लेखक राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के वरिष्ठ प्रचारक हैं। साथ ही योग, प्राणायाम, एक्यूप्रेशर एवं मुद्रा विज्ञान के सिद्धहस्त एवं अभिनव शोधकर्ता भी हैं।
सूचि मुद्रा
भारत के प्राचीन ऋषि मनीषियो ने लम्बी साधना एवं गहन अध्ययन के द्वारा शरीर को स्वस्थ एवं दीर्घायु रखने के लिये विभिन्न चिकित्सा पद्धतियों को विकसित किया। उनमें से ‘‘मुद्रा विज्ञान’’ एक ऐसी चिकित्सा पद्धति है जिसमें हाथों की अँगुलियों व अँगूठे के उपयोग के द्वारा ही चिकित्सा का लाभ प्राप्त किया जा सकता है।चिकित्सा पद्धति में हठ योग के आसन, प्राणायाम एवं बंध की कुछ जानकारी अधिकांश लोगों को है परन्तु मुद्राओं की जानकारी एवं उनके अद्भुत प्रभाव से अधिकांश जन अपरिचित हैं।आइए, कुछ मुद्राएँ और उनके प्रभाव से परिचित होते हैं –
विधि:
सबसे पहले दोनों हाथों की मुट्ठियाँ अँगूठा अंदर रखते हुए बंद करके अपने सीने पर रखें, अब बायाँ हाथ सीने पर ही रखकर श्वास भरें, दाहिने हाथ को सामने की ओर सीधा करें और तर्जनी अँगुली को ऊपर की ओर सीधा रखें। इसके बाद दाहिने हाथ की मुट्ठी सीने पर रखें, बायें हाथ को सीधा करते हुए तर्जनी अँगुली को ऊपर की ओर रखें। इस क्रिया को 6 से 12 बार करें।
अवधि:
यदि पुराने कब्ज की शिकायत है तो उपरोक्त क्रिया को दिन में चार बार करें। यदि कम है तो दिन में दो बार करना ही पर्याप्त है।
लाभ –
यह मुद्रा नाम के अनुसार ही गुण रखती है। शुचि का अर्थ होता है सफाई। यह बड़ी आंत की सफाई में बहुत उपयोगी है। इसके साथ मुष्टि मुद्रा भी करना अच्छा रहेगा।
वधि –
इस मुद्रा में अपने हाथों की अँगुलियों को मोड़कर मुट्ठी बन्द करके अँगूठे से अनामिका अंगुली को दबाना होता है।
अवधि –
यह मुद्रा दिन में 2 या 3 बार, 15 मिनट के लिए करनी है।
लाभ –
इस मुद्रा में अनामिका (पृथ्वी तत्व) को अँगूठे से दबाने के कारण पृथ्वी तत्व कम होता है अर्थात बड़ी आंत में भारीपन कम होने से कब्ज दूर होता है। इस मुद्रा से यकृत की सक्रियता बढ़ती है अतः पाचन क्रिया अच्छी होती है। शुचि मुद्रा के बाद यह मुद्रा करने से अधिक लाभ मिलता है।
श्रीवर्धन