समुत्कर्ष समिति द्वारा शहीद दिवस (23 मार्च) एवं होली की पूर्व संध्या पर संस्कृति का ‘‘सतरंगी पर्वः होली’’ विषयक 120 वीं समुत्कर्ष विचार गोष्ठी का आयोजन किया गया। समुत्कर्ष समिति के समाज जागरण के ऑनलाइन प्रकल्प समुत्कर्ष विचार गोष्ठी में अपने विचार रखते हुए वक्ताओं कहना था कि होलिका दहन हमारे भीतर के अहंकार और अन्य बुराइयों को अग्नि में विसर्जित कर देने का प्रतीक है। होली मात्र रंगों का त्यौहार नहीं है बल्कि बहुत से विविध और अनूठे रंगों का पारस्परिक संगम भी है। फाल्गुन के बासंती रंगों से सजा पर्व है होली, जिसकी गरिमा इसमें बरसते रंगों, खुशनुमा माहौल और परस्पर समरसता से दृष्टिगोचर होती है। प्रसन्नता को स्वयं में समाहित कर समाज में प्रसारित करना ही इस पर्व का ध्येय है।
विचारगोष्ठी में सर्वप्रथम मंगलाचरण एवं विषय का प्रवर्तन शिक्षाविद पीयूष दशोरा ने शहीद दिवस पर भगत सिंह, सुखदेव, राजगुरु के अनुपम बलिदान को नमन करते हुए करते हुए विषय पर बोलते हुए कहा कि होली दिव्य, अलौकिक और आत्मजागृति का पर्व माना जाता है। अहंकार जाने के बाद ही हमारे भीतर प्रेम का उदय होता है और समाज में सतरंगी समरसता आती है व एकता मजबूत होती है। होली के विविधता भरे रंगों का सार यही है कि सभी पुराने गिले शिकवे भुलाकर मित्रता की स्थापना हो और सभी एक दूसरे के रंग में रंग जाएँ।
श्याम सुन्दर चौबीसा ने अपनी बात रखते हुए कहा कि होली मात्र रंगों का त्यौहार नहीं है बल्कि बहुत से विविध और अनूठे रंगों का पारस्परिक संगम भी है। प्रसन्नता को स्वयं में समाहित कर समाज में प्रसारित करना ही इस पर्व का ध्येय है। भारत में होली के अपने धार्मिक, ऐतिहासिक और पौराणिक परिप्रेक्ष्य हैं। होली दिव्य, अलौकिक और आत्मजागृति का पर्व माना जाता है, जिसमें विविधता भरे रंगों का सार यही है कि सभी पुराने गिले शिकवे भुलाकर मित्रता की स्थापना हो और सभी एक दूसरे के रंग में रंग जाएँ।
साहित्यकार तरुण कुमार दाधीच ने इस अवसर पर बताया कि होलिका दहन असत्य पर सत्य और बुराई पर अच्छाई की विजय है। आध्यात्मिक परिदृश्य में देखें तो नकारात्मकता के विनाश होने का पर्व होली है। बुरा न मानो होली है, कहकर सामाजिक मर्यादा का उल्लंघन करने के स्थान पर होली के अति पावन पर्व पर संकल्पित मन से यह निश्चय करें कि होलिका दहन में अपनी समस्त बुराइयों का दहन करेंगे और पवित्र विचारों के साथ होली के रंगों से अपना जीवन मंगलमय बनायेंगे।
विद्यासागर ने इस अवसर पर बोलते हुए बताया कि होलिका दहन हमारे भीतर के अहंकार और अन्य बुराइयों को अग्नि में विसर्जित कर देने का प्रतीक है। अहंकार जाने के बाद ही हमारे भीतर प्रेम का उदय होता है और समाज में सतरंगी समरसता आती है व एकता मजबूत होती है। होली मित्रता- और एकता का पर्व है। होली को अंग्रेजी अर्थानुसार ”पवित्रता“ यानि ”भ्व्स्ल्“ के संदर्भ में भी देखा जा सकता है। जिस त्यौहार का अर्थ ही पवित्रता से हो, उसमें सामाजिक बुराइयों, अश्लीलता, अनैतिकता और फूहड़ता जैसे शब्दों का क्या स्थान। होली के अंतर्निहित संदेश को हमें आत्मसात करना ही होगा, तभी हमारी संस्कृतियाँ संरक्षित रह पाएँगी।
विचार गोष्ठी में डॉ. अनिल कुमार दशोरा तथा निर्मला मेनारिया ने भी अपने विचार व्यक्त किए। समुत्कर्ष पत्रिका के उप संपादक गोविन्द शर्मा द्वारा आभार प्रकटीकरण किया गया। समुत्कर्ष विचार गोष्ठी का संचालन शिवशंकर खण्डेलवाल ने किया।
इस ऑनलाइन विचार गोष्ठी में किशन गुर्जर, गिरीश चौबीसा, वन्दना जैन, डॉ. मनीष शर्मा, गरिमा खण्डेलवाल, गोपाल लाल माली, सीमा गुप्ता, रामेश्वर प्रसाद शर्मा, वर्तन्तु पाण्डे, कल्पना माली, कविता शर्मा, संजीव सिंह भाटी, चिराग सैनानी तथा लोकेश जोशी भी सम्मिलित हुए।
शिवशंकर खण्डेलवाल