भारत के प्राचीन ऋषि मनीषियों ने लम्बी साधना एवं गहन अध्ययन के द्वारा शरीर को स्वस्थ एवं दीर्घायु रखने के लिये विभिन्न चिकित्सा पद्धतियों को विकसित किया। उनमें से ‘‘मुद्रा विज्ञान’’ एक ऐसी चिकित्सा पद्धति है जिसमें हाथों की अंगुलियों व अँगूठे के उपयोग के द्वारा ही चिकित्सा का लाभ प्राप्त किया जा सकता है। चिकित्सा पद्धति में हठ योग के आसन, प्राणायाम एवं बंध की कुछ जानकारी अधिकांश लोगों को है परन्तु मुद्राओं की जानकारी एवं उनके अद्भुत प्रभाव से अधिकांश जन अपरिचित हैं। आइए, कुछ मुद्राएँ और उनके प्रभाव से परिचित होते है –
श्वसनी मुद्रा
विधि : सबसे छोटी अंगुली के शीर्ष भाग को अँगूठे के मूल से लगायें, अनामिका अंगुली के शीर्ष भाग को अँगूठे के ऊपर वाले जोड़ पर लगायें और मध्यमा अंगुली को अँगूठे से लगायें। तर्जनी अंगुली सीधी रखें।
अवधि : 5 मिनट, दिन में 4-5 बार करनी है।
लाभ :
श्वास नली में सूजन में लाभकारी है।
श्वास रोग ठीक होते हैं।
श्वास नली में जमे कफ को निकालने में लाभ मिलता है।
दमा/अस्थमा मुद्रा
विधि : दोनों हाथों की मध्यमा अंगुलियों को मोड़कर उनके नाखूनों को परस्पर मिलाना शेष तीनों अंगुलियों व अँगूठे सीधे ही रखें।
अवधि : 5 मिनट, दिन में 4-5 बार करें।
लाभ :
इस मुद्रा से अस्थमा ठीक होता है।
अस्थमा का दौरा पड़ने पर पहले श्वसनी मुद्रा 5 मिनट व बाद में अस्थमा मुद्रा भी 5 मिनट करने से अधिक लाभ होता है।
अस्थमा या दमा के रोगी यदि 15 मिनट प्रातः एवं 15 मिनट सायंकाल खुली हवा में इसका उपयोग करेंगे तो पूर्ण लाभ मिलेगा।
अस्थमा के लिये इस मुद्रा के अतिरिक्त लिंग मुद्रा, प्राण मुद्रा एवं सूर्य मुद्रा भी लाभकारी है।
श्रीवर्द्धन
लेखक राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के वरिष्ठ प्रचारक हैं।
साथ ही योग, प्राणायाम, एक्यूप्रेशर एवं मुद्रा विज्ञान
के सिद्धहस्त एवं अभिनव शोधकर्ता भी हैं।