भारत के प्राचीन ऋषि मनीषियों ने लम्बी साधना एवं गहन अध्ययन के द्वारा शरीर को स्वस्थ एवं दीर्घायु रखने के लिये विभिन्न चिकित्सा पद्धतियों को विकसित किया। उनमें से ‘‘मुद्रा विज्ञान’’ एक ऐसी चिकित्सा पद्धति है जिसमें हाथों की अंगुलियों व अँगूठे के उपयोग के द्वारा ही चिकित्सा का लाभ प्राप्त किया जा सकता है। चिकित्सा पद्धति में हठ योग के आसन, प्राणायाम एवं बंध की कुछ जानकारी अधिकांश लोगों को है परन्तु मुद्राओं की जानकारी एवं उनके अद्भुत प्रभाव से अधिकांश जन अपरिचित हैं।
आइए, कुछ मुद्राएँ और उनके प्रभाव से परिचित होते हैं –
वज्र मुद्रा
विधि:-
तर्जनी अंगुली को सीधा रखें, शेष तीनों अंगुलियों को परस्पर मिलाकर मोड़ लें जिससे उनके नाखूनों के किनारे मिल जाएँ। अँगूठे के अग्र भाग को मध्यमा से इस प्रकार लगाएँ कि मध्यमा के नाखून के कोने छू जाएँ।
अवधि:- 5-5 मिनट, दिन में तीन बार।
लाभ:-
इस मुद्रा से हमें मजबूती मिलती है इसीलिए इसे वज्र मुद्रा कहा है। मन दृढ़ होता है।
निम्न रक्तचाप में शीघ्र लाभ होता है।
शारीरिक व मानसिक थकान शीघ्र दूर होती है।
मजदूर लोग भारी थकावट से बचने के लिए चाय, काॅफी, शराब, धूम्रपान आदि की आदत डाल लेते है, यह मुद्रा तुरन्त ताकत देती है अर्थात नशा छुड़वाने में उपयोगी है।
नाग मुद्रा
विधि:-
दोनों हाथों को सीने के सामने इस प्रकार रखें कि नीचे वाले (दाहिने) हाथ की अँगुलियां बांई ओर हों और ऊपर वाले (बाएं) हाथ की अँगुलियां सामने की ओर दिखें। नीचे वाले हाथ की अँगुलियों व अँगूठे के बीच ऊपर वाले हाथ की हथेली रखें और ऊपर वाले हाथ के अँगूठे से नीचे वाले हाथ के अँगूठे को दबा दें और लम्बे श्वास लें।
लाभ:-
इस मुद्रा को करने से आध्यात्मिक शक्ति बढ़ती है।
मन की विश्लेषण करने की शक्ति भी बढ़ती है।
श्रीवर्द्र्धन
लेखक राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के वरिष्ठ प्रचारक हैं।
साथ ही योग, प्राणायाम, एक्यूप्रेशर एवं मुद्रा विज्ञान
के सिद्धहस्त एवं अभिनव शोधकर्ता भी हैं।