समुत्कर्ष समिति द्वारा भारत के गौरव जागरण का प्रतीक है बालक राम मंदिर विषयक 119 वीं समुत्कर्ष विचार गोष्ठी का आयोजन किया गया। समुत्कर्ष समिति के समाज जागरण के ऑनलाइन प्रकल्प समुत्कर्ष विचार गोष्ठी में अपने विचार रखते हुए वक्ताओं कहना था कि अयोध्या में श्री राम मंदिर का पुनर्निमाण और प्रभु श्री राम की बालक मूर्ति की प्राण-प्रतिष्ठा मात्र एक धार्मिक आयोजन नहीं है बल्कि यह भारत के सांस्कृतिक पुनर्जागरण और अभ्युदय का अमृत काल है। सांस्कृतिक विविधता और समृद्धि से भरे हमारे देश में सांस्कृतिक धरोहर हमारी पहचान है। धर्म, भाषा, रूपरेखा, शैली और विविध संस्कृतियों और जीवन शैलियों के बाद भी भारत एक है। उसकी आत्मा एक है। हम सब एक-दूसरे से अपनी सांस्कृतिक पहचान से जुड़े हुए हैं। अयोध्या में भव्य राम मंदिर हमें अपनी सांझी धार्मिक और सांस्कृतिक धरोहर को अक्षुण्ण रखने में मदद देगा।
विचारगोष्ठी में सर्वप्रथम मंगलाचरण एवं विषय का प्रवर्तन शिक्षाविद पीयूष दशोरा ने करते हुए कहा कि समस्त हिंदू मानते हैं कि प्रभु श्रीराम का जन्म अयोध्या में हुआ। यह जन्म-स्थान पावन है। यहाँ के कण-कण में सनातन संस्कृति संस्कार और आध्यात्म की अलौकिकता विराजमान है। संतों- संन्यासियों से लेकर कवियों ने सदैव अयोध्या का यशोगान किया है। श्री राम भारतीय संस्कृति के प्रेरणा पुरुष हैं। एक आदर्श राजा, आदर्श पुत्र, आदर्श भाई, आदर्श पति, आदर्श मित्र हैं। हम भारतीय जिन सात्विक मानवीय गुणों को सदियों से पूजते आए हैं, वे सभी राम के व्यक्तित्व में निहित हैं।
आर्य सत्यप्रिय ने इस अवसर पर बताया कि अयोध्या में नव- निर्मित बालक राम मन्दिर मात्र मंदिर नहीं है बल्कि करोड़ों लोगों की आस्था, विश्वास और भारत के पुनर्जागरण का प्रतीक है बल्कि यह भारत की सोई अस्मिता और आत्मविश्वास के जागरण का प्रतीक भी है। हमें पूर्ण विश्वास होना चाहिए कि राम मंदिर का निर्माण भारत के लिए एक नए युग का प्रादुर्भाव करेगा जो देश को सांस्कृतिक एकता, भ्रातृत्व, और समरसता की दिशा में आगे ले जाएगा। श्री राम जन्म भूमि का आंदोलन हिन्दू समाज का आत्म साक्षात्कार है। यह इस बात का प्रमाण है कि अपने लक्ष्य की प्राप्ति के लिए हिन्दू 550 बरस की लँबी लड़ाई लड़ भी सकते हैं और जीत भी सकते हैं।
साहित्यकार तरुण कुमार दाधीच ने कहा कि राम के आदर्शों के प्रति हमारी प्रतिबद्धता एक लोकहितकारी न्यायपूर्ण शासन व्यवस्था को जिसमें सभी के लिए शांति, न्याय और समानता हो, सुनिश्चित करती है। इसीलिए राम मंदिर का निर्माण न केवल भारतीय सांस्कृतिक एकता का एक अद्वितीय प्रतीक है, यह सुशासन और सामाजिक समरसता की ओर प्रवृत्त करने की दिशा में एक महनीय प्रयास भी है।
सेवानिवृत बैंक अधिकारी एच. पी. जिन्दल ने अपनी हाल ही की अयोध्या यात्रा के संस्मरण सुनाते हुए भाव विभोर हो बताया कि श्री राम मर्यादा पुरुषोत्तम हैं और हमारी आस्था के केंद्र में हैं, हमारे चेतन-अवचेतन मन में हैं और चिर काल से इस देश के मानस में बसे हुए हैं। यहाँ राम सब के हैं और सब राम के हैं।यह देश के लिए गौरव का क्षण है। अयोध्या का बालक राम मंदिर न केवल भारत की सभ्यता के गौरव, बल्कि लोकतंत्र एवं सौहार्द के प्रति उसकी प्रतिबद्धता का भी प्रतीक है। दुनिया में अन्यत्र कहीं ऐसा उदाहरण मिलना असंभव है।
आशु कवि सुनील चाष्टा ने कहा कि अब जब अयोध्या जी में भगवान राम का मंदिर बन गया है तब हम सभी का यह दायित्व बनता है कि वे पूरे हिंदू समाज को जोड़ने और उनके बीच की बची-खुची कुरीतियों को खत्म करने पर विशेष ध्यान दें। अयोध्या एक ऐसा केंद्र बने जो भारतीय समाज को आदर्श रूप में स्थापित करने में सहायक बने।
राम स्तुति के साथ पूर्ण हुई विचार गोष्ठी में आभार प्रकटीकरण समुत्कर्ष पत्रिका के उप संपादक गोविन्द शर्मा द्वारा किया गया। समुत्कर्ष विचार गोष्ठी का संचालन शिवशंकर खण्डेलवाल ने किया।
इस ऑनलाइन विचार गोष्ठी में वन्दना जैन, किशन मेनारिया, गोपाल लाल माली, संजीव सिंह भाटी, रामेश्वर प्रसाद शर्मा, वीणा जोशी, कल्पना माली, नर्बदा देवी, तरुण शर्मा तथा लोकेश जोशी भी सम्मिलित हुए।
शिवशंकर खण्डेलवाल