उच्चतम न्यायालय ने विगत 9 नवम्बर को सुनाए ऐतिहासिक फैसले में डेढ़ सदी से अधिक पुराने मामले का पटाक्षेप करते हुए अयोध्या में विवादित स्थल पर राम मंदिर निर्माण का मार्ग प्रशस्त कर दिया। न्यायालय ने कहा कि विवादित 2.77 एकड़ जमीन अब केंद्र सरकार के रिसीवर के पास रहेगी, जो इसे सरकार द्वारा बनाए जाने वाले ट्रस्ट को सौंपेंगे। साथ में व्यवस्था दी कि पवित्र नगरी में मस्जिद के लिए पांच एकड़ वैकल्पिक जमीन दी जाए।
मंदिर निर्माण के लिए तीन महीन के भीतर बनेगा ट्रस्ट
पीठ ने केंद्र सरकार से कहा कि मंदिर निर्माण के लिए तीन महीने के भीतर एक ट्रस्ट बनाया जाना चाहिए। प्रधान न्यायाधीश रंजन गोगोई की अध्यक्षता वाली पांच सदस्यीय संविधान पीठ ने सर्वसम्मत फैसला दिया और कहा कि हिन्दुओं का यह विश्वास निर्विवाद है कि संबंधित स्थल पर ही भगवान राम का जन्म हुआ था तथा वह प्रतीकात्मक रूप से भूमि के मालिक हैं।
‘कारसेवकों द्वारा 16वीं सदी के तीन गुंबद वाले ढांचे को ढहाना गलत’
राजनीतिक दृष्टि से बेहद संवेदनशील इस मामले ने भारतीय समाज के धर्मनिरपेक्ष ताने-बाने को तार-तार कर दिया था। फैसले में कहा गया कि फिर भी यह स्पष्ट है कि राम मंदिर बनाने गए कारसेवकों द्वारा 16वीं सदी के तीन गुंबद वाले ढांचे को ढहाना गलत था और उसका ‘‘निवारण’’ होना चाहिए।
सदियों पुराना था अयोध्या विवाद
अयोध्या में संबंधित स्थल पर विवाद सदियों पुराना है, जहां मुगल बादशाह बाबर ने या उसकी तरफ से सेनापति मीर बांकी ने तीन गुंबद वाली बाबरी मस्जिद बनवाई गई थी। हिन्दुओं का मानना है कि मुस्लिम हमलावरों ने वहां स्थित राम मंदिर को नष्ट कर मस्जिद बना दी थी। यह मामला 1885 में तब कानूनी विवाद में तब्दील हो गया था जब अयोध्या के एक महंत ने अदालत पहुंचकर मस्जिद के बाहर छत डालने की अनुमति मांगी। यह याचिका खारिज कर दी गई थी।
दिसंबर 1949 में मस्जिद में रखी गई मूर्ति
दिसंबर 1949 में अज्ञात लोगों ने मस्जिद में भगवान राम की मूर्ति रख दी। कारसेवकों की बड़ी भीड़ ने छह दिसंबर 1992 को ढांचे को ध्वस्त कर दिया था। ढांचे को ध्वस्त किए जाने के बाद राजनैतिक रोटियां सेंकने वाली ताकतों ने देश में असहिष्णुता का वातावरण बना दिया था।
मुस्लिमों को मस्जिद के लिए दी जाए 5 एकड़ भूमि –
ढ़ांचा ढ़हाए जाने और दंगों से गुस्साए मुस्लिम चरमपंथियों ने मुंबई में 12 मार्च 1993 को सिलसिलेवार बम विस्फोट किए जिनमें सैकड़ों लोगों की जान चली गई। न्यायालय ने कहा कि जो गलत हुआ, उसका निवारण किया जाए और पवित्र नगरी अयोध्या में मुसलमानों को मस्जिद के लिए पांच एकड़ का भूखंड आवंटित किया जाए।
‘विवादित 2.77 एकड़ जमीन अब केंद्र सरकार के रिसीवर के पास रहेगी’
न्यायालय ने कहा कि विवादित 2.77 एकड़ जमीन अब केंद्र सरकार के रिसीवर के पास रहेगी, जो इसे सरकार द्वारा बनाए जाने वाले ट्रस्ट को सौंपेंगे। पीठ ने केंद्र सरकार से कहा कि मंदिर निर्माण के लिए तीन महीने के भीतर एक ट्रस्ट बनाया जाना चाहिए। फैसले में कहा गया कि यह धर्म और विश्वास से जुड़ा नहीं है, बल्कि इसकी जगह मामले को तीन पक्षों-रामलला विराजमान, निर्मोही अखाड़े और सुन्नी मुस्लिम वक्फ बोर्ड के बीच भूमि के स्वामित्व से जुड़े वाद के रूप में देखा गया।
40 दिन तक चली मैराथन सुनवाई
उच्चतम न्यायालय के इतिहास में दूसरी सबसे लंबी सुनवाई
यह सुनवाई उच्चतम न्यायालय के इतिहास में दूसरी सबसे लंबी सुनवाई है। संविधान पीठ में 17 नवंबर को सेवानिवृत्त हुए न्यायमूर्ति रंजन गोगोई के साथ अन्य सदस्यों में न्यायमूर्ति एस ए बोबडे, न्यायमूर्ति धनन्जय वाई चन्द्रचूड़, न्यायमूर्ति अशोक भूषण और न्यायमूर्ति एस अब्दुल नजीर शामिल थे।
फैसला विश्वास और आस्था के आधार पर नहीं
संविधान पीठ के पांचों जजों के सर्व-सम्मति से आए 929 पेज के फैसले में राम जन्मभूमि-बाबरी मस्जिद विवाद मामले में दावों का विश्लेषण किया गया। जिसका शीर्षक विश्वास और आस्था के आधार पर स्थापित नहीं किया जा सकता है। लेकिन बेंच के एक जज के अनुसार विवादित स्थल पर राम मंदिर होने के दस्तावेज और मौखिक साक्ष्य हैं।
जज ने फैसले में 116 पन्नों को जोड़ा है जिसमें हिंदू समुदाय के विश्वास और आस्था की बात की गई है। इसके अनुसार बाबरी मस्जिद ही वह जगह है जहां भगवान राम का जन्म हुआ था और ये इसके दस्तावेज और मौखिक साक्ष्य हैं। न्यायाधीश ने कई मौखिक बयानों, राजपत्रों में राम के जन्म स्थान और यहां तक कि ‘‘धर्मग्रंथों और पवित्र धार्मिक पुस्तकों सहित वाल्मीकि रामायण और स्कंद पुराण का उल्लेख किया है, जिस पर विश्वास को आधारहीन नहीं ठहराया जा सकता है’’।
70 साल पुरानी अयोध्या भूमि विवाद पर सुप्रीम कोर्ट ने ऐतिहासिक फैसला सुनाया है जिसमें विवादित जमीन राम मंदिर के लिए दी जाएगी जबकि मुस्लिम समुदाय को अन्य स्थान पर मस्जिद निर्माण के लिए 5 एकड़ जमीन दी जाएगी। संविधान पीठ ने अपने 1045 पन्नों के फैसले में कहा कि नयी मस्जिद का निर्माण प्रमुख स्थल पर किया जाना चाहिए।
न्यायालय ने कहा कि हिन्दू यह साबित करने में सफल रहे हैं कि विवादित ढांचे के बाहरी बरामदे पर उनका कब्जा था और उप्र सुन्नी वक्फ बोर्ड अयोध्या विवाद में अपना मामला साबित करने में विफल रहा है। पीठ ने कहा कि पुरातत्व सर्वेक्षण के साक्ष्यों को महज राय बताना इस संस्था के साथ अन्याय होगा। पीठ ने कहा कि विवादित ढांचे में ही भगवान राम का जन्म होने के बारे में हिन्दुओं की आस्था अविवादित है।
यही नहीं, सीता रसोई, राम चबूतरा और भण्डार गृह की उपस्थिति इस स्थान के धार्मिक तथ्य की गवाह हैं। संविधान पीठ ने 2.77 एकड़ विवादित भूमि तीन पक्षकारों- सुन्नी वक्फ बोर्ड, निर्मोही अखाड़ा और राम लला विराजमान- के बीच बराबर-बराबर बांटने के इलाहाबाद उच्च न्यायालय के सितंबर, 2010 के फैसले के खिलाफ दायर 14 अपीलों पर 16 अक्टूबर 2019 को सुनवाई पूरी की थी।
पीठ ने कहा, ‘‘राजनीतिक और आध्यात्मिक सामग्री के जरिए देश का इतिहास और संस्कृति सच की खोज का केंद्र रहे हैं। इस अदालत से सच की खोज के मुद्दे पर निर्णय करने का अनुरोध किया गया जहां एक की स्वतंत्रता के दूसरे की स्वतंत्रता को प्रभावित करने और विधि के शासन के उल्लंघन से जुड़े दो सवाल थे।’’
निर्मोही अखाड़े का दावा हुआ खारिज
इस वाद के एक अन्य पक्षकार निर्मोही अखाड़ा ने कहा कि उसे उसका दावा खारिज होने का कोई अफसोस नहीं है। फैसले के मद्देनजर देश में संवेदनशील स्थानों पर कड़ी सुरक्षा व्यवस्था की गई थी। इस संवेदनशील घड़ी में केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह ने सभी समुदायों से फैसले को स्वीकार करने और शांति बनाये रखने की अपील करते हुए कहा था कि वे ‘एक भारत, श्रेष्ठ भारत’ के प्रति प्रतिबद्ध रहें जबकि रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने कहा था कि यह निर्णय सामाजिक ताने-बाने को सुदृढ़ करेगा।
फैसला सुनाने में लगे 45 मिनट
दारूल उलूम, देवबंद के मौजूदा मोहतमिम मुफ्ती अब्दुल कासिम नोमानी ने कहा, ‘‘मैं फैसला देखकर दंग रह गया। मेरा मानना है कि मस्जिद के पक्ष में पर्याप्त सबूत थे, लेकिन इन पर विचार नहीं किया गया।’’ दिल्ली पुलिस के अनुसार निर्णय के मद्देनजर समूची राष्ट्रीय राजधानी में निषेधाज्ञा जारी की गई है। वहीं, उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ में एक आपात अभियान केंद्र स्थापित किया गया है जिससे कि मीडिया, सोशल मीडिया और अन्य स्रोतों पर नजर रखी जा सके। न्यायमूर्ति रंजन गोगोई ने वकीलों और पत्रकारों से खचाखच भरे न्यायालय कक्ष में इस बहुप्रतीक्षित फैसले के मुख्य अंश पढ़कर सुनाए तथा इसमें उन्हें 45 मिनट लगे।
आइये, जानते हैं अयोध्या मामले पर सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में क्या-क्या कहा…
– न्यायालय ने निर्मोही अखाड़े की समूची विवादित जमीन पर दावे की याचिका को खारिज किया।
-न्यायालय ने केंद्र को मंदिर निर्माण के लिये तीन महीने में योजना तैयार करने और न्यास बनाने का निर्देश दिया।
– न्यायालय ने मुसलमानों को नयी मस्जिद बनाने के लिये वैकल्पिक जमीन आवंटित करने का निर्देश दिया। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि विवादित जमीन हिन्दुओं को मंदिर के लिए दी जाएगी।
– बाबरी मस्जिद को नुकसान पहुंचाना कानून के खिलाफ था।
– हिंदू ये स्थापित करने में सफल रहे कि बाहरी बरामदे पर उनका कब्जा था।
– स्थल पर 1856-57 में लोहे की रेलिंग लगाई गई थी जो यह संकेत देती हैं कि हिंदू यहां पूजा करते रहे हैं।
– साक्ष्यों से पता चलता है कि मुसलमान मस्जिद में जुमे की नमाज अदा करते थे जो यह संकेत देता है कि उन्होंने यहां कब्जा नहीं खोया था।
– हिंदुओं की यह अविवादित मान्यता है कि भगवान राम का जन्म गिराई गयी संरचना में ही हुआ था।
– हिंदू इस स्थान को भगवान राम की जन्मभूमि मानते हैं, यहां तक कि मुसलमान भी विवादित स्थल के बारे में यही कहते हैं। एएसआई यह नहीं बता पाया कि क्या मंदिर को तोड़कर मस्जिद बनाई गई थी।
– एएसआई ने इस तथ्य को स्थापित किया कि गिराए गए ढांचे के नीचे मंदिर था।
– बुनियादी संरचना इस्लामिक ढांचा नहीं थी।
– बाबरी मस्जिद खाली जमीन पर नहीं बनी थी।
– न्यायालय ने कहा कि पुरातात्विक साक्ष्यों को महज राय बताना एएसआई के प्रति बहुत अन्याय होगा।
– न्यायालय ने विवादित स्थल पर पुरातात्विक साक्ष्यों को महत्व दिया।
– न्यायालय ने कहा, राम जन्मभूमि एक न्याय सम्मत व्यक्ति नहीं।
– न्यायालय ने कहा कि निर्मोही अखाड़े की याचिका कानूनी समय सीमा के दायरे में नहीं, न ही वह रखरखाव या राम लला के उपासक।
– न्यायालय ने कहा कि राजस्व रिकार्ड के अनुसार विवादित भूमि सरकारी है।
– न्यायालय ने सर्वसम्मति से शिया वक्फ बोर्ड की अपील खारिज की। शिया वक्फ बोर्ड का दावा विवादित ढांचे को लेकर था जिसे न्यायालय ने खारिज कर दिया।
अयोध्या में विवाद कब से शुरू हुआ और अब तक कब-कब क्या हुआ –
वर्ष 1528 ई. मुगल बादशाह बाबर ने (विवादित जगह पर) मस्जिद का निर्माण कराया। इसे लेकर हिंदुओं का दावा है कि यह जगह भगवान राम की जन्मभूमि है और यहां पहले एक मंदिर था।
वर्ष 1853-1949 तकः 1853 में इस जगह के आसपास पहली बार दंगे हुए। 1859 में अंग्रेजी प्रशासन ने विवादित जगह के आसपास बाड़ लगा दी। मुसलमानों को ढांचे के अंदर और हिंदुओं को बाहर चबूतरे पर पूजा करने की इजाजत दी गई।
वर्ष 1949ः असली विवाद शुरू हुआ 23 दिसंबर 1949 को, जब भगवान राम की मूर्तियां मस्जिद में पाई गईं। हिंदुओं का कहना था कि भगवान राम प्रकट हुए हैं, जबकि मुसलमानों ने आरोप लगाया कि किसी ने रात में चुपचाप मूर्तियां वहां रख दीं। यूपी सरकार ने मूर्तियां हटाने का आदेश दिया, लेकिन जिला मजिस्ट्रेट के. के. नायर ने दंगों और हिंदुओं की भावनाओं के भड़कने के डर से इस आदेश को पूरा करने में असमर्थता जताई। सरकार ने इसे विवादित ढांचा मानकर ताला लगवा दिया।
वर्ष 1950ः फैजाबाद सिविल कोर्ट में दो अर्जी दाखिल की गई। इसमें एक में राम लला की पूजा की इजाजत और दूसरे में विवादित ढांचे में भगवान राम की मूर्ति रखे रहने की इजाजत मांगी गई। 1959 में निर्मोही अखाड़ा ने तीसरी अर्जी दाखिल की।
वर्ष 1961ः यूपी सुन्नी वक्फ बोर्ड ने अर्जी दाखिल कर विवादित जगह के पजेशन और मूर्तियां हटाने की मांग की।
वर्ष 1984ः विवादित ढांचे की जगह मंदिर बनाने के लिए 1984 में विश्व हिंदू परिषद ने एक कमिटी गठित की।
वर्ष 1986ः यू. सी. पांडे की याचिका पर फैजाबाद के तत्कानीन जिला जज के. एम. पांडे ने 1 फरवरी 1986 को हिंदुओं को पूजा करने की इजाजत देते हुए ढ़ांचे पर से ताला हटाने का आदेश दिया।
6 दिसंबर 1992ः बीजेपी, वीएचपी और शिवसेना समेत कई हिंदू संगठनों के लाखों कार्यकर्ताओं ने विवादित ढ़ांचे को गिरा दिया। देश भर में हिंदू-मुसलमानों के बीच दंगे भड़के गए, जिनमें 2 हजार से ज्यादा लोग मारे गए।
वर्ष 2002ः हिंदू कार्यकर्ताओं को ले जा रही ट्रेन में गोधरा में आग लगा दी गई, जिसमें 58 लोगों की मौत हो गई। इसकी वजह से हुए दंगे में 2 हजार से ज्यादा लोग मारे गए।
वर्ष 2010ः इलाहाबाद हाई कोर्ट ने अपने फैसले में विवादित स्थल को सुन्नी वक्फ बोर्ड, रामलला विराजमान और निर्मोही अखाड़ा के बीच 3 बराबर-बराबर हिस्सों में बांटने का आदेश दिया।
वर्ष 2011ः सुप्रीम कोर्ट ने अयोध्या विवाद पर इलाहाबाद हाई कोर्ट के फैसले पर रोक लगाई।
वर्ष 2017ः सुप्रीम कोर्ट ने आउट ऑफ कोर्ट सेटलमेंट का आह्वान किया। बीजेपी के शीर्ष नेताओं पर अपराधिक साजिश के आरोप फिर से बहाल किए।
8 मार्च 2019ः सुप्रीम कोर्ट ने मामले को मध्यस्थता के लिए भेजा। पैनल को 8 सप्ताह के अंदर कार्यवाही खत्म करने को कहा।
1 अगस्त 2019ः मध्यस्थता पैनल ने रिपोर्ट प्रस्तुत की।
2 अगस्त 2019ः सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि मध्यस्थता पैनल मामले का समाधान निकालने में विफल रहा।
6 अगस्त 2019ः सुप्रीम कोर्ट में अयोध्या मामले की रोजाना सुनवाई शुरू हुई।
16 अक्टूबर 2019ः अयोध्या मामले की सुनवाई पूरी। सुप्रीम कोर्ट ने फैसला सुरक्षित रखा।
9 नवम्बर 2019ः सुप्रीम कोर्ट ने अयोध्या मामले पर अपना ऐतिहासिक फैसला सुनाया। सदियों से चले आ रहे विवाद का पटाक्षेप हुआ।
राजेश सैनी