यह सच है कि दुनिया भर के बढ़ते तापमान का असर बाबा बर्फानी पर बिल्कुल नहीं दिख रहा है। ग्लोबल वार्मिंग की वजह से लगाई जा रही अटकलों के बावजूद कश्मीर स्थित प्रसिद्ध अमरनाथ की गुफा में इस बार भी 20 से 22 फुट ऊंचा हिमलिंग प्रकट हुआ है। ग्लोबल वार्मिंग की आशंका के चलते माना जा रहा था कि हिमलिंग का आकार कम हो सकता है लेकिन बाबा बर्फानी इस बार अपने पुराने रूप में मौजूद हैं।
कश्मीर में वैसे तो 45 शिव धाम, 60 विष्णु धाम, 3 ब्रह्मा धाम, 22 शक्ति धाम, 700 नाग धाम तथा असंख्य तीर्थ थे, जिनमें से अधिकतर का मुगल काल में अस्तित्व मिटा दिया गया। फिर भारत पाकिस्तान के युद्ध में पाकिस्तान द्वारा हड़पे किए गए कश्मीर के सभी तीर्थों को नष्ट कर दिया गया, जो सभी शिव से जुड़े थे। इन सभी में अमरनाथ का अधिक महत्व है।
हिन्दू समाज का सबसे प्रमुख तीर्थ स्थल अमरनाथ का माना जाता है। अमरनाथ में बर्फ से प्राकृतिक शिवलिंग बनता है। इस वर्ष 1 जुलाई से अमरनाथ यात्रा प्रारंभ हो गई था। यात्रा पर आतंकवादियों से खतरे का साया भी मंडरा रहा है। लगभग एक माह चलने वाली अमरनाथ यात्रा के दौरान लाखों श्रद्धालु बाबा बर्फानी के दर्शन करने पहुंचते हैं। कश्मीर की राजधानी श्रीनगर के उत्तर-पूर्व में 135 किलोमीटर दूर एवं समुद्र तल से 13 हजार 600 फुट की ऊंचाई पर यह मौजूद है। अमरनाथ के दर्शन करने वाले श्रद्धालु काफी मुश्किल भरा सफर करके यहां पहुंचते हैं। यहां बनने वाला शिवलिंग बारह ज्योतिर्लिंगों में से एक है।
अमरनाथ यात्रा का महत्व-
बाबा अमरनाथ की प्रमुख विशेषता यहां मौजूद पवित्र गुफा में प्राकृतिक शिवलिंग का निर्मित होना है और इसके दर्शन करने का काफी महत्व है। पवित्र गुफा की लंबाई (भीतरी गहराई) 19 मीटर, चौड़ाई 16 मीटर और ऊंचाई 11 मीटर है।गुफा के ऊपर से बर्फ के पानी की बूंदे टपकती है। जिससे बनने वाले लगभग 10-22 फुट के पवित्र शिवलिंग के दर्शन करने हेतु यहां लाखों श्रद्धालु पहुंचते हैं। आषाढ़ माह की पूर्णिमा से शुरू होकर रक्षाबंधन तक पूरे श्रावण माह में पवित्र शिवलिंग के दर्शन होते हैं। चन्द्रमा के घटने बढ़ने के साथ-साथ बर्फ से बने शिवलिंग के आकार में परिवर्तन होता है और अमावस्या तक शिवलिंग धीरे-धीरे छोटा होता जाता है।
गुफा का नाम कैसे पड़ा अमरनाथ
पुराणों के अनुसार, भगवान शिव ने इसी गुफा में माता पार्वती को अमरत्व का रहस्य बताया था इसलिए इस गुफा को अमरनाथ गुफा कहा जाता है।
प्राकृतिक शिवलिंग का निर्माण
अमरनाथ गुफा की सबसे बड़ी खासियत है कि यहां प्रत्येक वर्ष शिवलिंग का निर्माण प्राकृतिक रूप से होता है। प्राकृतिक हिम से निर्मित होने के कारण इसे स्वयंभू हिमानी शिवलिंग भी कहते हैं।
चंद्रमा और शिवलिंग का रिश्ता
हिम बूंदों से लगभग दस फुट लंबा शिवलिंग बनता है। चंद्रमा के घटने-बढ़ने के साथ-साथ बर्फ निर्मित शिवलिंग का आकार भी घटता-बढ़ता रहता है। श्रावण पूर्णिमा को यह अपने पूरे आकार में आ जाता है और अमावस्या तक धीरे-धीरे छोटा होता जाता है।
बाबा अमरनाथ का इतिहास
बाबा अमरनाथ के दर्शन के लिए जाने वाले यात्री “बाबा बर्फानी की जय“ के नारों के साथ आगे बढ़ते रहते हैं। अमरनाथ यात्रा को लेकर कई पौराणिक कथाएं भी हैं। बताया जाता है कि भगवान शिव ने माता पार्वती को इसी अमरनाथ गुफा में अमर कथा सुनाई थी। बताया जाता है कि जिस दौरान भगवान शिव माता पार्वती को यह कथा सुना रहें थे उस समय उनके अलावा एक कबूतर का जोड़ा मौजूद था। जो यह सुनकर अमर हो गया एवं आज भी अमरनाथ के दर्शन करने जाने वाले श्रद्धालुओं को यह कबूतर को जोड़ा दिखाई देता है। यह भी बताया जाता है कि भगवान शिव ने जब माता पार्वती को गुफा में सुनाई कथा में अमरनाथ यात्रा एवं उसके मार्ग में आने वाले स्थलों का वर्णन था।
कैसे पहुंचे :
अमरनाथ की गुफा तक पहुँचने का रास्ता बेहद दुर्गम है। यहाँ आने के लिए दर्शनार्थी जम्मू तक रेल से व जम्मू से पहलगाम या बालटाल तक बस एवं चार पहिया वाहन या दो पहिया वाहन से भी पहुँच सकते हैं। श्रीनगर तक हवाई जहाज से एवं श्रीनगर से बालटाल और बाबा अमरनाथ की गुफा के पास तक हेलिकॉप्टर से भी पहुँचा जा सकता हैं।
यहाँ से आगे पहुँचने के लिए दो रास्ते हैं। पहला- पहलगाम मार्ग से, दूसरा बालटाल मार्ग से। पहलगाम मार्ग से आने के लिए दर्शनार्थियों को जम्मू से चलने के बाद श्रीनगर आने से पहले अनंतनाग शहर की ओर जाना पड़ता है और वहाँ से पहलगाम पहुँचना पड़ता है।पहलगाम से गुफा तक की दूरी लगभग 51 किलोमीटर है।
बालटाल मार्ग पर पहुँचने के लिए दर्शनार्थी जम्मू से सीधे श्रीनगर होते हुए बालटाल पहुँचते हैं। बालटाल पहुँचने से 9 किलोमीटर पहले कश्मीर वादी का एक और सुंदर स्थान सोनमर्ग भी यहीं पर है। बालटाल से लगभग 13 किलोमीटर की दूरी पर एक स्थान है, जिसे संगम कहा जाता है। यहाँ पर बालटाल से आने वाला रास्ता एवं पहलगाँव से पंचतरणी होते हुए आने वाला रास्ता मिलता है। इसलिए इसका नाम संगम पड़ा। और यहाँ से 3 किलोमीटर की दूरी पर है – बाबा अमरनाथ की पवित्र गुफा।
श्रद्धालुओं का दायित्व : हिमलिंग और अमरनाथ की प्रकृति की रक्षा करना जरूरी है। कुछ वर्षों से बाबा अमरनाथ गुफा के दर्शन के लिए आने वाले श्रद्धालुओं की संख्या बढ़ती जा रही है जिसके चलते वहां मानव की गतिविधियों से गर्मी उत्पन्न हो रही है। कुछ श्रद्धालु अब वहां धूप और दीप भी जलाने लगे हैं जो कि हिमलिंग और गुफा के प्राकृतिक अस्तित्व के लिए घातक सिद्ध हो रहा है। शिवलिंग को छूकर, धूप, दीपक जलाकर अपनी श्रद्धा प्रकट करना गलत है। इसका ध्यान रखा जाना चाहिए।
संजय सोनी