चीन काल की एक घटना है। एक बार एक किशोर ग्वाला अपनी गायों को चराने के लिए नदी के किनारे-किनारे उस जंगल में ले गया जहाँ हरी-भरी घास उगी थी। नदी के तट पर बरगद का एक विशाल वृक्ष था, जिसकी घनी एवं शीतल छाया में अनेक राहगीर अपनी थकान मिटाते थे। ग्वाला भी अपने गायों को चरने के लिए जंगल में छोड़कर उस वृक्ष की शीतल छाया में आराम करने के लिए बैठ गया।
मध्याह्न के समय उसने देखा कि एक साधुबाबा कहीं से आये और उन्होंने नदी में स्नान किया। इसके बाद वे उस विशाल वटवृक्ष की शीतल छाया में आसन बिछाकर बैठ गये। फिर उन्होंने दोनों आँखें बंद करके, नाक दबाकर कुछ क्रियाएँ कीं। वह ग्वाला साधुबाबा के इन क्रियाकलापों को ध्यानपूर्वक देखता रहा। जब संध्या-वंदन करके वे वहाँ से जाने की तैयारी करने लगे, तब उस ग्वाले ने बाबा के पास जाकर इन यौगिक क्रियाओं के विषय में पूछा। उन्होंने कहाः ‘‘ऐसा करके मैं भगवान से बातें कर रहा था।“
ग्वालाः ‘‘क्या ऐसा करने से भगवान सचमुच में आते हैं और बातें करते हैं?’’
सिर हिलाकर ग्वाले के प्रश्न का उत्तर ‘हाँ’ में देते हुए बाबा आगे बढ़ गये। उनकी इतनी ऊँची स्थिति नहीं थी कि वे भगवान से बातें कर सकें परंतु उन्होंने उस भोले-भाले ग्वाले को प्रोत्साहन देने के लिए ऐसा कह दिया।
जब साधु वहाँ से चले गये, तब ग्वाला भी वैसी ही क्रियाएँ करने लगा परंतु उसको भगवान का कुछ पता नहीं चला। फिर भी वह दृढ़ निश्चय करके बैठ गया कि ‘बस, आज तो भगवान के दर्शन करने ही हैं।’ उसने सोचा कि ‘वे साधु भगवान से बातें कर सकते हैं तो मैं क्यों नहीं कर सकता!’
तब ग्वाले ने पुनः अपनी दोनों आँखें बंद कर लीं और नाक को जोर-से दबा लिया। ऐसा करने से उसकी हृदय गति धीमी पड़ गयी तथा प्राण निकलने की नौबत आ गयी।
इधर भगवान शंकरजी का आसन डोलने लगा। उन्होंने ध्यान में देखा कि किशोर ग्वाला भगवान से बातें करने के लिए हठपूर्वक आँखें बंद करके व नाक दबाकर बैठा है। उस अबोध व निर्दोष ग्वाले को अकाल मृत्यु के मुँह में जाते देख भगवान शंकर उसके सामने प्रकट हो गये। भगवान ने ग्वाले से कहाः ‘‘वत्स! आँखें खोलो, मैं आ गया हूँ। मैं तुम पर बहुत प्रसन्न हूँ।’’
ग्वाले ने आँखें बंद रखते हुए इशारे से पूछा कि ‘आप कौन हैं ?’
भगवानः ‘‘मैं वही भगवान हूँ जिसके लिए तुम आँखें बंद करके नाक दबाये बैठे हो।’’
ग्वाले ने झट-से आँखें खोलीं और श्वास लेना शुरू किया परंतु उसने कभी भगवान को देखा तो था नहीं। अतः वह कैसे पहचानता कि ये ही सचमुच में भगवान हैं। उसने भगवान को पेड़ के साथ रस्सी से बाँध दिया और साधु को बुलाने के लिए दौड़ता हुआ गया। साधु
अभी थोड़ी ही दूर पहुँचे थे, उन्हें रोककर ग्वाले ने सारी घटना कह सुनायी। साधु झटपट वहाँ पहुँचे परंतु जिनके जीवन में झूठ-कपट होता है, विश्वास की कमी होती है, साधन-भजन तो करते हैं परंतु दृढ़ निश्चय एवं प्रेम से नहीं करते उनको भगवान क्यों दिखेंगे! साधु को भगवान नजर ही नहीं आ रहे थे जबकि ग्वाले को स्पष्ट दिखायी दे रहे थे।
साधु ने कहा ‘‘मुझे तो कुछ नजर नहीं आ रहा है।’’
तब ग्वाले ने इसका कारण भगवान से पूछा। भगवान ने कहाः ‘‘यंत्र की तरह कोई हजार वर्ष भी जप-तप करे फिर भी मुझे प्राप्त नहीं कर सकता, परंतु जो श्रद्धा, प्रीति और सच्चाईपूर्वक क्षण भर के लिए भी मुझे भजता है, मैं उसे शीघ्र दर्शन देता हूँ।’’
भगवान ग्वाले से जो कह रहे थे वह साधु को भी सुनायी दे रहा था। उनकी आँखों से पश्चाताप के आँसू बहने लगे। वे फूट-फूटकर रोने लगे। इससे द्रवित होकर ग्वाले ने भगवान से उन्हें माफ करने के लिए प्रार्थना की। ग्वाले की श्रद्धा व परदुःखकातरता के भाव से प्रसन्न होकर भगवान शंकर ने साधुबाबा को माफ कर दिया और उन्हें भी दर्शन दिये। फिर दोनों को आशीर्वाद देकर वे अंतर्ध्यान हो गये।
आप उस ग्वाले की तरह नाक दबाकर हठ करें इसलिए वह कथा नहीं लिखी गयी है, बल्कि इस तथ्य को समझा जाना चाहिए कि विश्वासी को साधना में सहज सफलता प्राप्त करते देखा गया है, जबकि अविश्वासी का सही मंत्र और सही प्रयोग भी अनेक बार असफल होते देखा गया है।
लक्ष्य बापना