भारतीय स्वातन्त्र्य आन्दोलन
सत्याग्रह से स्वतंत्रता : महात्मा गाँधी
राष्ट्रवाद के इतिहास में प्रायः एक अकेले व्यक्ति को राष्ट्र-निर्माण के साथ जोड़कर देखा जाता है। उदाहरण के लिए, हम इटली के निर्माण के साथ गैरीबाल्डी को, अमेरिकी स्वतंत्रता युद्ध के साथ जॉर्ज वाशिंगटन को और वियतनाम को औपनिवेशिक शासन से मुक्त कराने के संघर्ष से हो ची मिन्ह को जोड़कर देखते हैं। इसी तरह महात्मा गाँधी को भारतीय राष्ट्र का ‘पिता’ माना गया है।
चूंकि गाँधी जी स्वतंत्रता संघर्ष में भाग लेने वाले सभी नेताओं में सर्वाधिक प्रभावशाली और सम्मानित हैं, अतः उन्हें दिया गया उपर्युक्त विशेषण गलत नहीं है। कोई व्यक्ति चाहे कितना ही महान क्यों न हो वह न केवल इतिहास बनाता है बल्कि स्वयं भी इतिहास द्वारा बनाया जाता है।
यह लेख भारतीय समाज के विभिन्न हिस्सों के साथ उनके संपर्कों और उनके द्वारा प्रेरित तथा नेतृत्व किए गए लोकप्रिय संघर्षों को पाठकों के समक्ष प्रस्तुत करता है। सन 1857 के विद्रोह के बाद जनमानस संगठित होने लगा और अंग्रेजों के विरुद्ध लामबंद होने लगा। प्रबुद्ध लोगों और आजादी के दीवानों द्वारा सन् 1885 में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस की स्थापना की गई।
प्रारंभिक 20 वर्षों में 1885 से 1905 तक भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस पर उदारवादी नेताओं का दबदबा रहा। इसके बाद धीरे धीरे चरमपंथी (गरमदल) नेताओं के हाथों में बागडोर जाने लगी। इसी बीच महात्मा गांधी, दक्षिण अफ्रीका से 9 जनवरी 1915 को स्वदेश (मुम्बई) में कदम रखा। तभी से हर साल 9 जनवरी को प्रवासी दिवस मनाते आ रहे हैं। जब गांधी जी स्वदेश आये तो उन्हें गोपाल कृष्ण गोखले ने सुझाव दिया कि आप देश में जगह-जगह भ्रमण कर देश की स्थिति का अवलोकन करें। अपने राजनैतिक गुरु गोपाल कृष्ण गोखले के सुझाव पर गांधीजी ने देश के विभिन्न क्षेत्रों से भ्रमण करते हुए बंगला के मशहूर लेखक रवींद्रनाथ टैगोर से मिलने शांति निकेतन पहुँचे। वही पर टैगोर ने सबसे पहले गांधी जी को महात्मा कहा था और गांधी जी ने टैगोर को गुरु कहा था। गाँधी जी हमेशा तृतीय श्रेणी में यात्रा करते थे ताकि देश की वास्तविक स्थिति से अवगत हो सके।
मई 1915 में गांधी जी ने अहमदाबाद के पास कोचरब में अपना आश्रम स्थापित किया, लेकिन वहाँ प्लेग फैल जाने के कारण साबरमती क्षेत्र में आश्रम की स्थापना की। दिसम्बर 1915 में कांग्रेस के मुम्बई अधिवेशन में गांधी जी ने भाग लिया गांधी जी ने यहाँ विभाजित भारत को महसूस किया देश अमीर गरीब, स्वर्ण – दलित हिन्दू- मुस्लिम, नरम-गरम विचारधारा , रुढ़िवादी आधुनिक भारत में ब्रिटिश साम्राज्य के समर्थक, ब्रिटिश विरोधी जिनको इस बात का बहुत कष्ट था कि देश गुलाम है। गांधी जी किसके पक्ष में खड़े हों या सबको साथ लेकर चले।
गांधी जी उस समय के करिश्माई नेता थे जिन्होंने दक्षिण अफ्रीका में सबको साथ लेकर सबके अधिकारों की लड़ाई नस्लभेदी सरकार के विरुद्ध सत्याग्रह के माध्यम से लोहा लिया था और कामयाब भी हुए थे। गांधी जी ने पहली बार देश में सन् 1917 में बिहार के चंपारण में सत्याग्रह आनंदेलन किया था। उनका आन्दोलन जन आन्दोलन होता था। चंपारण में नील किसानों के तीन कठिया विधि से मुक्ति दिलाई और अंग्रेजों से अपनी बात मनवाने में कामयाब हुए। गरीबों को सूत कातने एवं उससे कपड़े बनाने की प्रेरणा दी जिससे इनके जीवन-यापन में गुणात्मक सुधार आया।
गुजरात क्षेत्र का खेडा क्षेत्र बाढ़ एवं अकाल से पीड़ित था, सरदार पटेल अनेक जैये स्वयं सेवक आगे आये उन्होंने ब्रिटिश सरकार से कर राहत की माँग की। गांधी जी के सत्याग्रह के आगे अंग्रेजों को झुकना पड़ा किसानों को कर देने से मुक्ति मिली सभी कैदी मुक्त कर दिए गये गांधी जी की ख्याति देश भर में फैल गई। यही नहीं खेड़ा क्षेत्र के निवासियों को स्वच्छता का पाठ पढाया। वहाँ के शराबियों को शराब की लत को भी छुडवाया।
1914 से 1918 तक प्रथम विश्व युद्ध के दौरान अंग्रेजों ने रॉलेट एक्ट के तहत प्रेस की आजादी पर प्रतिबंध लगा दिया, रॉलेट एक्ट के तहत बिना जाँच के किसी को भी कारागार में डाला जा सकता था। गांधी जी ने देश भर में रॉलेट एक्ट के विरुद्ध अभियान चलाया। पंजाब में इस एक्ट का विशेष रूप से विरोध हुआ पंजाब जाते समय में गांधी जी को कैद कर लिया गया साथ ही स्थानीय कांग्रेसियों को भी कैद कर लिया गया।13 अप्रैल को 1919 बैसाखी के पर्व पर अमृतसर के जलियांवाला बाग में लोग इकठ्ठे हुए थे। जलियांवाला बाग चारों तरफ से मकानों से घिरा था बाहर जाने के लिए एक ही गेट था। वहाँ एक जनसभा में नेता भाषण दे रहे थे। जरनल डायर ने निकलने के एकमात्र रास्ता को बंद कर निर्दोष बच्चों स्त्रियों व पुरुषों को गोलियों से भून डाला एक के ऊपर एक गिर कर लाशों के ढेर लग गये, जिससे पूरा देश आहत हुआ गांधी जी ने खुल कर ब्रिटिश सरकार का विरोध किया।
खिलाफत आंदोलन के द्वारा सम्पूर्ण देश में आंदोलन को धार देने के लिए हिन्दू – मुस्लिम एकता पर बल दिया और सितंबर 1920 के काग्रेस अधिवेशन में खिलाफत आंदोलन को समर्थन देने के लिए सभी नेताओं को मना लिया। असहयोग आंदोलन द्वारा गांधी जी ने अपना परचम अंग्रेजों के विरुद्ध पूरे देश में लहरा दिया। जिस कारण 1921-22 के बीच आयात आधा हो गया, 102 करोड़ से घटकर 57 करोड़ रह गया। दिसंबर 1921 में गांधी जी को भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस का अध्यक्ष नियुक्त किया गया।
असहयोग आंदोलन का उद्देश्य अब स्वराज्य हासिल करना हो गया। गांधी जी ने अध्यक्ष बनते ही कांग्रेस को राष्ट्रीय फलक पर पहुँचाने की बात की। इन्होंने एक अनुशासनात्मक समिति का गठन किया। और असहयोग आंदोलन को उग्र होने की संभवना से फरवरी 1922 में वापस ले लिया क्योंकि चौराचौरी सहित जगह-जगह हिंसक घटनायें होने लगी। पर इन्होंने अपनी बात को पूरजोर तरीके से रखना जारी रखा। 1925-1928 तक गांधी जी ने समाज सुधार के लिए भी काफी काम किया।
सन 1928 में साइमन कमीशन भारत पहुँचा तो उसका स्वागत देशवासियों ने साइमन कमीशन वापस जाओ नारे के साथ किया। धीरे-धीरे कांग्रेस का दबदबा पूरे देश में बढ़ता गया। और राष्ट्र की भावना को प्रेरित कर देशवासियों को एक सूत्र में पिरोने का काम गांधीजी ने बखूबी किया। गांधी जी के बढ़ते प्रभाव के कारण देशवासी अपने आप को एक सूत्र में पिरनों लगे। इस आंदोलन को शांत करने के लिए तत्कालिन वायसराय लार्ड इरविन ने अक्टूबर 1929 में भारत के लिए डोमिनीयन स्टेट्स का गोलमोल सा ऐलान कर दिया। इस बारे में कोई सीमा भी तय नहीं किया गया और कहा गया कि भारत के संविधान बनाने के लिए गोलमेज सम्मेलन आयोजित किया जायेगा।
1930-32 लंदन में तीन गोलमेज सम्मेलन हुआ। गांधी जी 1931 में जेल से रिहा हुए तो गांधी-इरविन-समझौता हुआ, जिससे सारे कैदियों को रिहा किया गया तथा तटीय इलाके में नमक उत्पादन की छूट दी गई। पर राजनैतिक स्वतंत्रता के लिए बातचीत का आश्वासन दिया गया। गांधी जी ने दूसरे गोलमेज सम्मेलन में भाग लिया, पर बात कुछ खास बनी नहीं। 1935 में गर्वमेंट ऑफ इंडिया एक्ट बना, फिर 2 साल बाद सीमित मताधिकार का प्रयोग करने की अनुमति दी गई। सितंबर 1939 में द्वितीय विश्व युद्ध में भारत को बिना अनुमति के अंग्रेजों ने युद्ध में झोक दिया, फिर युद्ध समाप्ति से पहले जपान पर परमाणु बम से हमले की निंदा की।
आहत भी हुए पर अपना सत्य और अहिंसा का मार्ग नहीं छोड़ा :
सविनय अवज्ञा आंदोलन हो या सन 1942 में गांधी जी द्वारा अंग्रेजों भारत छोड़ों आंन्दोलन में करो या मरो का नारा। आजादी की लड़ाई में गांधी जी का योदगान धीरे धीरे शिखर को चूमने लगा। अंत में अंग्रेज विवश हो गये और ब्रिटेन के तत्कालीन प्रधानमंत्री क्लीमेंट एटली के पहल पर कैबिनेट मिशन की घोषणा कर दी गई। ब्रिटिश कैबिनेट मिशन 24 मार्च 1946 को भारत आया। अंततः 15 अगस्त 1947 को भारत एक स्वतंत्र राष्ट्र के रुप में दुनिया के पटल पर उदय हुआ। भारतीय स्वतंत्रता में गांधी जी का योगदान अद्वितीय है। आज भी हर भारतीय के जनमानस में गांधी जी का आजादी के लिए दिया योगदान जीवंत है।
दुर्गेश मेनारिया, प्रधानाचार्य