एक शहर के अन्तर्राष्ट्रीय प्रसिद्धि के विद्यालय के बगीचे में ‘वह’ तेज धूप और गर्मी की परवाह किये बिना,बड़ी लगन से पेड़ पौधों की काट छाँट में लगा था कि, तभी विद्यालय के चपरासी की आवाज सुनाई दी, ‘गंगादास! तुझे प्रधानाचार्या जी तुरंत बुला रही हैं।’
गंगादास को आखिरी पाँच शब्दों में काफी तेजी महसूस हुई और उसे लगा कि कोई महत्वपूर्ण बात हुई है, जिसकी वजह से प्रधानाचार्या जी ने उसे तुरंत ही बुलाया है।
वह शीघ्रता से उठा, अपने हाथों को धोकर साफ किया और चल दिया द्रुत गति से प्रधानाचार्य के कार्यालय की ओर।
उसे प्रधानाचार्य महोदया के कार्यालय की दूरी मीलों की लग रही थी जो खत्म होने का नाम नहीं ले रही थी। उसकी हृदयगति बढ़ गई थी। वह सोच रहा था कि उससे क्या गलत हो गया जो आज उसको प्रधानाचार्य महोदया ने तुरंत ही अपने कार्यालय में आने को कहा।
वह एक ईमानदार कर्मचारी था और अपने कार्य को पूरी निष्ठा से पूर्ण करता था। पता नहीं क्या गलती हो गयी वह इसी चिंता के साथ प्रधानाचार्य के कार्यालय पहुँचा……‘‘मैडम क्या मैं अंदर आ जाऊँ, आपने मुझे बुलाया था।’’
‘‘हाँ आओ और यह देखो’’ प्रधानाचार्य महोदया की आवाज में कड़की थी और उनकी उंगली एक पेपर पर इशारा कर रही थी।
‘‘पढ़ो इसे’’ प्रधानाचार्या ने आदेश दिया।
‘‘मैं, मैं, मैडम! मैं तो इंग्लिश पढ़ना नही जानता मैडम!’’ गंगादास ने घबरा कर उत्तर दिया।
‘‘मैं आपसे क्षमा चाहता हूँ मैडम, यदि कोई गलती हो गयी हो तो। मैं आपका और विद्यालय का पहले से ही बहुत ऋणी हूँ क्योंकि आपने मेरी बिटिया को इस विद्यालय में निःशुल्क पढ़ने की इजाजत दी। मुझे कृपया एक और मौका दें, मेरी कोई गलती हुई है तो सुधारने का। मैं आप का सदैव ऋणी रहूँगा। ‘‘गंगादास बिना रुके घबरा कर बोलता चला जा रहा था।
उसे प्रधानाचार्या ने टोका, ‘‘तुम बिना वजह अनुमान लगा रहे हो। थोड़ा इंतजार करो। मैं तुम्हारी बिटिया की कक्षा- अध्यापिका को बुलाती हूँ।’’
वे पल जब तक उसकी बिटिया की कक्षा-अध्यापिका प्रधानाचार्या के कार्यालय में पहुँची बहुत ही लंबे हो गए थे गंगादास के लिए। सोच रहा था कि क्या उसकी बिटिया से कोई गलती हो गयी, कहीं मैडम उसे विद्यालय से निकाल तो नहीं रही। उसकी चिंता और बढ़ गयी थी।
कक्षा-अध्यापिका के पहुचते ही प्रधानाचार्य महोदया ने कहा ‘‘हमने तुम्हारी बिटिया की प्रतिभा को देखकर और परख कर ही उसे अपने विद्यालय में पढ़ने की अनुमति दी थी। अब ये मैडम इस पेपर जो लिखा है, उसे पढ़कर और हिंदी में तुम्हे सुनाएगी गौर से सुनो।’’
कक्षा-अध्यापिका ने पेपर को पढ़ना शुरू करने से पहले बताया, ‘‘आज मातृ दिवस था और आज मैंने कक्षा में सभी बच्चों को अपनी अपनी माँ के बारे में एक लेख लिखने को कहा, तुम्हारी बिटिया ने जो लिखा उसे सुनो।’’
उसके बाद कक्षा- अध्यापिका ने पेपर पढ़ना शुरू किया।
‘‘मैं एक गाँव में रहती थी, एक ऐसा गाँव जहाँ शिक्षा और चिकित्सा की सुविधाओं का आज भी अभाव है। चिकित्सक के अभाव में कितनी ही माँयें दम तोड़ देती हैं बच्चों के जन्म के समय। मेरी माँ भी उनमें से एक थी। उसने मुझे छुआ भी नहीं कि चल बसी। मेरे पिता ही मेरे परिवार के वे पहले व्यक्ति थे, जिन्होंने मुझे गोद में लिया। पर सच कहूँ तो मेरे परिवार के वो अकेले व्यक्ति थे जिन्होंने मुझे गोद में उठाया था। बाकी की नजर में मैं अपनी माँ को खा गई थी। मेरे पिताजी ने मुझे माँ का प्यार दिया। मेरे दादा दादी चाहते थे कि मेरे पिताजी दुबारा विवाह करके एक पोते को इस दुनिया में लाएँ ताकि उनका वंश आगे चल सके। परंतु मेरे पिताजी ने उनकी एक न सुनी और दुबारा विवाह करने से मना कर दिया। इस वजह से मेरे दादा दादीजी ने उनको अपने से अलग कर दिया और पिताजी सब कुछ, जमीन, खेती बाड़ी, घर सुविधा आदि छोड़ कर मुझे साथ लेकर शहर चले आये और इसी विद्यालय में माली का कार्य करने लगे। मुझे बहुत ही लाड़ प्यार से बड़ा करने लगे। मेरी जरूरतों पर माँ की तरह हर पल उनका ध्यान रहता है।’’
‘‘आज मुझे समझ आता है कि वे क्यों हर उस चीज को जो मुझे पसंद थी, ये कह कर खाने से मना कर देते थे कि वह उन्हें पसंद नही है क्योंकि वह आखिरी टुकड़ा होती थी। आज मुझे बड़ा होने पर उनके इस त्याग के महत्व पता चला।’’
‘‘मेरे पिता ने अपनी क्षमताओं में मेरी हर प्रकार की सुख सुविधाओं का ध्यान रखा और मेरे विद्यालय ने उनको यह सबसे बड़ा पुरस्कार दिया जो मुझे यहाँ निःशुल्क पढ़ने की अनुमति मिली। उस दिन मेरे पिता की खुशी का कोई ठिकाना न था।’’
‘‘यदि माँ, प्यार और देखभाल करने का नाम है तो मेरी माँ मेरे पिताजी है।’’
‘‘यदि दयाभाव, माँ को परिभाषित करता है तो मेरे पिताजी उस परिभाषा के हिसाब से पूरी तरह मेरी माँ है।’’
‘‘यदि त्याग, माँ को परिभाषित करता है तो मेरे पिताजी इस वर्ग में भी सर्वोच्च स्थान पर है।’’
‘‘यदि संक्षेप में कहूँ कि प्यार, देखभाल, दयाभाव और त्याग माँ की पहचान है तो मेरे पिताजी उस पहचान पर खरे उतरते हैं। और मेरे पिताजी विश्व की सबसे अच्छी माँ है।’’
आज मातृ दिवस पर मैं अपने पिताजी को शुभकामना दूँगी और कहूँगी कि आप संसार के सबसे अच्छे पालक है। बहुत गर्व से कहूँगी कि ये जो हमारे विद्यालय के परिश्रमी माली है मेरे पिता है।’’
‘‘मैं जानती हूँ कि मैं आज की लेखन परीक्षा में असफल हो जाऊँगी क्योकि मुझे माँ पर लेख लिखना था पर मैंने पिता पर लिखा,पर यह बहुत ही छोटी सी कीमत होगी जो उस सब की जो मेरे पिता ने मेरे लिए किया। धन्यवाद।’’
आखरी शब्द पढ़ते पढ़ते अध्यापिका का गला भर आया था और प्रधानाचार्या के कार्यालय में शांति छा गयी थी।
इस शांति में केवल गंगादास के सिसकने की आवाज सुनाई दे रही थी। बगीचे में धूप की गर्मी उसकी कमीज को गीला न कर सकी पर उस पेपर पर बिटिया के लिखे शब्दों ने उस कमीज को पिता के आसुंओं से गीला कर दिया था। वह केवल हाथ जोड़ कर वहाँ खड़ा था।
उसने उस पेपर को अध्यापिका से लिया और अपने हृदय से लगाया और फफक पड़ा।
प्रधानाचार्या ने खड़े होकर उसे एक कुर्सी पर बैठाया और एक गिलास पानी दिया तथा कहा, ‘गंगादास, तुम्हारी बिटिया को इस लेख के लिए पूरे 10/10 नम्बर दिए गए हैं। यह लेख मेरे अब तक के पूरे विद्यालय जीवन का सबसे अच्छा मातृ दिवस का लेख है। हम कल मातृ दिवस अपने विद्यालय में बड़े जोर शोर से मना रहे हैं। इस दिवस पर विद्यालय एक बहुत बड़ा कार्यक्रम आयोजित करने जा रहा है। विद्यालय की प्रबंधक कमेटी ने आपको इस कार्यक्रम का मुख्य अतिथि बनाने का निर्णय लिया है। यह सम्मान होगा उस प्यार, देखभाल, दयाभाव और त्याग का जो एक आदमी अपने बच्चे के पालन के लिए कर सकता है।
यह सिद्ध करता है कि आपको एक औरत होना आवश्यक नहीं है एक पालक बनने के लिए। साथ ही यह अनुशंसा करता है उस विश्वास का जो विश्वास आपकी बेटी ने आप पर दिखाया। हमे गर्व है कि संसार का सबसे अच्छा पिता हमारे विद्यालय में पढ़ने वाली बच्ची का है जैसा कि आपकी बिटिया ने अपने लेख में लिखा। गंगादास हमे गर्व है कि आप एक माली है और सच्चे अर्थों में माली की तरह न केवल विद्यालय के बगीचे के फूलों की देखभाल की बल्कि अपने इस घर के फूल को भी सदा खुशबूदार बनाकर रखा, जिसकी खुशबू से हमारा विद्यालय महक उठा। तो क्या आप हमारे विद्यालय के इस मातृ दिवस कार्यक्रम के मुख्य अतिथि बनेंगे?’’
रो पड़ा गंगादास और दौड़ पड़ा बिटिया की कक्षा की ओर, और बाहर पेड़ की ओट से आँसू भरी आँखों से निहारता रहा अपनी प्यारी बिटिया को।
मनन शर्मा