बालक वल्लभ की एकाग्रता
सरदार वल्लभ भाई पटेल के पिताजी किसान थे। सरदार पटेल जब छोटे थे तब वे अपने पिताजी के साथ खेत पर जाते थे। एक दिन सरदार पटेल के पिताजी खेत में हल चला रहे थे और सरदार पटेल उनके साथ साथ चलते हुए पहाड़े याद कर रहे थे। वे याद करने में पूरी तरह से तन्मय हो गये और हल के पीछे चलते चलते उनके पांव में कांटा लग गया, परन्तु सरदार पटेल पर इसका कोई प्रभाव नहीं पड़ा। तथा वे उसी तन्मयता से पहाड़े याद कर रहे थे। तभी अचानक उनके पिताजी की नजर बालक वल्लभ के पांव पर पड़ी तो पांव में बड़ा सा कांटा देखकर वे एक दम से चौक गये और तुरंत बैलों को रोककर वल्लभ के पैर से कांटा निकाला और घाव पर पत्ते लगाकर खून को बहने से रोका। सरदार पटेल की इस तरह की एकाग्रता और तन्मयता देखकर उनके पिताजी बहुत खुश हुए और उन्हें जीवन में कुछ बड़ा करने का आशीर्वाद दिया और उनके इस आशीर्वाद को सरदार पटेल ने बखूबी सफल किया।
राह बने निष्कंटक
विद्यार्थियों की एक टोली पढ़ने के लिए रोजाना अपने गाँव से छह-सात मील दूर दूसरे गाँव जाती थी। एक दिन जाते-जाते अचानक विद्यार्थियों को लगा कि उनमें एक विद्यार्थी कम है। ढूँढने पर पता चला कि वह पीछे रह गया है।
उसे एक विद्यार्थी ने पुकारा, “तुम वहाँ क्या कर रहे हो?”
उस विद्यार्थी ने वहीं से उत्तर दिया, “ठहरो, मैं अभी आता हूँ।”
यह कह कर उस ने धरती में गड़े एक खूँटे को पकड़ा। जोर से हिलाया, उखाड़ा और एक ओर फेंक दिया फिर टोली में आ मिला।
उसके एक साथी ने पूछा, “तुम ने वह खूँटा क्यों उखाड़ा? इसे तो किसी ने खेत की हद जताने के लिए गाड़ा था।”
इस पर विद्यार्थी बोला, “लेकिन वह बीच रास्ते में गड़ा हुआ था। चलने में रुकावट डालता था। जो खूँटा रास्ते की रुकावट बने, उस खूँटे को उखाड़ फेंकना चाहिए।”
वह विद्यार्थी और कोई नहीं, बल्कि लौह पुरुष सरदार वल्लभ भाई पटेल थे।
कर्तव्य परायण सरदार पटेल
उनके इस गुण का दर्शन हमें सन् 1909 की इस घटना से होते हैं।
वे कोर्ट में केस लड़ रहे थे, उसी समय उन्हें अपनी पत्नी की मृत्यु (11 जनवरी 1909) का तार मिला। पढ़कर उन्होंने इस प्रकार पत्र को अपनी जेब में रख लिया, जैसे कुछ हुआ ही नहीं। दो घंटे तक बहसकर उन्होंने वह केस जीत लिया। बहस पूर्ण हो जाने के बाद न्यायाधीश व अन्य लोगों को जब यह खबर मिली कि सरदार पटेल की पत्नी का निधन हो गया। तब उन्होंने सरदार से इस बारे में पूछा तो सरदार ने कहा कि “उस समय मैं अपना फर्ज निभा रहा था, जिसका शुल्क मेरे मुवक्किल ने न्याय के लिए मुझे दिया था। मैं उसके साथ अन्याय कैसे कर सकता था।’’
ऐसी कर्तव्यपरायणता और शेर जैसे कलेजे की मिसाल इतिहास में विरले ही मिलती है। इससे बड़ा कर्तव्यपरायणता का चरित्र और क्या हो सकता है?
सरदार पटेल की सादगी, सहज स्वभाव और विनम्रता
उस समय सरदार पटेल भारतीय लेजिस्लेटिव असेंबली के अध्यक्ष थे। एक दिन वे असेंबली का कार्य संपन्न कर घर के लिए निकलने ही वाले थे कि एक अंग्रेज दंपत्ति वहाँ पहुँच गया। वे दोनों भारत भ्रमण के लिए विलायत से आये थे और असेंबली देखना चाहते थे।
सरदार पटेल सादा जीवन उच्च विचार में आस्था रखते थे। लेजिस्लेटिव असेंबली के अध्यक्ष होने के बाद भी उनका पहनावा अत्यंत साधारण होता था। बढ़ी हुई दाढ़ी और सादे वस्त्रों में देखकर अंग्रेज दंपत्ति उन्हें चपरासी समझ बैठे और उनसे असेंबली भवन घुमाने के लिए कहा सरदार पटेल ने सादगी से उनका आग्रह स्वीकार कर लिया और अपना पूरा समय देते हुए उन्हें असेंबली भवन का भ्रमण करवाया। अंग्रेज दंपत्ति खुश हो गए और बख्शीश में सरदार पटेल को एक रुपया देने लगे। जिसे सरदार पटेल ने विनम्रता से मना कर दिया।
अगले दिन असेंबली की बैठक थी। अंग्रेज दंपत्ति सभा की कार्यवाही देखने दर्शक दीर्घा में बैठे हुए थे। जब सरदार पटेल सभापति के आसन पर आकर बैठे, तो वे चौंक गए। शीघ्र ही उन्हें अपनी भूल का अहसास हो गया कि जिसे वे चपरासी समझ रहे थे, वे वास्तव में लेजिस्लेटिव असेंबली के अध्यक्ष हैं।
वो उनकी सादगी पर अपने विचारों पर शर्मिंदगी महसूस कर रहे थे और सभा के उपरांत उन्होंने सरदार पटेल से क्षमा मांगी। लौह पुरुष सरदार वल्लभ भाई पटेल की सादगी, सहज स्वभाव और नम्रता की इससे बड़ी बानगी क्या हो सकती है?
मीतू बापना