लेखक राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के वरिष्ठ प्रचारक हैं।
साथ ही योग, प्राणायाम, एक्यूप्रेशर एवं मुद्रा विज्ञान
के सिद्धहस्त एवं अभिनव शोधकर्ता भी हैं।
भारत के प्राचीन ऋषि मनीषियों ने लम्बी साधना एवं गहन अध्ययन के द्वारा शरीर को स्वस्थ एवं दीर्घायु रखने के लिये विभिन्न चिकित्सा पद्धतियों को विकसित किया। उनमें से ‘‘मुद्रा विज्ञान’’ एक ऐसी चिकित्सा पद्धति है जिसमें हाथों की अँगुलियों व अँगूठे के उपयोग के द्वारा ही चिकित्सा का लाभ प्राप्त किया जा सकता है। चिकित्सा पद्धति में हठ योग के आसन, प्राणायाम एवं बंध की कुछ जानकारी अधिकांश लोगों को है परन्तु मुद्राओं की जानकारी एवं उनके अद्भुत प्रभाव से अधिकांश जन अपरिचित हैं। आइए, कुछ मुद्राएँ और उनके प्रभाव से परिचित होते हैं –
विधि –
कनिष्ठा (सबसे छोटी अँगुली) को मोड़ कर, अंगुष्ठ मूल से लगाकर अँगूठे से दबाने पर यह मुद्रा बनती है।
अवधि – 30 मिनट से 45 मिनट तक।
लाभ –
– जब शरीर में जल तत्व की अधिकता हो जाती है तो इस मुद्रा को करने से लाभ मिलता है।
– शरीर में कहीं भी सूजन आती है इसका अर्थ है जल तत्व बढ़ा है।
– हाथ, पैरों में कहीं भी पानी भरने पर इस मुद्रा से लाभ होता है।
– पेट में पानी भरने (जलोदर/Dropsy) पर इस मुद्रा को करने से लाभ होता है।
– फेफड़ों में पानी भरने (Pleurisy) पर इस मुद्रा से लाभ होता है।
– नजले, जुकाम की स्थिति में जब नाक व आँख से पानी बह रहा हो, साईनस के रोग हों, फेफड़ों में कफ भर जाये तो इस मुद्रा से लाभ मिलता है।
– यदि पैरों में हाथी पाँव (Elephantiasis) हो जाए अर्थात् पैर सूज कर हाथी की तरह बड़े हो जायें तो इस मुद्रा को करने से लाभ होता है।
श्रीवर्धन