राष्ट्रव्यापी समस्या बांग्लादेशी घुसपैठ से बुरी तरह प्रभावित जिला है असम। राजनैतिक दलों की कमजोर इच्छा शक्ति से ओर उलझती जा रही इस समस्या के हल के लिए असम में रह रहे विदेशियों की पहचान कर उन्हें देश से बाहर भेजने के लिए 1951 में नेशनल रजिस्टर फॉर सिटीजन (एनआरसी) बनाया गया था। अब सुप्रीम कोर्ट की निगरानी राज्य के वास्तविक नागरिकों की पहचान का काम शुरू हुआ है, जिससे अवांछित नागरिकों को पहचान कर कार्रवाही की जा सके।
राष्ट्रीय नागरिक रजिस्टर (एनआरसी) असम के नागरिकों की नागरिकता सूची है। इसमें उन सभी भारतीय नागरिकों के नाम, पते और फोटोग्राफ हैं, जो 25 मार्च, 1971 के पहले से असम में रह रहे हैं। असम देश का एकमात्र ऐसा राज्य है, जिसका राष्ट्रीय नागरिक रजिस्टर (एनआरसी) है। इसे पहली बार 1951 में तैयार किया गया था। उस वक्त असम राज्य के नागरिकों की संख्या 80 लाख थी। 1985 में केंद्र सरकार और असम के छात्र संगठन आसू के बीच असम समझौता हुआ था। इसी समझौते के आधार पर 2005 में एनआरसी अद्यतन करने का फैसला किया गया और तभी से राज्य में एनआरसी की प्रक्रिया शुरु हुई। असम में सुप्रीम कोर्ट की निगरानी में राष्ट्रीय नागरिक रजिस्टर (एनआरसी) अद्यतन करने का काम लगातार किसी न किसी बहाने अधर में लटकाया जाता रहा है और यह एक ऐसी लम्बी प्रक्रिया बन चुकी है जो समाप्त होने का नाम ही नहीं ले रही है।
असम में राष्ट्रीय नागरिक रजिस्टर की आवश्यकता क्यों?
असम में लंबे समय से अवैध रूप से रहने वाले बांग्लादेशियों का मुद्दा छाया रहा है। 80 के दशक में इसे लेकर छात्रों ने आंदोलन किया था, जिसके बाद असम गण परिषद और तत्कालीन राजीव गांधी सरकार के बीच समझौता हुआ। इसमें कहा गया है कि वर्ष 1971 तक जो भी बांग्लादेशी असम में घुसे उन्हें नागरिकता दी जाएगी और बाकी को निर्वासित किया जाएगा। वर्ष 1951 में एनआरसी तैयार किया गया था तब से इसे सात बार जारी करने की कोशिशें हुईं। आखिरकार, वर्ष 2013 में सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद यह सूची जारी हुई है।
सिटिजनशिप एक्ट 1955 के सेक्शन 14ए में 2004 में संशोधन किया गया था, जिसके तहत हर नागरिक के लिए अपने आप को नेशनल रजिस्टर ऑफ सिटिजंस यानी एनआरसी में रजिस्टर्ड कराना अनिवार्य बनाया गया था। इसी पर एनआरसी की तरफ पहला कदम है नेशनल पॉपुलेशन रजिस्टर यानी एनपीआर। असम और मेघालय को छोड़कर पूरे देश के लिए पॉपुलेशन रजिस्टर को 2015-16 में अपडेट किया गया था। इसके लिए आंकड़े 2011 की जनगणना के साथ ही जुटाए गए थे।
रजिस्ट्रार जनरल ऑफ इंडिया शैलेश ने बताया, ‘नैशनल रजिस्टर ऑफ सिटिजंस अपने स्तर, आकार और जटिलता में अभूतपूर्व है। देश में, शायद दुनिया में, इसका जैसे कुछ नहीं।’ उन्होंने बताया कि असम की जनगणना देश के बाकी हिस्सों से अलग है। यह सिटिजनशिप ऐक्ट 1955 और सिटिजनशिप (रजिस्ट्रेशन ऑफ सिटिजंस ऐंड इशू ऑफ नैशनल आइडेंटिटी कार्ड्स) रूल्स, 2003 का पालन करता है। इसके तहत 24 मार्च, 1971 की आधी रात तक राज्य में आने वालों को भारतीय नागरिक माना जाएगा।
52,000 लोग और तीन साल
उन्होंने बताया कि इस काम को करने में 52,000 राज्य कर्मचारियों को तीन साल से ज्यादा का समय लगा। ये सभी लोग वैधानिक प्रक्रियाओं का पालन कर रजिस्टर बनाने के काम में जुटे रहे। उन्होंने बताया कि अपडेट करने की यह पूरी प्रक्रिया पारदर्शिता और वस्तुनिष्ठ तरीके से पूरी की गई।
घर-घर जाकर वेरिफिकेशन
उन्होंने बताया कि जनगणना से अलग असम के रजिस्टर को अपडेट करने के लिए लोगों के घरों तक नहीं जाया गया। इसके लिए लोग सेवा केंद्रों पर गए या ऑनलाइन ही आवेदन भरे। लोगों के आवेदनों की बाद में कर्मचारियों ने घर-घर जाकर फील्ड वेरिफिकेशन के जरिये पुष्टि की।
डिजिटल हुआ डेटा
उन्होंने बताया कि इससे लोगों के पास अब डिजिटल डेटा हो गया है। इसमें 1951 के रजिस्टर और 24 मार्च, 1971 तक का इलेक्टोरल रोल शामिल है। उन्होंने बताया कि यह प्रशासन के लिए बड़ा मददगार साबित हुआ, क्योंकि उनके पास आवेदकों की योग्यता पता लगाना आसान हो गया।
घुसपैठियों को वापस भेजने के लिए 37 साल पुराना अभियान
असम में रह रहे घुसपैठियों को वापस भेजने के लिए अभियान लगभग 37 सालों से चल रहा है। 1971 में पाकिस्तान से आजाद होकर बने बांग्लादेश और उस दौरान हुए संघर्ष में कई लोग पलायन कर भारत आ गए थे और यहीं रहने लगे। इसके बाद स्थानीय लोगों और घुसपैठियों के बीच हिंसक वारदातें भी हुई। इसके चलते 1980 के दशक से उन्हें वापस भेजने की मांग की जा रही है।
1979 में शुरू हुआ पहला आंदोलन
घुसपैठियों को वापस भेजने के लिए आंदोलन द्वारा इसकी मांग की गई। सबसे पहले 1979 में ऑल असम स्टूडेंट यूनियन और असम गण परिषद ने आंदोलन शुरू किया। 6 साल चलने वाले इस आंदोलन ने हिंसक रूप भी लिया और सैंकड़ों की तादाद में इसमें लोगों की मौत भी हुई।
चुनावी मुद्दा भी बनाया गया
2014 में बीजेपी ने इसे चुनावी मुद्दा बनाया और घुसपैठियों को वापस भेजने की बात कही। 2015 में कोर्ट द्वारा एनआरसी लिस्ट अपडेट करने का आदेश दे दिया गया। जिसका फायदा बाजेपी को मिला और 2016 में बीजेपी की राज्य में पहली बार सरकार बनी। जिसके बाद घुसपैठियों को वापस भेजने प्रक्रिया तेज हुई।
80.30 लाख कुल आबादी थी असम की 1951 में
3.12 करोड़ पहुंच गई वर्ष 2011 में
3.2 गुना की दर से बढ़ी राष्ट्रीय जनसंख्या इस दौरान
36 फीसदी आबादी बढ़ी राज्य की 1951 से 1961 के बीच, इस दौरान देश की आबादी 22 फीसद ही बढ़ी।।
35 फीसदी आबादी में इजाफा हुआ 1961 से 1971 के बीच (जबकि देश की आबादी में सिर्फ 25 फीसदी इजाफा हुआ)। असम में 1971 से 2011 के बीच 40 साल में करीब सवा करोड़ वोटर बढ़ गए। हालांकि 1951 के बाद से ही असम की आबादी में बढ़ोतरी देखने को मिल रही थी, लेकिन 1971 के बाद इसमें तेजी आ गई। माना जा रहा है कि आबादी और वोटरों में अचानक हुई इस बढ़ोतरी के पीछे का बड़ा कारण बांग्लादेश से आए नागरिक ही हैं।
3 साल में राज्य के 3.29 करोड़ लोगों ने नागरिकता साबित करने कि लिए 6.5 करोड़ दस्तावेज भेजे। जिसमें लोगों को अपनी नागरिकता साबित करनी थी। इसके लिए 14 तरह के प्रमाणपत्र लगाए गए, जो ये साबित कर सके कि उनका परिवार 1971 से पहले राज्य का मूल निवासी है। इसके लिए सरकार द्वारा बड़ी तादाद में रिकॉर्डस चेक किए गए।
वस्तु स्थिति क्या है?
सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद से ही राज्य में अवैध तरीके से रहने वाले लोगों की पहचान कर उनको वापस भेजने के मकसद से असम में नेशनल रजिस्टर ऑफ सिटिजंस बनाने का काम चल रहा है। इस रजिस्टर में जिन लोगों के नाम होंगे जो भारत के नागरिक माने जाएंगे। इसके लिए कटऑफ डेट है 25 मार्च 1971। यानी वो लोग जो खुद, उनके माता-पिता या पूर्वज इस तारीख के पहले से असम में रह रहे हैं, उन्हें भारतीय नागरिक माना जाएगा। इसके लिए उन्हें दस्तावेजों के जरिए साबित करना होगा कि वो वैध तरीके से असम में रह रहे हैं।
असम में इसके पहले 1951 में एनआरसी बनाई गई थी। 2015 में असम की कांग्रेस सरकार ने एनआरसी अपडेट करने का काम शुरू किया था, जिसमें पिछले डेढ़-दो साल में तेजी आई है।
असम के मुस्लिमों का डर
1947 में आजादी के बाद से ही असम समेत पूरे भारत में सीमावर्ती इलाकों में पाकिस्तान से प्रवासियों का आना शुरू हो गया था। 1971 में भारत-पाकिस्तान युद्ध के समय असम में तत्कालीन पूर्वी पाकिस्तान (अब बांग्लादेश) से प्रवासियों का आना तेज हो गया जिसमें ज्यादातर मुस्लिम थे।
बांग्लादेश बनने के बाद 1972 में सरकार ने ऐलान किया कि भारत में 25 मार्च 1971 तक आए बांग्लादेशियों को रहने की इजाजत दी जाएगी, इस तारीख के बाद आए बांग्लादेशियों को वापस भेजा जाएगा।
असम में रह रहे मुस्लिमों का डर है कि इस रजिस्टर से खासकर गरीब और निरक्षर लोगों के नाम हटाए जा सकते हैं, क्योंकि उनके पास अक्सर पर्याप्त दस्तावेज नहीं रहते और उन्हें निशाना बनाया जाना आसान है। 2011 की जनगणना के मुताबिक, असम में 1 करोड़ से ज्यादा मुस्लिम हैं, जो असम की आबादी का करीब एक-तिहाई है। यही नहीं, असम के 14 जिलों में मुस्लिमों की बड़ी आबादी है ( धुबरी 24.44, मोरीगांव 23.34, गोलपाड़ा 22.64, दर्रांग 22.19, नगांव 22.00, बरपेटा 21.43, बोंगलगांव 20.59, लखीमपुर 17.22, कामरूप (एम) 18.34, करीमगंज 21.9, धेमाजी 19.97, कर्बी अंगलांग 17.58, कछार 20.19, हैलाकंडी 21.45 ) और आशंका है कि एनआरसी का पहला ड्राफ्ट जारी होने के बाद इन जिलों में तनाव अलग ही रूप ले सकता है।
क्यों संवेदनशील है एनआरसी का मुद्दा?
नेशनल रजिस्टर ऑफ सिटिजंस प्रोजेक्ट के अफसर बार-बार भरोसा दिला रहे हैं कि इस रजिस्टर को बनाने में पूरी सावधानी बरती जा रही है। असम में करीब 3.28 करोड़ लोग हैं और उन सभी के नागरिकता प्रमाण पत्रों की जांच में थोड़ा अतिरिक्त समय लग सकता है।
जारी होने वाला रजिस्टर पूरा नहीं होगा और इसमें नाम न होने का मतलब ये नहीं होगा कि बचे हुए लोगों को असम से निकाल दिया जाएगा। असम में नागरिकता और बांग्लादेशी मुस्लिमों का मुद्दा 1979 से ही राजनीतिक तौर पर उठने लगा था, जब यूनाइटेड लिबरेशन फ्रंट ऑफ असम की नींव पड़ी थी।
ऑल असम स्टूडेंट्स यूनियन (आसू) की अगुवाई में इसके बाद 6 साल तक असम में विरोध प्रदर्शन होते रहे, जो 1985 में तब शांत हुए जब केंद्र की राजीव गांधी सरकार ने असम अकॉर्ड पर दस्तखत किए। इस अकॉर्ड में 25 मार्च 1971 की कट-ऑफ तारीख को सख्ती से लागू करने का वादा किया गया। आसू का मानना है कि असम में बांग्लादेशियों की घुसपैठ बहुत भारी समस्या है और इससे ना केवल राज्य बल्कि पूरे देश की सुरक्षा को खतरा है। आसू एनआरसी का समर्थन कर रहा है।
राष्ट्रीय नागरिक रजिस्टर (एनआरसी) में दर्ज मुख्य तथ्य
– कुल 3.29 करोड़ आवेदन में 2.89 करोड़ लोगों के नाम राष्ट्रीय नागरिकता रजिस्टर में शामिल किए जाने के योग्य पाए गए जबकि 40 लाख लोगों का नाम ड्राफ्ट में नहीं हैं।
– वैध नागरिकता के लिए 3,29,91,384 लोगों ने आवेदन किया था, जिसमें 40,07,707 लोगों को अवैध माना गया।
– रजिस्ट्रार जनरल ऑफ इंडिया शैलेश द्वारा जारी बयान में कहा गया कि दो करोड़ 89 लाख 83 हजार छह सौ सात लोगों को राष्ट्रीय नागरिक रजिस्टर में योग्य पाकर उन्हें शामिल किया गया है।
– सरकार द्वारा आश्वासन दिया गया कि जिन लोगों के नाम इस ड्राफ्ट में शामिल नहीं हैं, उनके अधिकार कम नहीं होंगे।
– आवेदकों के लिए एक टोल फ्री नंबर भी जारी किया है जिस पर फोन करके भी पता लगाया जा सकता है, कि उन्हें भारतीय नागरिकता मिली है या नहीं।
– यह ड्राफ्ट 30 जुलाई को प्रकाशित किया गया है।
घबराएं नहीं, अभी भी मौका…
असम के राष्ट्रीय नागरिक रजिस्टर समन्यक प्रतीक हाजेला ने कहा कि राज्य में सभी एनआरसी सेवा केंद्रों में अंतिम मसौदा उपलब्ध है, जहां लोग अपने नाम की जांच कर सकते हैं। इसके अलावा आवेदक एनआरसी की वेबसाइट पर भी इसे देख सकते हैं। लोग 24ग7 टॉल फ्री नंबर असम के लिए 15107 और असम के बाहर के लिए 18003453762 पर फोन कर सकते हैं तथा अपना 21 अंकों का एप्लीकेशन रिसीप्ट नंबर बताकर जानकारी हासिल कर सकते हैं। मसौदे में जिनके नाम उपलब्ध नहीं होंगे, उनके द्वारा यहाँ नाम दर्ज कराये जा सकते हैं। यह लोग महिला/पुरुष संबंधित सेवा केन्द्रों में निर्दिष्ट फॉर्म को भर कर नाम दर्ज कराने के लिए आवेदन कर सकते हैं। यह फॉर्म 07 अगस्त से 28 सितंबर के बीच उपलब्ध होंगे। इसके बाद अगले कदम के तहत उन्हें अपने दावे को दर्ज कराने के लिए अन्य निर्दिष्ट फॉर्म भरना होगा, जो 30 अगस्त से 28 सितंबर तक उपलब्ध रहेगा। उधर महारजिस्ट्रार कार्यालय ने साफ कर दिया कि आगामी 31 दिसंबर से पहले सभी दावों की पड़ताल पूरी कर ली जाएगी और अंतिम एनआरसी को जारी कर दिया जाएगा।
राजेश सैनी