अग्रेजों के अमानवीय अत्याचारों से त्रस्त भारतीय जनता एकजुट हो इससे छुटकारा पाने हेतु कृत संकल्प हो गई। सुभाषचंद्र बोस, भगतसिंह, चंद्रशेखर आजाद ने क्रांति की आग फैलाई और अपने प्राणों की आहुति दी। तत्पश्चात् सरदार वल्लभभाई पटेल, गांधीजी, नेहरूजी ने सत्य, अहिंसा और बिना हथियारों की लड़ाई लड़ी। सत्याग्रह आंदोलन किए, लाठियां खाईं, कई बार जेल गए और अन्ततः अंग्रेजों को हमारा देश छोड़कर जाने पर मजबूर कर दिया। इस तरह 15 अगस्त 1947 का दिन हमारे लिए ‘स्वर्णिम दिन’ बना।
लगभग 200 वर्षों की गुलामी के पश्चात् 15 अगस्त सन् 1947 के दिन भारत आजाद हुआ। पहले हम अंग्रेजों के गुलाम थे। उनके बढ़ते हुए अत्याचारों से सारे भारतवासी त्रस्त हो गए और तब विद्रोह की ज्वाला भड़की और देश के अनेक वीरों ने प्राणों की बाजी लगाई, गोलियां खाईं और अंततः आजादी पाकर ही चैन लिया। चूँकि इस दिन हमारा देश आजाद हुआ, इसलिए इसे स्वतंत्रता दिवस कहते हैं।
भारतीय स्वतंत्रता दिवस मनाने का इतिहास काफी दिलचस्प रहा है। 1929 में तत्कालीन कांग्रेस अध्यक्ष जवाहरलाल नेहरू द्वारा ‘पूर्ण स्वराज’ की घोषणा के बाद 1930 से 26 जनवरी को स्वतंत्रता दिवस मनाया जाने लगा था और यह सिलसिला आजादी मिलने तक चलता रहा। द्वितीय विश्व युद्ध के बाद इंग्लैंड काफी कमजोर हो चुका था। ब्रिटिश संसद ने लॉर्ड माउंटबेटेन को 30 जून 1948 तक भारत को सत्ता हस्तांतरण का दायित्व सौंपा था।
दो मुल्क बनने की बात पर देश के अंदर हर जगह हिंसा और मार काट चल रही थी। सी. राज गोपालाचारी ने कहा था कि अगर हम जून 1948 तक का इंतजार करेंगे तो सत्ता हस्तांतरित करने के लिए कुछ भी नहीं बचेगा। इसलिए लॉर्ड माउंटबेटेन ने तय तारीख से पहले अगस्त 1947 में ही सत्ता सौंपने का फैसला किया और कहा कि इससे दंगे और हत्याएं रुक जाएगी।
20 फरवरी 1947 को भारत का अंतिम वायसराय नियुक्त होने वाले माउंटबेटेन ने कहा था कि जहां कहीं भी औपनिवेशिक शासन का अंत हुआ है वहां हत्याएं और दंगे हुए हैं। इसकी कीमत चुकानी पड़ती है। माउंटबेटेन की जानकारी के आधार पर ब्रिटेन ने भारत को जल्द स्वतंत्र करने का फैसला किया था।
इसे देखते हुए ब्रिटिश संसद में भारतीय स्वतंत्रता अधिनियम 4 जुलाई 1947 को पेश किया गया और यह 15 दिनों के अंदर पारित हो गया। जिसमें लिखा था कि भारत में 15 अगस्त 1947 को ब्रिटिश शासन का अंत हो जाएगा। इसी के अनुसार भारत और पाकिस्तान दो स्वतंत्र देश बनने तय हुए थे।
15 अगस्त की तारीख चुने जाने पर माउंटबेटेन ने बताया था कि ‘यह जापान के ब्रिटिश शासन के सामने समर्पण की दूसरी वर्षगांठ थी।’ इसके बाद ही ब्रिटिश संसद में भारत की स्वतंत्रता का विधेयक पेश हुआ था। हालांकि भारत को आजादी मिलने के बाद भी लॉर्ड माउंटबेटेन 10 महीने तक भारत के पहले गवर्नर जनरल रहे थे। भारत सरकार ने बाद में पहले तय की हुई तारीख 26 जनवरी को 1950 से गणतंत्र दिवस मनाने का फैसला कर लिया।
भारत के अतिरिक्त भी चार ऐसे देश हैं, जो 15 अगस्त को ही अपना-अपना स्वतंत्रता दिवस मनाते हैं।
1. नॉर्थ कोरिया
नॉर्थ कोरिया 15 अगस्त 1945 जापान से आजाद हुआ।
2. बहरीन
बहरीन 15 अगस्त 1971 को यूनाइटेड किंगडम से आजाद हुआ।
3. कॉन्गो
कॉन्गो 15 अगस्त 1960 को फ्रांस से आजाद हुआ।
4. साउथ कोरिया
साउथ कोरिया 15 अगस्त 1945 को जापान से आजाद हुआ।
15 अगस्त 1947 की आधी रात को जब दुनिया के कई हिस्सों में लोग नींद में डूबे हूए थे, उस समय भारत में जश्न का माहौल था। लोगों की आंखों में न नींद थी और न कोई आलस। देश को अंग्रेजी हुकूमत से आजादी मिलने की खुशी ऐसी थी कि सबकी आंखों में सिर्फ आने वाले भारत के सपने तैर रहे थे। ऐसे माहौल में देश के पहले प्रधानमंत्री स्वर्गीय पंडित जवाहर लाल नेहरू ने आजादी का पहला भाषण दिया था। इस भाषण को ‘ए ट्रिस्ट विद डेस्टिनी’ के नाम से जाना जाता है।
नेहरू जी ने दिया था आजादी का ऐतिहासिक भाषण
हमने नियति को मिलने का एक वचन दिया था, और अब समय आ गया है कि हम अपने वचन को निभाएं, पूरी तरह ना सही, लेकिन बहुत हद तक। आज रात बारह बजे, जब सारी दुनिया सो रही होगी, भारत जीवन और स्वतंत्रता की नई सुबह के साथ उठेगा। एक ऐसा क्षण जो इतिहास में बहुत ही कम आता है, जब हम पुराने को छोड़ नए की तरफ जाते हैं, जब एक युग का अंत होता है और जब वर्षों से शोषित एक देश की आत्मा अपनी बात कह सकती है। यह एक संयोग है कि इस पवित्र मौके पर हम समर्पण के साथ खुद को भारत और उसकी जनता की सेवा, और उससे भी बढ़कर सारी मानवता की सेवा करने के लिए प्रतिज्ञा ले रहे हैं।
इतिहास के आरम्भ के साथ ही भारत ने अपनी अंतहीन खोज प्रारंभ की, और ना जाने कितनी ही सदियां इसकी भव्य सफलताओं और असफलताओं से भरी हुई हैं। चाहे अच्छा वक़्त हो या बुरा, भारत ने कभी इस खोज से अपनी नजर नहीं हटाई और कभी भी अपने उन आदर्शों को नहीं भूला जिसने इसे शक्ति दी। आज हम दुर्भाग्य के एक युग का अंत कर रहे हैं और भारत पुनः खुद को खोज पा रहा है। आज हम जिस उपलब्धि का उत्सव मना रहे हैं, वो महज एक कदम है, नए अवसरों के खुलने का, इससे भी बड़ी विजय और उपलब्धियां हमारी प्रतीक्षा कर रही हैं। क्या हममें इतनी शक्ति और बुद्धिमत्ता है कि हम इस अवसर को समझें और भविष्य की चुनौतियों को स्वीकार करें?
भविष्य में हमें विश्राम करना या चैन से नहीं बैठना है बल्कि निरंतर प्रयास करना है ताकि हम जो वचन बार-बार दोहराते रहे हैं और जिसे हम आज भी दोहराएंगे उसे पूरा कर सकें। भारत की सेवा का अर्थ है लाखों-करोड़ों पीड़ित लोगों की सेवा करना। इसका मतलब है गरीबी और अज्ञानता को मिटाना, बीमारियों और अवसरों की असमानता को मिटाना। हमारी पीढ़ी के सबसे महान व्यक्ति की यही महत्वाकांक्षा रही है कि हर एक आंख से आंसू मिट जाएं। शायद ये हमारे लिए संभव न हो पर जब तक लोगों कि आंखों में आंसू हैं और वे पीड़ित हैं, तब तक हमारा काम खत्म नहीं होगा।
इसलिए हमें परिश्रम करना होगा, और कठिन परिश्रम करना होगा ताकि हम अपने सपनों को साकार कर सकें। वो सपने भारत के लिए हैं, पर साथ ही वे पूरे विश्व के लिए भी हैं, आज कोई खुद को बिलकुल अलग नहीं सोच सकता क्योंकि सभी राष्ट्र और लोग एक दूसरे से बड़ी समीपता से जुड़े हुए हैं। शांति को अविभाज्य कहा गया है, इसी तरह से स्वतंत्रता भी अविभाज्य है, समृद्धि भी और विनाश भी, अब इस दुनिया को छोटे-छोटे हिस्सों में नहीं बांटा जा सकता है। हमें स्वतंत्र भारत का महान निर्माण करना है जहां उसके सारे बच्चे रह सकें।
आज नियत समय आ गया है, एक ऐसा दिन जिसे नियति ने तय किया था – और एक बार फिर वर्षों के संघर्ष के बाद, भारत जागृत और स्वतंत्र खड़ा है। कुछ हद तक अभी भी हमारा भूत हमसे चिपका हुआ है, और हम अक्सर जो वचन लेते रहे हैं उसे निभाने से पहले बहुत कुछ करना है। पर फिर भी निर्णायक बिंदु अतीत हो चुका है, और हमारे लिए एक नया इतिहास आरम्भ हो चुका है, एक ऐसा इतिहास जिसे हम गढ़ेंगे और जिसके बारे में और लोग लिखेंगे।
ये हमारे लिए एक सौभाग्य का क्षण है, एक नए तारे का उदय हुआ है, पूरब में स्वतंत्रता का सितारा। एक नयी आशा का जन्म हुआ है, एक दूरदृष्टिता अस्तित्व में आई है। काश ये तारा कभी अस्त न हो और ये आशा कभी धूमिल न हो।! हम सदा इस स्वतंत्रता में आनंदित रहें।
भविष्य हमें बुला रहा है। हमें किधर जाना चाहिए और हमारे क्या प्रयास होने चाहिए, जिससे हम आम आदमी, किसानों और कामगारों के लिए स्वतंत्रता और अवसर ला सकें, हम गरीबी, अज्ञानता और बिमारियों से लड़ सकें, हम एक समृद्ध, लोकतांत्रिक और प्रगतिशील देश का निर्माण कर सकें, और हम ऐसी सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक संस्थाओं की स्थापना कर सकें जो हर एक आदमी-औरत के लिए जीवन की परिपूर्णता और न्याय सुनिश्चित कर सकें?
हमें कठिन परिश्रम करना होगा। हम में से कोई भी तब तक चैन से नहीं बैठ सकता है जब तक हम अपने वचन को पूरी तरह निभा नहीं देते, जब तक हम भारत के सभी लोगों को उस गंतव्य तक नहीं पहुँचा देते जहां भाग्य उन्हें पहुँचाना चाहता है।
हम सभी एक महान देश के नागरिक हैं, जो तीव्र विकास की कगार पे है, और हमें उस उच्च स्तर को पाना होगा। हम सभी चाहे जिस धर्म के हों, समान रूप से भारत मां की संतान हैं, और हम सभी के बराबर अधिकार और दायित्व हैं। हम और संकीर्ण सोच को बढ़ावा नहीं दे सकते, क्योंकि कोई भी देश तब तक महान नहीं बन सकता जब तक उसके लोगों की सोच या कर्म संकीर्ण हैं।
विश्व के देशों और लोगों को शुभकामनाएं भेजिए और उनके साथ मिलकर शांति, स्वतंत्रता और लोकतंत्र को बढ़ावा देने की प्रतिज्ञा लीजिए। और हम अपनी प्यारी मातृभूमि, प्राचीन, शाश्वत और निरंतर नवीन भारत को श्रद्धांजलि अर्पित करते हैं और एकजुट होकर नए सिरे से इसकी सेवा करते हैं।’
स्वतंत्रता किसी भी व्यक्ति के लिए या देश के लिए बहुत बड़ा वरदान ही होती है। लेकिन ध्यान रहे कि स्वतंत्रता का दीपक सदैव जलाए रखना है। आज आजादी के चलते ही विश्व में हमारा आदर-सत्कार है। स्वाधीनता का तात्पर्य है, जो व्यक्ति किसी नियंत्रण अथवा बंधन के बिना अपनी इच्छानुसार काम करने का अधिकार रखता है, वह स्वतंत्र या स्वाधीन कहलाया जाता है। किन्तु इस स्वाधीनता या स्वतंत्रता का अर्थ यह नहीं है कि हम समाज और देश द्वारा बनाये गये नियमों का उल्लंघन करे। स्वतंत्रता का अर्थ है ‘‘जीओ और जीने दो।’’ हमें स्वतंत्रता के महत्व को समझते हुए आपसी प्रेम, भाईचारे तथा सौहार्द की भावना को अपने दिल में जगह देनी चाहिए। हमें आज एक अच्छे नागरिक होने के साथ-साथ देश के प्रति समर्पण की भावना तथा देशभक्ति के जज्बे को कायम रखना चाहिए। तभी सही मायने में इस पर्व की सार्थकता सिद्ध होगी।
संदीप आमेटा