गिद्धों का एक झुण्ड खाने की तलाश में भटक रहा था। उड़ते-उड़ते वे एक टापू पर पहुँचे। वहां हर तरफ खाने के लिए मेंढ़क, मछलियाँ और समुद्री जीव मौजूद थे। इससे भी बड़ी बात ये थी कि वहाँ इन गिद्धों का शिकार करने वाला कोई जंगली जानवर नहीं था और वे बिना किसी भय के वहाँ रह सकते थे।
युवा गिद्ध कुछ ज्यादा ही उत्साहित थे, उनमें से एक बोला, अब तो मैं यहाँ से कहीं नहीं जाने वाला, यहाँ तो बिना किसी मेहनत के ही हमें बैठे-बैठे खाने को मिल रहा है। बाकी गिद्ध भी उसकी हाँ में हाँ मिलाते हुए झूमने लगे। सबके दिन मौज-मस्ती में बीत रहे थे लेकिन झुंड का सबसे बूढ़ा गिद्ध इससे खुश नहीं था।
एक दिन अपनी चिंता जाहिर करते हुए वह बोला, ”भाइयों, हम गिद्ध हैं, हमें हमारी ऊँची उड़ान और अचूक वार करने की ताकत के लिए जाना जाता है। हम जबसे यहाँ आए हैं हर कोई आराम तलब हो गया है। ऊंची उड़ान तो दूर ज्यादातर गिद्ध तो कई महीनों से उड़े तक नहीं हैं। इतना ही नहीं आसानी से मिलने वाले भोजन की वजह से अब हम सब शिकार करना भी भूल रहे हैं।
ये हमारे भविष्य के लिए अच्छा नहीं है, मैंने फैसला किया है कि मैं इस टापू को छोड़ वापस उन पुराने जंगलों में लौट जाऊँगा, अगर मेरे साथ कोई चलना चाहे तो चल सकता है। बूढ़े गिद्ध की बात सुनकर सभी उस पर हँसने लगे और उसे मूर्ख बताते उसके साथ जाने से इनकार कर दिया। बूढ़ा गिद्ध अकेले ही लौट गया।
समय बीता, कुछ वर्षों बाद बूढ़े गिद्ध ने सोचा, क्यों न एक बार चलकर अपने पुराने साथियों से मिल लिया जाए। लंबी यात्रा के बाद जब वो टापू पे पहुँचा तो वहाँ का दृश्य भयावह था। ज्यादातर गिद्ध मारे जा चुके थे और जो बचे थे वे बुरी तरह घायल थे।
‘‘ये कैसे हो गया?’’ बूढ़े गिद्ध ने पूछा। कराहते हुए एक घायल गिद्ध बोला, ‘‘हमे क्षमा कीजियेगा, हमने आपकी बातों को गंभीरता से नहीं लिया और आपका मजाक तक उड़ाया। दरअसल, आपके जाने के कुछ महीनों बाद एक बड़ी सी जहाज इस टापू पर आई और चीतों का एक दल यहाँ छोड़ गई। चीतों ने पहले तो हम पर हमला नहीं किया, पर जैसे ही उन्हें पता चला कि हम सब न ऊँचा उड़ सकते हैं और न अपने पंजों से हमला कर सकते हैं उन्होंने हमें खाना शुरू कर दिया। अब हमारी आबादी खत्म होने की कगार पर है, बस! हम जैसे कुछ घायल गिद्ध ही जिंदा बचे हैं!’’ बूढ़ा गिद्ध उन्हें देखकर बस अफसोस कर सकता था, वो वापस जंगलों की तरफ उड़ चला।
ऐसे ही अगर हम अपनी शक्ति का निरन्तर उपयोग नहीं करते हैं तो धीरे-धीरे वह खत्म हो जाती है। तेजी से बदलती इस दुनिया में हमें खुद को बदलाव के लिए तैयार रखना चाहिए। अपनी योग्यता को यूं ही व्यर्थ न जानें दें।
वेदान्त शर्मा