अपने आरंभिक छात्र-जीवन से ही विनायक सावरकर राष्ट्र-प्रेम से ओत-प्रोत कविताएं लिखने लगे थे। उनकी ये कविताएं (पोवाड़) स्वतन्त्रता प्रेमी ऐतिहासिक वीरों-महाराणा प्रताप, छत्रपति शिवाजी, गुरु गोविंद सिंह आदि से सम्बद्ध हुआ करती थीं। अपनी इन वीर रस की कविताओं से वे अपने मित्रों में देश-प्रेम की भावना का समावेश करते थे।
इन पोवाड़ों के प्रसंग में एक स्थान पर शिवाजी के चचेरे भाई बाजी घोरपड़े (जो बीजापुर के सुल्तान का समर्थक था) के विषय में कहा गया है- ‘‘हाय! वीर बाजी प्रभु, बीजापुर के यवन सुल्तान की सेवा में हैं। अपनी मातृभूमि की अधीनता के लिए यह विदेशी विधर्मी की सहायता कर रहा है।’’
आगे शिवाजी का दूत बाजी के पास जाता है और उन्हें संदेश देता है-
इस संदेश का बाजी पर अनुकूल प्रभाव होता है। उसे अपनी करनी पर ग्लानि होने लगती है। वह दूत से कहता है-‘भयंकर सांप को मित्र समझकर मैंने उसे अपने घर में शरण दी है। इस विदेशी, विधर्मी, हिन्दू द्रोही चोर को मैंने राजा माना तथा महान पराक्रमी शिवाजी का विरोध किया। अपनी पावन मातृभूमि को अपवित्र करने वाले का ही मैं सेवक बना। शिवाजी के दूतों, शिवाजी महाराज से जाकर कहना कि मुझ जैसे नीच राष्ट्रद्रोही को काटकर टुकड़े-टुकड़े कर दें, मैं उस स्वन्त्रता प्रेमी हिन्दू वीर के हाथों से मुक्ति पाकर पुनः इस पावन भूमि में जन्म लेना चाहता हूं।’’
सावरकर की प्रथम कविता सन् 1894 में प्रकाशित हुई थी।उसके बाद तो उनकी ये कविताएं मराठी पत्रिकाओं में प्रकाशित होती रहती थीं। इन्हीं कविताओं को पढ़कर लोकमान्य तिलक तथा गोविन्द महादेव रानाडे उनसे परिचित हुए। इन दोनों महानुभावों ने इन कविताओं के लिए सावरकर को अपनी शुभकामनाएं दी थीं। बाद में सरकार ने इन कविताओं को सरकार के विरूद्ध भड़काने वाला बताकर जब्त कर लिया था। नासिक के एक पत्र ‘नासिक वैभव’ में सावरकर का ‘हिन्दुस्तान गौरव’ नामक लेख प्रकाशित होने पर उनके सभी अध्यापकों ने भी इनकी प्रशंसा की थी।