दुनिया में बहुत बड़े – बड़े वैज्ञानिक हुए है लेकिन उन सब में अल्बर्ट आइन्स्टीन का स्थान सर्वोपरि है। अल्बर्ट आइन्स्टीन एक सैद्धांतिक भौतिकविद थे। वे सापेक्षता के सिद्धांत और द्रव्यमान उर्जा समीकरण म्त्रउब2 के लिये जाने जाते हैं।
अल्बर्ट आइन्स्टीन को उनके प्रकाश उर्जा उत्सर्जन की खोज करने के लिये सन 1921 में नोबेल पुरस्कार से सम्मानित किया गया था। अल्बर्ट ने कई क्षेत्रों में अपना योगदान दिया था, जैसे – सापेक्ष ब्राह्मांड, कोशिकायों की गति, अणुओं का ब्राउनियन, एक अणु वाले गैस का कवाण्टम सिद्धांत और उष्मीय गुण तथा भौतिकी का ज्यामितिकरण आदि 50 से भी अधिक शोध पत्रों और विज्ञान संबंधी कई किताबें लिखी थीं। वर्ष1999 में टाइम्स पत्रिका ने उन्हें शताब्दी पुरुष घोषित किया था और उनकी गिनती विश्व के महान वैज्ञानिको में की जाती है। आइन्स्टीन ने लगभग 300 से भी अधिक वैज्ञानिक शोध पत्रों का प्रकाशन किया था। आइन्स्टीन की बौद्धिक उपलब्धियों और अपूर्वता ने उन्हें बुद्धिमता का पर्याय बना दिया है।
आरंभिक जीवन :
अल्बर्ट आइंस्टीन का जन्म 14 मार्च 1879 में जर्मनी में वुतटेमबर्ग के यहूदी परिवार में हुआ था। उनके पिता हरमन आइंस्टीन एक इंजिनियर और सेल्समेन थे। उनकी माता पोलिन आइंस्टीन थी। 1880 में, उनका परिवार म्यूनिख शहर चला गया जहाँ उनके पिता और चाचा ने एक कंपनी खोली जो बिजली के उपकरण बनाती थी और इस कम्पनी ने म्यूनिख के ओक्टोबर फेस्ट में पहली बार रोशनी का इंतजाम भी किया था।
आइंस्टीन परिवार यहूदी धार्मिक परम्पराओ को नहीं मानता था और इसीलिए आइंस्टीन कैथोलिक विद्यालय में पढने के लिए गये। लेकिन बाद में 8 साल की उम्र में वे वहाँ से स्थानांतरित होकर लुइटपोल्ड जिम्नेजियम (जिसे आज अल्बर्ट आइंस्टीन जिम्नेजियम के नाम से जाना जाता है) गये, जहाँ उन्होंने माध्यमिक और उच्च माध्यमिक शिक्षा ग्रहण की, वे वहाँ अगले 7 सालों तक रहे, जब तक उन्होंने जर्मनी नहीं छोड़ी।
1895 में आइंस्टीन ने 16 साल की उम्र में स्विस फेडरल पॉलिटेक्निक, जुरिच की एंट्रेंस परीक्षा दी। भौतिकी और गणित के विषय को छोड़ कर बाकी दूसरे विषयो में वे पर्याप्त मार्क्स पाने में असफल हुए और अंत में पॉलिटेक्निक के प्रधानाध्यापक की सलाह पर वे आर्गोवियन कैनटोनल स्कूल, आरु, स्विट्जरलैंड गये। 1895-96 में अपनी उच्च माध्यमिक शिक्षा उन्होंने वहीं से पूरी की।
अल्बर्ट आइंस्टीन ने बहुत से अविष्कार किये जिनके लिए उनका नाम प्रसिद्ध वैज्ञानिको में गिना जाने लगा ।
उनके कुछ अविष्कार इस प्रकार है….
प्रकाश की क्वांटम थ्योरी :
आइंस्टीन की प्रकाश की क्वांटम थ्योरी में उन्होंने ऊर्जा की छोटी थैली की रचना की जिसे फोटोन कहा जाता है, जिन में तरंग जैसी विशेषता होती है। उनकी इस थ्योरी में उन्होंने कुछ धातुओं से इलेक्ट्रॉन्स के उत्सर्जन को समझाया। उन्होंने फोटो इलेक्ट्रिक इफेक्ट की रचना की। इस थ्योरी के बाद उन्होंने टेलेविजन का आविष्कार किया। जो कि दृश्य को शिल्प विज्ञान के माध्यम से दर्शाया जाता है। आधुनिक समय में बहुत से ऐसे उपकरणों का अविष्कार हो चुका है।
E= mc2 : आइंस्टीन ने द्रव्यमान और ऊर्जा के बीच एक समीकरण प्रमाणित किया। जिसका आज न्यूक्लीयर ऊर्जा के क्षेत्र में महत्वपूर्ण उपयोग हो रहा है।
ब्राउनियन मूवमेंट :
इसे अल्बर्ट आइंस्टीन की सबसे बड़ी और महत्वपूर्ण खोज कहा जा सकता है। जहाँ उन्होंने परमाणु के निलंबन में जिग जैग मूवमेंट का अवलोकन किया। जो कि अणु और परमाणुओं के अस्तित्व के प्रमाण में सहायक है। हम सभी जानते है कि यह आज के समय में विज्ञान की सभी शाखाओं में मुख्य है।
स्पेशल थ्योरी ऑफ रिलेटिविटी :
अल्बर्ट आइंस्टीन की इस थ्योरी में समय और गति के सम्बन्ध को समझाया है। ब्रम्हांड में प्रकाश की गति को निरंतर और प्रकृति के नियम के अनुसार बताया है। जनरल थ्योरी ऑफ रिलेटिविटी में अल्बर्ट आइंस्टीन ने प्रस्तावित किया कि गुरुत्वाकर्षण स्पेस – टाइम कोंटीनूम में कर्व क्षेत्र है। जो कि द्रव्यमान के होने को बताता है।
स्नातक की डिग्री लेने के बाद उन्होंने विद्यार्थियो ंको पढ़ाने के बारे में विचार किया लेकिन अल्बर्ट के अधिक ज्ञान की वजह से प्रारम्भ में उन्हें नौकरी नही मिली। सन् 1902 में आइन्स्टीन को स्विट्जरलैंड के बर्न शहर में एक अस्थाई नौकरी मिल गयी। अब उन्हें अपने शोध लेखों को लिखने और प्रकाशित कराने का बहुत समय मिला। उन्होंने डॉक्टरेट की डिग्री प्राप्त करने के लिए मेहनत करना शुरू कर दिया और अंत में उन्हें डॉक्टरेट की उपाधि मिल ही गयी। ज्यूरिख विश्व विद्यालय में उनको प्रोफेसर की नियुक्ति मिली और लोगों ने उनकी प्रतिभा को पहचानकर उन्हें महान वैज्ञानिक मानना शुरू कर दिया। सन् 1905 में 26 वर्ष की आयु में उन्होंने सापेक्षिकता का सिद्धांत प्रतिपादित किया जिसने उन्हें विश्व विख्यात कर दिया। इस विषय पर उन्होंने केवल चार लेख लिखे थे, जिन्होंने भौतिकी का चेहरा बदल दिया। इस सिद्धांत का प्रसिद्ध समीकरण म्त्रउब2 है जिसके कारण ही परमाणु बम बन सका। इसी के कारण इलेक्ट्रिक ऑय की बुनियाद रखी गयी। इसी के कारण ध्वनि चल चित्र और टीवी पर शोध हो सके । आइन्स्टीन को अपनी इसी खोज के लिए विश्व प्रसिद्ध नोबल पुरुस्कार मिला था।
अल्बर्ट आइन्सटीन के विचार
दो चीजें अनंत हैं : ब्रह्माण्ड और मनुष्य की मूर्खता, और मैं ब्रह्माण्ड के बारे में दृढ़ता से नहीं कह सकता।
जिस व्यक्ति ने कभी गलती नहीं की उसने कभी कुछ नया करने की कोशिश नहीं की।
प्रत्येक इंसान जीनियस है। लेकिन यदि आप किसी मछली को उसकी पेड़ पर चढ़ने की योग्यता से जज करेंगे तो वो अपनी पूरी जिन्दगी यह सोच कर जिएगी की वो मूर्ख है।
एक सफल व्यक्ति बनने का प्रयास मत करो। बल्कि मूल्यों पर चलने वाले इंसान बनो।
जब आप एक अच्छी लड़की के साथ बैठे हों तो एक घंटा एक सेकंड के समान लगता है। जब आप धधकते अंगारे पर बैठे हों तो एक सेकंड एक घंटे के सामान लगता है। यही सापेक्षता है।
क्रोध मूर्खों की छाती में ही बसता है।
यदि मानव जीवन को जीवित रखना है तो हमें बिलकुल नयी सोच की आवश्यकता होगी।
इंसान को यह देखना चाहिए कि क्या है? यह नहीं कि उसके अनुसार क्या होना चाहिए।
कोई भी समस्या चेतना के उसी स्तर पर रहकर नहीं हल की जा सकती है जिस पर वह उत्पन्न हुई है।
बिना सवाल किसी अधिकृत व्यक्ति का सम्मान करना सत्य के खिलाफ जाना है।
बीते हुए कल से सीखना, आज में जीना, कल के लिए आशा रखना।सबसे महत्वपूर्ण चीज है, प्रश्न पूछना बंद मत करना।
मूर्खता और बुद्धिमता में यह फर्क है कि बुद्धिमता की एक सीमा होती है।
जिन्दगी एक तरह से साइकिल को चलाने के समान है।जिस प्रकार आगे बढ़ने के लिए हमें साइकिल पर संतुलन की जरूरत होती है, उसी तरह संतुलित जीवन जी कर हम जिन्दगी में आगे बढ़ सकते हैं।
यदि आप किसी कार्य को करने के सारे नियम जानते हैं, तो आप उस कार्य को किसी से भी बेहतर तरीके से कर सकते हैं।
समुद्री जहाज किनारों पर सबसे ज्यादा सुरक्षित है, पर वो किनारों पर खड़े रहने के लिए नहीं बना है।
रोचक तथ्य : अल्बर्ट आइन्स्टीन एक दिन कही भाषण देने जा रहे थे। रास्ते में उनके ड्राइवर ने उनसे कहा कि मैं आप का भाषण इतनी बार सुन चुका हूँ कि लोगों के सामने मैं ही आपका भाषण दे सकता हूँ। उसकी बात सुन कर उन्होंने उससे कहा ‘ठीक है आज तुम्हीं मेरी जगह भाषण देना’ आइन्स्टीन ने ड्राइवर की पोशाक पहन कर उसका स्थान ले लिया और अपना स्थान ड्राइवर को दे दिया। भाषण हॉल में ड्राइवर ने सचमुच, आइंस्टीन के जैसे ही, धुआँधार भाषण दिया। भाषण देने के बाद जब लोगों ने प्रश्न पूछने शुरू किए और ड्राइवर ने पूरे आत्म विश्वास के साथ जवाब भी सही दिए। किन्तु किसी एक ने ऐसा कठिन प्रश्न पूछ लिया कि ड्राइवर को उसका उत्तर नहीं पता था। इस पर ड्राइवर ने कहा, ‘‘अरे इस प्रश्न का जवाब तो इतना सरल है कि मेरा ड्राइवर ही आपको बता देगा।’’ ऐसा कहकर उसने ड्राइवर वाली पोशाक पहने आइन्स्टीन को जवाब देने के लिए खड़ा कर दिया।
तरुण शर्मा