और अक्साई चीन दोनों का जिक्र है।
20 जनवरी 1948 को संयुक्त राष्ट्र ने न्छब्प्च् का गठन किया और 13 अगस्त 1948 को न्छब्प्च् के प्रस्ताव को भारत, पाकिस्तान दोनों ने स्वीकार कर लिया। 1965 में पाकिस्तानी सेना ने हमारी सीमा का अतिक्रमण किया था और उसी वक्त न्छब्प्च् का प्रभाव खत्म हो गया था।
शिमला समझौते के वक्त भी इंदिरा गांधी ने दोहराया कि संयुक्त राष्ट्र कोई दखल नहीं दे सकता।
‘अलगाववाद के पीछे था आर्टिकल 370’
370 जम्मू-कश्मीर राज्य के संबंध में अस्थायी उपबंध था। उसे हटाना इसलिए जरूरी था कि यह संसद के अधिकार को कम करता है। पाकिस्तान अलगाववाद की भावना भड़का रहा है तो 370 की वजह से। वहां के लोगों में अलगाववाद होता है। वहां की विधानसभा की मंजूरी के बिना देश का कोई कानून वहां लागू नहीं होता।
‘370 हटाना जरूरी था, 371 को नहीं छेड़ेंगे’
370 के अलावा 371 और दूसरे आर्टिकल भी विशेष और अस्थायी उपबंध करते हैं लेकिन उनमें कुछ गलत नहीं है तो उन्हें क्यों बदलें। 370 और 371 की तुलना नहीं हो सकती। इसलिए नॉर्थ-ईस्ट या अन्य राज्यों को आश्वस्त करता हूँ कि सरकार की कोई मंशा 371 को हटाने की नहीं है।इसी रास्ते पर 2 बार 370 पर संशोधन हो चुका है, तब यह रास्ता ठीक था और आज क्यों खराब है? वजह वोट बैंक की राजनीति है।
‘हालात सामान्य होते ही दे सकते हैं पूर्ण राज्य का दर्जा’
वोट बैंक के लिए 370 को हटाने का विरोध हो रहा है। आज 370 हट जाएगा और इतिहास में यह दिन स्वर्णिम अक्षरों में लिखा जाएगा। विपक्ष के कई सदस्यों ने कहा है कि यह न्ज् हमेशा के लिए रहेगा क्या, क्यों बनाया? मैं स्पष्ट कर देना चाहता हूं कि जहां तक यूटी का सवाल है तो परिस्थिति सामान्य होते ही पूर्ण राज्य का दर्जा देने में सरकार को कोई आपत्ति नहीं है।
‘इतिहास नरेंद्र मोदी को सालों याद रखेगा’
अधीर रंजनजी ने संयुक्त राष्ट्र का जिक्र किया। लेकिन इस मामले को यूएन में लेकर कौन गया। रेडियो पर संघर्षविराम का एकतरफा ऐलान किसने किया। मामले को यूएन में नेहरूजी ही ले गए। आज की घटना का जब भी जिक्र होगा तो इतिहास नरेंद्र मोदी को सालों-सालों तक याद करेगा।
‘जब सेना जीत रही थी तब नेहरू ने एकतरफा संघर्षविराम क्यों किया?’
मनीष तिवारी ने इतिहास का जिक्र किया लेकिन एक सीमा पर आकर वह रुक गए। मैं पूछना चाहता हूँ कि जब 1948 में हमारी सेना विजयी हो रही थी, सेना पाकिस्तानी कबीलों के कब्जा किए गए हिस्से को जीत रही थी तो एकतरफा संघर्षविराम किसने किया? नेहरूजी ने किया था और उसी वजह से आज पीओके है। सेना को नहीं रोका होता तो पीओके आज भी हमारे साथ होता।
‘ऐतिहासिक भूल को सुधारने जा रहे हैं’
औवैसी साहब ने कहा कि सदन ऐतिहासिक भूल करने जा रहा है, ओवैसी साहब, हम ऐतिहासिक भूल नहीं बल्कि ऐतिहासिक भूल को सुधार करने जा रहे हैं।
‘चर्चा करते-करते थक गए, 3 पीढ़ियाँ बदल गई’
इंटरनेट बंद होने पर- 1989 से 1995 तक अक्सर कर्फ्यू लगा रहता था, फोन तो छोड़िए खाने के लिए भी कुछ नहीं मिलता था। 70 साल तक इस मुद्दे पर चर्चा करते-करते थक गए, 3 पीढ़ियाँ बदल गईं। किससे चर्चा करें? जो पाकिस्तान से प्रेरणा लेते हैं, उनसे चर्चा करें? हम हुर्रियत से चर्चा नहीं करेंगे। हम कश्मीरियों से चर्चा करेंगे। वे हमारे हैं, हम चर्चा से नहीं भागेंगे। घाटी की जनता से जितनी ज्यादा हो सकेगी हम चर्चा करेंगे और उन्हें अपने कामों से आश्वस्त करा देंगे कि वे हमारे लिए खास हैं। हम प्यार से बात कर उनके विकास के लिए सब करेंगे, वे 100 कहेंगे तो हम 110 देंगे। पिछली सरकार में हमने वहाँ के लिए सवा लाख करोड़ दिया था, जिसमें 80 हजार करोड़ खर्च भी हो चुके हैं।
‘मैं लौहपुरुष की छवि के लिए नहीं कर रहा कुछ’
मैं बीजेपी का एक छोटा सा कार्यकर्ता हूँ, मुझे लौहपुरुष की छवि बनाने के लिए कुछ नहीं करना है। ऐसे फैसले देशहित को देखकर लिए जाते हैं, घाटी की जनता की भलाई किसमें है, यह देखकर किए जाते हैं।
शाह ने बताया, क्यों जरूरी थी 370 हटाना
370 चालू रखनी है तो क्यों रखनी है, यह तो बताते। विरोध करने वालों में से किसी ने भी इस पर बात नहीं की। 370 जम्मू-कश्मीर के विकास, लोकतंत्र के लिए बाधक है। गरीबी को बढ़ाने वाली है, आरोग्य, शिक्षा से दूर करने वाली है। यह महिला, आदिवासी, दलित विरोधी है। यह
आतंकवाद का खाद और पानी दोनों है।
आर्टिकल 370 इस देश का कानून जम्मू-कश्मीर पर लागू होने से रोकता है। जम्मू-कश्मीर के सियासतदानों और 3 परिवारों ने अपने लिए इसका विरोध किया। बाल विवाह विरोधी कानून तक वहां लागू नहीं हो पाया। 370 को जो रखना चाहते हैं वे जवाब दें कि क्या आप बाल विवाह का समर्थन कर रहे हैं?
अल्पसंख्यक आयोग वहां नहीं पहुंच पाया। शिक्षा का अधिकार कानून जम्मू-कश्मीर में लागू नहीं हो पाया। नेशनल काउंसिल फॉर टीचर एजुकेशन को नहीं स्वीकार किया गया। जमीन अधिग्रहण, दिव्यांगों के लिए, बुजुर्गों के लिए बना कानून भी स्वीकार नहीं किया गया। डिलिमिटेशन देश भर में हुआ लेकिन जम्मू-कश्मीर में नहीं हुआ। क्यों? क्योंकि वोट बैंक की राजनीति थी। अब ऐसा नहीं होगा।
विसल ब्लोअर प्रोटेक्शन ऐक्ट भी वहां लागू नहीं हुआ। इसलिए क्योंकि वहां के 3 परिवार नहीं चाहते कि उनके भ्रष्टाचार पर रोक लगे। जम्मू-कश्मीर बैंक में जैसे ही ऐडमिनिस्ट्रेटर आया, उनके चेहरे पर पसीना आ गया। सफाई कर्मचारी आयोग देश में सब जगह है लेकिन वहां नहीं है। वाल्मीकि समुदाय के साथ यह अन्याय 370 की वजह से है।
दलित और आदिवासियों को वहाँ आरक्षण नहीं है। 370 की वकालत करने वालों से मैं पूछता हूँ कि आप किसके हक में खड़े हैं, क्या आप दलित और आदिवासियों के आरक्षण के खिलाफ हैं?
‘370 की आड़ में भ्रष्टाचार बढ़ा, लोकतंत्र का गला घोंटा’
370 की वजह से राज्य के विकास को रोका गया है, जनता की भलाई को रोका गया है और लोकतंत्र का गला घोंटा गया है। सिर्फ 3 परिवारों ने यह किया। पंचायती राज व्यवस्था को नहीं लागू होने दिया। आज जम्मू-कश्मीर में 40 हजार पंच-सरपंच अपने गाँवों के विकास का खाका खुद खींच रहे हैं। उन्हें 35000 करोड़ रुपये विकास के लिए दिए गए हैं।
370 और 35ए की वजह से भ्रष्टाचार बढ़ा और विकास रुका। 2004 से 2019 तक 2,77,000 करोड़ रुपये भारत सरकार ने राज्य को दिया लेकिन यह कहाँ गया? वहाँ गरीबी बनी हुई है। भ्रष्टाचार किया गया। प्रति व्यक्ति 14855 रुपये भेजा फिर भी विकास नहीं हुआ।
370 की वजह से महिलाओं के साथ अन्याय हुआ। अब ऐसा नहीं चलेगा। जम्मू-कश्मीर की बेटी कहीं भी शादी करे, उसे उसके अधिकारों से वंचित नहीं किया जा सकेगा।
‘370 की वजह से ही पनपा आतंकवाद‘
कहा जा रहा है कि आतंकवाद का मूल गरीबी में है। गरीब कभी आतंकवादी नहीं हो सकता। वहाँ 370 की आड़ में बहुत जहर घोला गया। सिर्फ 3 परिवारों का भला हुआ, किसी का भला नहीं हुआ। 1988 में जनरल जिया उल हक ने ‘ऑपरेशन टोपाज’ की शुरुआत की। 3 युद्ध हारने के बाद पाकिस्तान ने सीधा युद्ध न करके छद्म युद्ध शुरू करने की शुरुआत की। पाकिस्तान प्रेरित आतंकी संगठन तो चाहते हैं कि सारे देश में आतंकवाद पनपे। लेकिन ऐसा नहीं हुआ क्योंकि वहाँ 370 की वजह से आतंकवाद बढ़ा।
370 से घाटी के युवाओं का भला नहीं हुआ है। आप हिसाब-किताब तो कीजिए कि 370 से आपको क्या मिला? रोटी मिली, स्कूल मिली, शिक्षा मिली या आरोग्य मिला? क्यों पकड़े हुए हैं झुनझुना? इतिहास कैसे लिखा जाएगा मुझे इसकी चिंता नहीं है, लेकिन इतना मालूम है कि 370 का इतिहास लिखा गया है कि इसके कारण आतंकवाद फैला है। इसके जाने से घाटी के लोगों को हम नजदीक ला सकेंगे, आशा भर सकेंगे।
रविकान्त त्रिपाठी