भारत के प्राचीन ऋषि मनीषियों ने लम्बी साधना एवं गहन अध्ययन के द्वारा शरीर को स्वस्थ एवं दीर्घायु रखने के लिये विभिन्न चिकित्सा पद्धतियों को विकसित किया। उनमें से ‘‘मुद्रा विज्ञान’’ एक ऐसी चिकित्सा पद्धति है जिसमें हाथों की अंगुलियों व अँगूठे के उपयोग के द्वारा ही चिकित्सा का लाभ प्राप्त किया जा सकता है। चिकित्सा पद्धति में हठ योग के आसन, प्राणायाम एवं बंध की कुछ जानकारी अधिकांश लोगों को है परन्तु मुद्राओं की जानकारी एवं उनके अद्भुत प्रभाव से अधिकांश जन अपरिचित हैं। आइए, कुछ मुद्राएँ और उनके प्रभाव से परिचित होते है
विधि – मध्यमा एवं अनामिका अंगुलियों के शीर्ष भाग को अँगूठे के अग्र भाग से मिलाना, शेष दोनों अंगुलियाँ सीधी रखनी हैं।
ध्यातव्य – पृथ्वी तत्व, आकाश तत्व एवं अग्नि तत्व के मिलने से यह मुद्रा बनती है। अपान वायु नाभि से नीचे पैरों तक संचरित होती है। पेट, नाभि, गुदा, गुप्तांग, घुटना, पिंडली, जंघाएँ, पैर सभी प्रभावित होते हैं। अतः इन सभी से सम्बन्धित रोगों की चिकित्सा अपान मुद्रा से होती है।
सावधानी – गर्भ धारण के बाद प्रारंभ के 7 महीनों में इस मुद्रा का प्रयोग नहीं करना है।
अवधि – 30-45 मिनट नित्य।
लाभ-
इस मुद्रा से शरीर के दूषित तत्व बाहर निकलते हैं। शरीर दोषमुक्त एवं निर्मल होता है।
पसीना आने की क्रिया को यह मुद्रा बढ़ाती है, जिससे शरीर की अनावश्यक गर्मी बाहर निकलती है। पैरों की जलन भी दूर होती है।
पेट के सभी अंगों की सक्रियता बढ़ाती है। पेट के सभी विकारों जैसे- जी मिचलाना, हिचकी, उल्टी एवं डायरिया में लाभ होता है।
उच्च रक्तचाप, मधुमेह, गुर्दे एवं श्वास के रोग, दाँतों में दर्द, मसूड़ों के रोग, पेशाब का रूकना, पेशाब की जलन, यकृत (स्पअमत) के रोग, पेट दर्द, कब्ज, अपच एवं बवासीर (च्पसमे) में भी लाभकारी है।
गर्भावस्था के सात से नौवें महीने तक इस मुद्रा को नित्य लगाने से प्रसव सरलता से हो जाता है। सीजेरियन (ऑपरेशन) की आवश्यकता नहीं पड़ती है। शिशु भी स्वस्थ होता है।
मधुमेह के रोग में 15 मिनट अपान मुद्रा एवं 15 मिनट प्राण मुद्रा करने से अधिक लाभ होगा।
गुर्दे निष्क्रिय होने पर भी यह मुद्रा काम करती है एवं महिलाओं में हार्मोन की समस्याएं एवं मासिक धर्म के कष्ट दूर होते हैं।
बस में यात्रा करते समय अपान मुद्रा करने से उल्टी नहीं आती है एवं मुँह के छाले भी ठीक होते हैं।
अपान मुद्रा से नपुंसकता, पीलिया, अनिद्रा, अस्थमा में भी लाभ होता है।
अपान मुद्रा के साथ प्राण मुद्रा के नित्य अभ्यास से आध्यात्मिक साधना का मार्ग खुल जाता है। यदि अपान मुद्रा के बाद प्राण मुद्रा की जाए तो प्राण और अपान दोनों के साथ होने से साधक समाधि की गहरायी में जा सकते हैं।
श्रीवर्द्धन लेखक राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के वरिष्ठ प्रचारक हैं।
साथ ही योग, प्राणायाम, एक्यूप्रेशर एवं मुद्रा विज्ञान
के सिद्धहस्त एवं अभिनव शोधकर्ता भी हैं।