अधिकारियों को जैसे ही उनके समुद्र में कूद जाने की भनक लगी तो अंग्रेज अफसरों के पसीने छूट गए। उन्होंने समुद्र की लहरें चीरकर तैरते हुए सावरकर पर गोलियों की बौछार शुरू कर दी। सावरकर सागर की छाती चीरते हुए फ्रांस के तट की ओर बढ़ने लगे। कुछ ही देर में वह तट तक पहुँचने में सफल हो गए।
1जुलाई, 1910 को ‘मोरिया’ जलयान से सावरकर को कड़े पहरे में भारत रवाना कर दिया गया। ब्रिटिश सरकार को भनक लग गई थी कि सावरकर को रास्ते में छुड़ाने का प्रयास किया जा सकता है, अतः बहुत कड़े सुरक्षा-प्रबंध किए गए थे।
8 जुलाई को जलयान फ्रांस के मार्सेल बंदरगाह के निकट पहुँचने ही वाला था कि सावरकर शौच जाने के बहाने पाखाने में जा घुसे। उन्होंने दरवाजे पर अपना गाउन टाँग दिया। फुर्ती के साथ उछलकर वह पोर्ट हॉल तक पहुँचे तथा समुद्र में कूद पड़े।
तट पर पहुँचकर उन्होंने फ्रांसीसी सिपाही से कहा कि वह राजनीतिक बंदी हैं अतः उन्हें फ्रांस की पुलिस को सौंप दिया जाए। इसी बीच जलयान के अंग्रेज अधिकारी ‘‘चोर! चोर!! पकड़ो! पकड़ो!!’’ का शोर मचाते हुए मोटर बोटों से पीछा करते हुए वहाँ तक पहुँच गए। उन्होंने फ्रांसींसी सिपाही को कुछ रुपये (रिश्वत) दिए और सावरकर को पकड़कर वापस जहाज पर ले आए। अब उन्हें हथकड़ी-बेड़ी पहनाकर एक पिंजरे में डाल दिया गया।
एक भारतीय क्रातिकारी के इस प्रकार अंग्रेज अफसरों की आँखो में धूल झोंककर, समुद्र में कूद जाने की घटना के प्रकाशित होते ही पूरे संसार में सावरकर के साहस और शौर्य की चर्चा हो गई।
यह सनसनीखेज तथ्य भी प्रकाश में आया कि सावरकर को जलयान से छुड़ाने की योजना उनके साथियों ने पहले ही बना ली थी। मैडम कामा, अय्यर तथा सरदार सिंह राणा फ्रांस पहुँचकर उन्हें छुड़ाने की तैयारी कर चुके थे, किंतु कुछ समय की देरी होने से उन्हें वांछित सफलता नही मिली।
अब संसार भर में यह प्रश्न खड़ा हो गया कि फ्रांस के तट पर पहुँच जाने के बाद उन्हें ब्रिटिश अधिकारियों को पुनः सौप दिया जाना कहाँ तक उचित था। फ्रांसीसी सरकार ने ब्रिटिश सरकार से अनुरोध किया कि क्योंकि समाचार पत्रों में चर्चा है कि सावरकर को फ्रांस के तट से पकड़ा गया था, अतः ब्रिटिश सरकार इसका स्पष्टीकरण देने तक मुकदमा स्थगित रखे।