भारत के प्राचीन ऋषि मनीषियों ने लम्बी साधना एवं गहन अध्ययन के द्वारा शरीर को स्वस्थ एवं दीर्घायु रखने के लिये विभिन्न चिकित्सा पद्धतियों को विकसित किया। उनमें से ‘‘मुद्रा विज्ञान’’ एक ऐसी चिकित्सा पद्धति है जिसमें हाथों की अँगुलियों व अँगूठे के उपयोग के द्वारा ही चिकित्सा का लाभ प्राप्त किया जा सकता है। चिकित्सा पद्धति में हठ योग के आसन, प्राणायाम एवं बंध की कुछ जानकारी अधिकांश लोगों को है परन्तु मुद्राओं की जानकारी एवं उनके अद्भुत प्रभाव से अधिकांश जन अपरिचित हैं। आइए, कुछ मुद्राएँ और उनके प्रभाव से परिचित होते हैं –
विधि –
मध्यमा अँगुली के अग्र भाग को अँगूठे के अग्रभाग से मिलायें शेष तीनों अँगुलियों को सीधी रखें।
अवधि – एक घण्टा नित्य यह मुद्रा करें।
लाभ –
– आकाश तत्व के विस्तार से रिक्तता समाप्त होती है। नकारात्मक विचार, खोखलापन व जड़ता दूर होती है।
– कानों के सुनने की शक्ति बढ़ती है, कान से सम्बन्धित अन्य रोगों में भी लाभ होता है। जैसे कानों का बहना, कानों में झनझनाहट, कानों का बहरापन आदि।
– आकाश तत्व के विस्तार से हृदय सम्बन्धी समस्त रोग, उच्च रक्तचाप भी ठीक होता है क्योंकि आकाश तत्व का सम्बन्ध हृदय से है।
– हड्डियाँ मजबूत होती हैं, कैल्शियम की कमी दूर होती है। अस्थि क्षीणता ;व्ेजमवचवतवेपेद्ध दूर होती है।
– बाएँ हाथ से आकाश मुद्रा एवं दाहिने हाथ से पृथ्वी मुद्रा करने से जोड़ों का दर्द दूर होता है।
– जबड़े की जकड़न ;स्वबा श्रूंद्ध भी आकाश मुद्रा से ठीक होती है।
– ध्यान अवस्था में यह मुद्रा आज्ञाचक्र एवं सहस्त्रार चक्र पर कम्पन पैदा करती है जिससे दिव्य शक्तियों की अनुभूति होती है तथा आन्तरिक शक्तियों का विकास होता है।
– मानसिक व शारीरिक रूप से विकलांग बच्चों के लिये यह मुद्रा रामबाण औषधि है।
श्रीवर्धन
लेखक राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के वरिष्ठ प्रचारक हैं।
साथ ही योग, प्राणायाम, एक्यूप्रेशर एवं मुद्रा विज्ञान
के सिद्धहस्त एवं अभिनव शोधकर्ता भी हैं।