राष्ट्रीय शिक्षा नीति, 2019 के प्रारूप में शिक्षण व्यवस्था को मुख्य रूप से चार भागों में बांटा गया है। पहले भाग में विद्यालयीय शिक्षा, दूसरे में उच्च शिक्षा और तीसरे में प्रौद्योगिकी, व्यावसायिक व वयस्क शिक्षा को रखा गया है। प्रारूप के चौथे भाग में राष्ट्रीय शिक्षा आयोग के जरिये शिक्षा में बदलाव लाने की बात कही गयी है।
चूंकि पिछली शिक्षा नीति तीन दशक पहले आई थी इसलिये वर्ष 2014 में केंद्रीय मानव संसाधन विकास मंत्रालय ने नई शिक्षा नीति तैयार करने के लिये वर्ष 2015 में पूर्व कैबिनेट सचिव टी.एस.आर. सुब्रमण्यम की अध्यक्षता में पाँच सदस्यीय समिति का गठन किया गया। उसने नई शिक्षा नीति का मसौदा पेश किया, लेकिन किसी कारण उसे अनुकूल नहीं पाया गया और वर्ष 2016 में अंतरिक्ष वैज्ञानिक के. कस्तूरीरंगन की अध्यक्षता में एक नई समिति गठित की गई।
वर्तमान में नई सरकार बनते ही समिति की ओर से तैयार नई शिक्षा नीति का मसौदा सरकार को सौंप दिया गया। महत्वपूर्ण बात यह है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा दूसरी बार सरकार बनाने के पहले दिन ही नई शिक्षा नीति का मसौदा पेश किया गया है। इस नई शिक्षा नीति-2019 के रूप में पहला ड्राफ्ट नये मानव संसाधन विकास मंत्री रमेश पोखरियाल निशंक को उनके पदभार ग्रहण करते ही जाने माने वैज्ञानिक व 1994 से 2003 तक इंडियन स्पेश रिसर्च ऑर्गनाइजेशन (इसरो) के चेयरमैन रहे पद्मश्री व पद्म विभूषण के. कस्तूरीरंगन की अध्यक्षता वाली समिति द्वारा सौंपा गया।
नयी शिक्षा नीति के तहत सरकार का उद्देश्य ऐसी शिक्षण प्रणाली विकसित करना है, जहां बिना किसी भेदभाव के सभी बच्चों को शिक्षा का समान अवसर मिले और उनका विकास हो। देश के दूर-दराज के क्षेत्रों में विशेष शिक्षा क्षेत्र भी स्थापित किये जायेंगे। वर्ष 2030 तक सभी बच्चों तक शिक्षा की पहुंच सुनिश्चित करना भी शिक्षा नीति का हिस्सा है। वंचित व अल्पसंख्यक समुदाय के विद्यार्थियों को छात्रवृत्ति, संसाधन और सुविधाएं प्रदान करने के लिए विशेष राष्ट्रीय कोष का गठन होगा। सरकार सभी भारतीय भाषाओं के समान विकास और संवर्द्धन के लिये दृढ़ संकल्पित है।
सभी बालिकाओं को गुणवत्ता युक्त व एक समान शिक्षा उपलब्ध कराने के लिए अलग से राशि (जेंडर-इंक्लूजन फंड) मुहैया करायी जायेगी। विशेष सक्षम बच्चों की स्कूल तक पहुंच सुनिश्चित कराने के उपाय किये जायेंगे। बच्चों के सर्वांगीण विकास के लिए स्कूल परिसर को बुनियादी ढांचा, पुस्तकालय, कला, संगीत-शिक्षक समेत सभी संसाधनों की उपलब्धता सुनिश्चित करनी होगी।
नई शिक्षा नीति-2019 के ड्राफ्ट में बहुत सी बातें ऐसी हैं, जिनकी तरफदारी पूर्व की समितियों और राष्ट्रीय पाठ्यचर्या की रूपरेखा-2005 में भी की गई है जैसे प्राथमिक स्तर पर शिक्षण में मातृभाषा को प्राथमिकता देना। इसके साथ ही साथ तीन भाषाओं के फॉर्मूले को नई शिक्षा नीति-2019 के मसौदे में भी प्रमुखता के साथ शामिल किया गया है।
प्री-स्कूल एजुकेशन की प्रस्तावित नीति के कुछ बिंदु :
– बड़े पैमाने पर आंगनवाड़ी केन्द्रों का निर्माण किया जाएगा।
– आंगनवाड़ी कार्यकर्ताओं को खेल आधारित शिक्षा के लिए प्रशिक्षण प्रदान किया जाएगा।
– बेहतरीन शैक्षणिक सामग्रियां उपलब्ध कराई जाएंगी।
– पहले से चल रहे प्राथमिक विद्यालयों के साथ आंगडवाड़ी केन्द्रों को जोड़ना।
– आंगनवाड़ी केन्द्रों पर सीखने के लिए आकर्षक और प्रेरणादायक स्थानों के निर्माण के लिए विशेषज्ञों, प्रारम्भिक बाल्यावस्था शिक्षा के विशेषज्ञों, कलाकारों और वास्तुकारों की समितियों का निर्माण होगा।
– राज्य स्तर पर शिक्षकों के लिए विशेष प्रशिक्षण कार्यक्रम चलाए जाएंगे।
– एक नियामक प्रणाली बनाई जाएगी जो पूर्व प्राथमिक स्कूलों (सभी सार्वजनिक, निजी एवं अनुदानित) को नियमित करेगी।
नई शिक्षा नीति का मसौदाः प्रमुख सिफारिशें :
– इसके तहत शिक्षा के अधिकार अधिनियम (RTE) के दायरे को विस्तृत करने का प्रयास किया गया है, साथ ही स्नातक पाठ्यक्रमों को भी संशोधित किया गया है।
– इस मसौदा नीति में लिबरल आर्ट्स साइंस एजुकेशन के चार वर्षीय कार्यक्रम को फिर से शुरू करने तथा कई कार्यक्रमों के हटाने के विकल्प के साथ-साथ एम. फिल. प्रोग्राम को रद्द करने का भी प्रस्ताव किया गया है।
– इस मसौदा नीति के अनुसार, पीएच.डी. करने के लिये या तो मास्टर डिग्री या चार साल की स्नातक डिग्री को अनिवार्य किया गया है।
– नए पाठ्यक्रम में 3 से 18 वर्ष तक के बच्चों को कवर करने के लिये 5+3+3+4 डिजाइन (आयु वर्ग 3-8 वर्ष, 8-11 वर्ष, 11-14 वर्ष और 14-18 वर्ष) तैयार किया गया है जिसमें प्रारंभिक शिक्षा से लेकर स्कूली पाठ्यक्रम तक शिक्षण शास्त्र के पुनर्गठन के भाग के रूप में समावेशन के लिये नीति तैयार की गई है।
– यह मसौदा नीति धारा 12 (1) (सी) (निजी स्कूलों में आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग के छात्रों के लिये अनिवार्य 25 प्रतिशत आरक्षण का दुरुपयोग किया जाना) की भी समीक्षा करती है।
अन्य प्रमुख सिफारिशें :
– स्कूली शिक्षा के लिये एक स्वतंत्र नियामक ‘राज्य विद्यालय नियामक प्राधिकरण’ (SSRA) और उच्च शिक्षा के लिये राष्ट्रीय उच्चतर शिक्षा नियामक प्राधिकरण स्थापित किया जाएगा।
– निजी स्कूल अपनी फीस निर्धारित करने के लिये स्वतंत्र हैं, लेकिन वे मनमाने तरीके से स्कूल की फीस में वृद्धि नहीं करेंगे। ‘राज्य विद्यालय नियामक प्राधिकरण’ द्वारा प्रत्येक तीन साल की अवधि के लिये इसका निर्धारण किया जाएगा।
– प्रधानमंत्री के नेतृत्व में एक नए शीर्ष निकाय ‘राष्ट्रीय शिक्षा आयोग’ की स्थापना की जाएगी जो सतत् आधार पर शिक्षा के विकास, कार्यान्वयन, मूल्यांकन और शिक्षा के उपयुक्त दृष्टिकोण को लागू करने के लिये उत्तरदायी होगा।
– स्कूली पाठ्यक्रम में शामिल होने के लिये गणित, खगोल विज्ञान, दर्शन, चिकित्सा के लिये प्राचीन भारतीय ज्ञान प्रणालियों के योगदान को सुनिश्चित किया जाएगा।
– विदेशों में भारतीय संस्थानों की संख्या में वृद्धि करने के साथ-साथ दुनिया के शीर्ष 200 विश्वविद्यालयों को भारत में अपनी शाखाएँ स्थापित करने की अनुमति दी जाएगी।
राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2019 के ड्राफ्ट की प्रमुख बातें :
नई शिक्षा नीति-2019 के प्रारूप की पहली सबसे खास बात है शिक्षा का अधिकार कानून के दायरे को व्यापक बनाना। इसमें अब तक प्राथमिक व उच्च प्राथमिक स्तर की शिक्षा को ही शामिल किया जा रहा है जो 6 से 14 वर्ष तक की उम्र वाले बच्चों को शिक्षा का अधिकार कानून के दायरे में लाने की बात करती है। नई शिक्षा नीति के मसौदे के अनुसार चूंकि बच्चों के मस्तिष्क के विकास के लिए पूर्व-प्राथमिक शिक्षा वाली उम्र बेहद महत्वपूर्ण है, इसलिए इसका दायरा पूर्व-प्राथमिक शिक्षा से लेकर 12वीं तक की पढ़ाई के लिए लागू होना चाहिए। नर्सरी से 12वीं तक की पढ़ाई को 5$3$3$4 के फॉर्मूले के तहत चार चरणों में बाँटने की बात कही गई है। इस संदर्भ में सुझाव दिया गया है कि पूर्व-प्राथमिक शाला को विद्यालय के कैंपस में ही स्थापित किया जाना चाहिए।
इसकी दूसरी सबसे खास बात है कि इसमें राष्ट्रीय शिक्षा आयोग बनाने का सुझाव भी नई शिक्षा नीति के प्रारूप में रखा गया है ताकि शिक्षा को समग्र रूप में पर्यावरण हितैषी व ज्ञानवान समाज बनाने के उद्देश्यों के साथ बदलाव को सुगमता प्रदान की जा सके। इसके साथ ही साथ निजी स्कूलों के साथ पब्लिक जैसा शब्द इस्तेमाल बंद हो, इस दिशा में भी प्रयास करने की बात कही गई है। साथ ही साथ निजी स्कूलों को सपोर्ट करने की भी बात नई शिक्षा नीति के प्रारूप में कही गई है ताकि निजी स्कूल सरकारी विद्यालयों में होने वाले नवाचारी प्रयासों से सीख सकें, हालांकि यह सरकारी स्कूल के विकास की शर्तों पर न हो इस बात का ध्यान रखने की बात कही गई है।
तीसरा सबसे अहम बिंदु है कि नई शिक्षा नीति के ड्राफ्ट में प्राथमिक व इससे उच्च स्तर की कक्षाओं के विद्यार्थियों के लिए बुनियादी साक्षरता व संख्या ज्ञान से संबंधित दक्षताओं के विकास का लक्ष्य रखा गया है। इसके लिए पूर्व-प्राथमिक शिक्षा तक पहुँच, शिक्षक-विद्यार्थी अनुपात (पीटीआर) को 30ः1 तक रखने का सुझाव भी दिया गया है, व ऐसा न होने के कारण बच्चों के सीखने पर होने वाले असर को रेखांकित किया गया है। मल्टी लेवल शिक्षण के तरीकों को अपनाने व पौष्टिक नाश्ते व आहार की व्यवस्था का प्रावधान करने की बात भी नई शिक्षा नीति के प्रारूप में है। इसके तहत मिड डे मील के कार्यक्रम का विस्तार करने की बात कही गई है।
चौथी सबसे खास बात है कि इसमें पहली व दूसरी कक्षा में भाषा व गणित पर काम करने पर जोर देने की बात नई शिक्षा नीति के मसौदे में है। इसके साथ ही चौथी व पाँचवीं के बच्चों के साथ लेखन कौशल पर काम करने पर भी ध्यान देने की बात कही गई है। भाषा सप्ताह, गणित सप्ताह व भाषा मेला व गणित मेला जैसे आयोजन करने की बात भी इस प्रारूप में लिखी गई हैं।
नई शिक्षा नीति-2019 के ड्राफ्ट की पाँचवीं सबसे खास बात यह है कि इसमें पुस्तकालयों को जीवंत बनाने व गतिविधियों को कराने पर ध्यान देने की बात कही गई है। इसमें कहानी सुनाने, रंगमंच, समूह में पठन, लेखन व बच्चों के बनाये चित्रों व लिखी हुई सामग्री का डिसप्ले करने पर ध्यान देने की बात कही गई है। स्कूल के साथ-साथ सार्वजनिक पुस्तकालयों को विस्तार देने व पढ़ने और संवाद करने की संस्कृति को प्रोत्साहित करने की बात भी नई शिक्षा नीति-2019 के ड्राफ्ट में कही गई है। इसमें बच्चों को किताब पढ़ने और घर ले जाकर पढ़ने के लिए प्रोत्साहित करने व सप्ताह में एक बार विद्यालय में पढ़ी गई किताब के बारे में अपने अनुभवों को साझा करने का अवसर देने की बात भी कही गई है।
आवासीय विद्यालयों में बालिकाओं के लिए नवोदय जैसी व्यवस्था करने का भी सुझाव है। यह इसकी छठीं सबसे गौर करने वाली बात है। इसका उद्देश्य है कि बालिकाओं की शिक्षा जारी रहे इसके लिए उनको भावनात्मक रूप से सुरक्षित वातावरण देने का सुझाव दिया गया है। कस्तूरबा गाँधी बालिका विद्यालय का विस्तार 12वीं तक करने का सुझाव नई शिक्षा नीति-2019 के मसौदे में किया गया है।
नई शिक्षा नीति-2019 के ड्राफ्ट की सातवीं सबसे बड़ी बात है कि रेमेडियल शिक्षण को मुख्य धारा में शामिल करने जैसा सुझाव दिया गया है। इसके तहत 10 सालों की परियोजना का प्रस्ताव किया गया है। इसमें स्थानीय महिलाओं व स्वयंसेवकों की भागीदारी हासिल करने की बात कही गई है। इसके तहत काम करने वाले अनुदेशक विद्यालय समय से पूर्व व बाद में स्टूडेंट्स के साथ रेमेडियल शिक्षण का काम करेंगे। इसके साथ ही साथ लंबे अवकाश वाले दिनों में भी रेमेडियल कक्षाओं के संचालन का सुझाव दिया गया है।
आठवी बात शिक्षकों के सपोर्ट के लिए तकनीकी के इस्तेमाल को प्रोत्साहित करने की बात भी नई शिक्षा नीति-2019 के मसौदे में है। इसके लिए कंप्यूटर, लैपटॉप व फोन इत्यादि के जरिए विभिन्न ऐप का इस्तेमाल करके शिक्षण को रोचक बनाने की बात कही गई है। तकनीक को शिक्षकों के विकल्प के रूप में देखने की बजाय सहायक शिक्षण सामग्री के रूप में देखने की बात कही गई है। इसके साथ ही साथ अभिभावकों की भागीदारी और एसएससी की भूमिका को सक्रिय बनाने वाले बिंदु पर भी नई शिक्षा-2019 के मसौदे में फोकस किया गया है।
इसकी नौवीं सबसे प्रमुख बात है, शिक्षाक्रम में विषयवस्तु का बोझ कम करने का सुझाव ताकि मूलभूत अधिगम और तार्किक चिंतन को समृद्ध किया जा सके। इसके लिए 1993 की मानव संसाधन विकास मंत्रालय की यशपाल समिति की रिपोर्ट ‘लर्निंग विदाउड बर्डन’ और एनसीएफ-2005 की सलाह का जिक्र है, ‘‘यदि हम अपने स्कूलों में दी जाने वाली शिक्षा को अधिक समग्र, पूर्ण, विश्लेषण और तार्किक चिंतन को बढ़ावा देने वाली बनाना चाहते हैं तो इसकी भारी बोझ बन गयी विषय-वस्तु को घटाना ही होगा।’’
आखिर में चर्चा नई शिक्षा नीति के ड्राफ्ट-2019 के दसवें सबसे प्रमुख बिंदु की, इसमें प्राथमिक स्तर पर शिक्षा में बहुभाषिकता को प्राथमिकता के साथ शामिल करने और ऐसे भाषा शिक्षकों की उपलब्धता को महत्व दिया दिया गया है जो बच्चों के घर की भाषा समझते हों। यह समस्या राष्ट्रीय स्तर पर विभिन्न राज्यों में दिखाई देती है। पहली से पाँचवीं तक जहाँ तक संभव हो मातृभाषा का इस्तेमाल शिक्षण के माध्यम के रूप में किया जाये। जहाँ घर और स्कूल की भाषा अलग-अलग है, वहां दो भाषाओं के इस्तेमाल का सुझाव दिया गया है। बहुभाषिकता को समस्या के बजाय समाधान के रूप में देखने की बात को नई शिक्षा नीति-2019 के मसौदे में प्रमुखता के साथ रेखांकित किया गया है।
वर्ष 1986 में तैयार शिक्षा नीति में वर्ष 1992 में व्यापक संशोधन किया गया और यही नीति अभी तक प्रचलन में है। लेकिन बीते 28 सालों में दुनिया कहाँ-से-कहाँ पहुँच गई है और इसी के मद्देनजर देश की विशाल युवा आबादी की समकालीन जरूरतों और भविष्य की जरूरतों को पूरा करने के लिये यह शिक्षा नीति बनाई जा रही है। अब समय की कसौटी पर यह कितना खरा उतरती है, यह भविष्य के गर्भ में छिपा है।
हरिदत्त शर्मा